अर्जुन सिंह चंदेल
जैसे-जैसे यात्रा, समापन के सौपान चढ़ रही थी वैसे-वैसे क्लाइमेक्स बढ़ रहा था। रात के 1 बजे बनारस में गाड़ी मालिक से हिसाब को लेकर विवाद हो गया। आप भी ध्यान से पढिय़े आपके भी काम की है यह घटना। इनोवा गाड़ी हमने लखनऊ से बुक की थी जिसमें तय रूट के अनुसार हमें उत्तरप्रदेश के रास्ते नौतनवा बार्डर से नेपाल में प्रवेश करना था और वापसी जनकपुर होते हुयी थी। जनकपुर से भारत में आते समय बिहार में प्रवेश करना पड़ा। टैक्सी के चतुर सुजान मालिक ब्राह्मण देवता मिश्रा लखनऊ के निवासी थे वह हमसे बिहार में प्रवेश का 2500/- का है टैक्स अनावश्यक माँगने लगे।
हमारी टीम के बेहद सजग साथी ने टैक्सी बुक करते समय सारा वार्तालाप रिकार्ड कर रखा था साथ ही सारी शर्ते व्हाटसअप पर लिपिबद्ध थी। चलायमान फोन पर विवाद अमर्यादित भाषा तक जा पहुँचा। धूर्त मिश्रा ने उसके अधीन गाड़ी के ड्रायवर को निर्देश दिया गाड़ी को सवारियों सहित थाने ले जाओ। किसी शातिर लुटेरों की गैंग के बॉस की तरह उसने हुकुम जारी कर दिया।
अपने राम भी ‘प्रेस’ से ही थे प्रेस और पुलिस की ‘राशि’ एक ही है, हम भी सहर्ष ही तैयार हो गये, ड्रायवर को कहा चल अब निपटारा पुलिस थाने में ही होगा। मात्र 100 मीटर की दूरी पर ही लक्सा पुलिस स्टेशन था. रात के 1.30 बज रहे थे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी के संसदीय क्षेत्र के पुलिस थाने में हम जा पहुँचे।
परदेस में सात दिवसीय यात्रा के दौरान कोई विवाद नहीं हुआ पर अपने ही देश में विवाद पुलिस तक। ड्यूटी पर तैनात उपनिरीक्षक कोई बहुत ही भद्र व्यक्ति थे उन्होंने हमारी बात पूरे मनोयोग से सुनी। मोबाइल के व्हाटसअप पर सारी चेट ध्यान से पढ़ी उसमें कही भी बिहार के लगने वाले टैक्स का जिक्र नहीं था। उप निरीक्षक ने ड्रायवर से कहा बात कराओ तुम्हारे मालिक से।
पुलिस ने अपनी भाषा में जब मिश्रा की लू उतारी तो मिश्रा की बोलती बंद हो गयी। पुलिस अधिकारी ने ड्रायवर को डॉटते हुए कहा मोबाइल बंद कर वर्ना हवालात के पीछे कर दिये जाओगे। मामले का पटाक्षेप हो चुका था हमारे पक्ष में फैसला हो जाने पर हम सभी फूले नहीं समा रहे थे। अब रूकने के लिये होटल ढूंढऩा था और खाने का इंतजाम।
नेक दिल इंसान होटल मालिक
होटल तो अच्छा मिल गया पर पेट-पूजा की व्यवस्था नहीं हो पायी क्योकि सुबह जल्दी उठने वाला बनारस गहरी नींद में सो चुका था। पर होटल मालिक गुप्ता जी नेक दिल इंसान थे. वह स्वयं गाड़ी उठाकर गये और कहीं से ब्रेड के पैकेट और चाय का इंतजाम कर लाये। 400 किलोमीटर का सफर था, थकान बहुत ज्यादा हो गयी थी सो गये।
सुबह 9 बजे होटल से निकलकर दक्षिण भारतीय मसाला डोसा, इडली का आनंद लिया और निकल बड़े हम महाकाल के गण, बाबा विश्वनाथ से मुलाकात करने। गर्मी चरम पर थी वहाँ भी बदहाली का आलम था। कैलाश पर्वत की ठंडक में रहने वाले बाबा के सारे भक्त चिलचिलाती धूप में खड़े थे।
मंदिर परिसर के अंदर जो लाईन लगी थी वहाँ भी धर्मालु खुले आकाश के नीचे ही खड़े थे करीब 45 मिनट इंतजार करने के बाद अंदर जा पाये। वहाँ भी उज्जैन की ही तरह दलालों की गैंग सक्रिय थी जो जल्दी दर्शन के नाम से 500 रुपयों की माँग कर रहे थे। हमें कोई जल्दबाजी नहीं थी ईमानदारी से पूरी निष्ठा के साथ लाईन में लगकर दर्शन किये।
लगभग 2 बज गये उसके बाद सॅकरी गली में भैरो जी के दर्शन कर पुण्य लाभ प्राप्त किया और होटल लौट आये। चूँकि बनारस मेरा देखा हुआ था इसीलिये शाम को गंगा आरती और कोरिडोर देखने मुझे छोडक़र बाकी साथी गये। जिन्होंने आकर गंगा की दुर्दशा का बखान किया।
बनारस देखने पर ऐसा नहीं लगा कि हम 140 करोड़ भारतवासियों के प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में है। बदहाल गंगा, अव्यवस्थित यातायात, खुरढड़ी सडक़ें, मंदिर की बदहाल व्यवस्था आदि-आदि। खैर 22 मई की रात भी हमें बनारस में ही गुजारनी थी क्योंकि 23 मई को काशी एक्सप्रेस से हमारा उज्जैन के लिये आरक्षण था। रेलवे विभाग हम सभी साथियों की वेटिंग 1 से 6 तक ले आया था और यह भी दर्शा रहा था कि चार्ट अभी तैयार नहीं है। सपने में भी किसी अनिष्ट की आशंका नहीं थी। पर लगा झटका।
(शेष अगले अंक में)