अर्जुन सिंह चंदेल
यदि आप सीमेंट कांक्रीट के जंगलों के बीच रहकर साँस लेने में तकलीफ महसूस कर रहे हों, भागमभाग वाली जिंदगी से उकता कर कुछ हसीन पल प्रकृति की गोद में बिताना चाहते हो, शुद्ध ऑक्सीजन का एहसास शरीर को कराना चाहते हो या शांति को महसूस करना चाहते हो तो चले आइये ‘देश के दिल’ मेरे मध्यप्रदेश में। इसे ‘नदियों का मायका’ भी कहा जाता है। यहाँ छोटी-बड़ी मिलाकर कुल 207 नदियां हैं।
चलिये आज मैं आपको सैर कराता हूँ मध्यप्रदेश की व्यवसायिक राजधानी इंदौर से मात्र 45 किलोमीटर दूर ‘चोरल डेम’ की जो कि पर्यटकों के लिये एक छुपा हुआ रत्न है। जिस चोरल नदी पर यह डेम बना हुआ है वह नदी विध्यांचल पर्वतों के बीच से निकलकर पाताल पानी झरने के पास विंध्य से निकलकर दक्षिण की ओर मुडक़र बड़वाह के पास माँ नर्मदा के आँचल में जाकर विलीन हो जाती है।
मात्र 55 किलोमीटर लंबी चोरल नदी का सफर घने जंगलों से होकर पूरा होता है। भारत की पावन धरा का इतिहास अपने आप में समेटकर रखने वाले मध्यप्रदेश में संस्कृति-भूगोल सभी का समागम है। रविवार (30 जून) को वैष्णव पॉलीटेक्निक के सन् 1981-85 की बैच के आठ साथी और हम उज्जैन से दो लोग निकल पड़े चोरल डेम की यात्रा पर।
अपने राम ने उज्जैन से इंदौर का सफर वातानुकूलित बस में किया जिसने डेढ़ घंटे में इंदौर पहुँचा दिया। बस स्थानक पर पुराने दोस्तों में से एक ने वहाँ से मुझे पिक कर लिया। सभी 10 मित्र एक जगह एकत्र होकर नाश्ते आदि से निवृत्त होकर निकल पड़े प्रकृति का आनंद लेने।
भाग्य देखिये उज्जैन से इंदौर बस का सफर करने वाले अपने राम को इंदौर से 45 लाख की लग्झरी गाड़ी में बैठने का सौभाग्य मिल गया। दो गाडिय़ां गयी थी दोनों में 5-5 दोस्त सवार थे। भीड़ भाड़ भरे इंदौर से बाहर निकलते ही राहत मिली।
इंदौर से चोरल जाने के लिये हमें महू शहर से होकर जाना था। महू में बाबा साहब अम्बेडकर की आदमकद प्रतिमा को हमने प्रणाम किया और आगे निकल पड़े।
हाँ, एक बात भूल रहा था महू में प्रवेश करते ही प्रसिद्ध ‘भंवरीलाल’ की दुकान थी जहाँ से हमने एक किलो मक्खन बड़े पैक करवा लिये थे। महू से निकलते ही सीमेंट कांक्रीट की इमारतों की जगह हरियाली ने ले ली थी आधा सफर तय हो चुका था। हमारी मंजिल मात्र 20 किलोमीटर दूर ही थी।
मौसम सुहाना हो चला था, आसमान में काले बादल छाने लगे थे जो मानसून के आने की आहट दे रहे थे, समीर में शीतलता आ गयी थी, शरीर और वातावरण की तपन कम हो गयी थी। कार में एसी का स्विच 3 की जगह 1 पर आ गया था।
सचमुच जीवन के यह स्वर्णिम पल थे जब 43 वर्षों पूर्व के दोस्तों के साथ अपने राम सुहाने सफर पर थे। मौसम मादक और मदहोश करने वाला था। सडक़ पर दो पहिया वाहनों में स्त्री-पुरुष, लडक़े-लड़कियां मौसम का आनंद ले रहे थे। जब यार साथ हो तो सफर कितना भी लंबा हो पता ही नहीं चलता कब कट जाता है। दोस्तों के साथ जंगल में भी मंगल है।
40 साल पुराने सभी जवान प_े अब दादा-नाना बन चुके थे। कोई सहायक यंत्री से तो कोई प्रभारी कार्यपालन यंत्री पद से सेवानिवृत्त हो चुके थे। सभी 60+ वाले थे एक मित्र बड़े बिल्डर और एक बड़े उद्योगपति भी साथ थे जिनकी लग्झरी गाड़ी में बैठने का सौभाग्य मुझे मिला था।
बातों में मशगूल थे तभी मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम का बोर्ड दिखायी दिया जिस पर लिखा था चोरल रिसोर्ट 3.5 किलोमीटर। दिल बाग-बाग हो गया सीना चौड़ा हो गया पर्यटन विकास निगम का नाम देखकर। मुख्य मार्ग हमने छोड़ दिया था और पतली सडक़ हमने पकड़ ली थी जो हमें चोरल डेम और रिसोर्ट लेकर जाने वाली थी। मेरा दिल तो ज्यादा जोर से धडक़ रहा था क्योंकि मुझे सन् 1976 और 1979 के बीच महाराजवाड़ा क्रं-२ में मेरे साथ पढऩे वाला दोस्त जो मिलने वाला था।
शेष कल…