पुलिस अधीक्षक जिले में सभी थाना प्रभारियों को हिदायत दे चुके हैं कि अपराधों पर लगाम कसी जाये। लेकिन थाना प्रभारियों को तो सिर्फ रात में 10 बजे से दुकानें बंद कराने की ही ड्यूटी बची है। जबकि पुलिस की गाड़ी किसी दुकान पर पहुंचती है और वहां पर सायरन बजा कर दुकानों के शटर बंद करवाकर वहां से निकल जाती है।
अगर दुकान बंद कराने के दौरान पान, चाय की गुमटी और ठेलों के आसपास लगी भीड़ में जाकर देखा जाये तो वहां पर भी उन्हें अपराधियों की धरपकड़ में काफी सफलता मिल सकती है। क्योंकि रात्रि में पान की दुकानों के आसपास बदमाशों का डेरा जमा रहता है जो कि पुलिस के सायरन से आसपास छिप जाते हैं और पुलिस के जाते ही वहां पर वापस खड़े हो जाते हैं।
अगर पुलिस अधीक्षक इस कार्रवाई का सख्ती से पालन करवा ले तो रात्रि में पुलिस को भी काफी राहत मिलेगी और आम नागरिकों को भी होने वाली हुड़दंग से मुक्ति मिलेगी। मगर थाना प्रभारियों की गाडिय़ों में बैठकर आदेश देने की इस शैली से शहर में शांति नहीं हो पा रही है। क्योंकि सभी प्रमुख सडक़ों पर 11 बजे बाद ही वाहनों के काफिले निकलते हैं जो कि शोर तो मचाते ही साथ ही अभद्रता भी करते हुए निकलते हैं।