गायत्री जयंती समारोह में 9 कुण्डीय यज्ञ में 350 से अधिक याजकों ने दी आहुतियां

सूर्योदय से सूर्यास्त तक गायत्री महामंत्र के अखंड जप में 51 हजार मंत्रों का जाप किया

उज्जैन, अग्निपथ। ‘‘नास्ति गंगा समं तीर्थं न देव:केशवात्पर:। गायत्र्यास्तु परं जाप्यं भूतं न भविष्यति।।’’ गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है केशव से श्रेष्ठ कोई देवता नहीं है। गायत्री महामंत्र जप से श्रेष्ठ कोई जप न आज तक हुआ है और न होगा। इसलिए गायत्री महामंत्र के जप को जीवन का एक हिस्सा बनाइए। अब सर्वोत्तम को अपनाने का सुअवसर मिला है तो उसका लाभ अवश्य उठायें। गायत्री मंत्र में 24 अक्षर हैं। इसका सन्बंध शरीर में स्थित ऐसी 24 ग्रन्थियों से है, जो जाग्रत होने पर सदबुद्धि प्रकासक शक्तियों को सतेज करती हैं। गायत्री महामंत्र के उच्चारण से सूक्ष्म शरीर का सितार 24 स्थानों पर झंकार देता है और उससे एक ऐसी स्वर लहरी उत्पन्न होती है, जिसका प्रभाव अदृश्य जगत के महत्वपूर्ण तत्वों पर पड़ता है।

उक्त विचार जे पी यादव व्यवस्थापक शक्तिपीठ उज्जैन ने गायत्री शक्तिपीठ पर आयोजित गायत्री जयंती, गंगा दशहरा, महाप्रयाण दिवस परम पूज्य गुरुदेव के पर्व पूजन के समय उपस्थित परिजनों के सामने व्यक्त किए। उपझोन समन्वयक महेश आचार्य ने आज के दिन का स्मरण कराते हुए बताया कि आज से 34 वर्ष पूर्व गायत्री जयंती 1990 को परम पूज्य गुरुदेव अपनी आराध्य देवी गायत्री से एकाकार हो गये थे।

उन्होंने हम सबको आश्वासन दिया है कि तुम हमारा काम करो हम तुम्हारा काम करेंगे इसलिए आप सब नियमित गायत्री मंत्र का जप और गुरुदेव के काम के लिए 2 घंटे का प्रतिदिन समयदान करने का संकल्प लीजिए। 9 कुण्डीय यज्ञ में 350 से अधिक याजकों ने आहुतियां प्रदान कीं। साथ ही पुंसवन, विद्यारंभ और मंत्र दीक्षा संस्कार संपन्न हुए।

यज्ञ का संचालन डॉ. नीति टंडन और डॉ. आरती केवर्त ने किया। सांयकाल गंगा दशहरा दशहरे के अवसर पर दीप दान के लिए दीप यज्ञ संपन्न हुआ। पर्व की पूर्व बेला में शनिवार 15 जून को सूर्योदय से सूर्यास्त तक गायत्री महामंत्र के अखंड जप में करीब 51 हजार मंत्रों का जाप किया गया। रात्रि में डॉ. सतीश गोथरवाल के नेतृत्व में भजन संध्या का आयोजन किया गया जिसमें 15 से अधिक स्वर साधकों ने मधुर और प्रेरक भजनों की प्रस्तुति दी।

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