पार्षद-अधिकारी-कर्मचारी की तिकड़ी खेल रही इक्के-दुए का खेल

सेटिंग से ही बनेगी बिल्डिंग नहीं तो चलेगी जेसीबी

उज्जैन, अग्निपथ। बीते दिन फ्रीगंज क्षेत्र में गुरुद्वारे के पास नगर के प्रसिद्ध न्यूरोसर्जन रुपेश खत्री के निर्माणाधीन नर्सिंग होम के अवैध हिस्से को निगम द्वारा हटाये जाने के बाद पूरी भारतीय जनता पार्टी में हडक़ंप मचा हुआ है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से नाता रखने वाले खत्री परिवार के भवन को तुड़वाये जाने में मेयर इन कौंसिल की महिला सदस्य की भूमिका प्रमुख रही है।

इस घटना के बाद मुख्यमंत्री जी के गृह नगर में निगम की भवन अनुमति शाखा काफी चर्चा में आ गई है। भवन अनुमति शाखा में किस तरह इक्के-दुए का खेल पार्षद, अधिकारी और कर्मचारी मिलकर खेल रहे हैं यह सुनकर सब हैरान हैं। निगम सीमा में बन रहे भवनों के स्वामियों को निशाना बनाने में यह तिकड़ी संगठित गिरोह की तरह काम करती है।

इस गिरोह में शामिल नगर सरकार के जनप्रतिनिधि, झोन अध्यक्ष, मेयर इन कौंसिल में लोक निर्माण विभाग के प्रभारी किस तरह शिकार करते हैं, यह जानकार सत्ता प्रमुख भी हैरान हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस संगठित गिरोह को नगर के प्रथम नागरिक का भी वरदहस्त प्राप्त है।

गिरोह कैसे कर रहा है शिकार

सबसे पहले यह जानते हैं कि किस तरह शिकार को तलाशकर फंसाया जाता है। जिस भी वार्ड में निर्माण का कार्य चल रहा होता है उस वार्ड के पार्षद को उसका खबरी खबर लाकर देता है। उसके बाद संबंधित पार्षद द्वारा निगम के कर्मचारी जिसे मेट कहा जाता है, को भेजकर उस स्थल का मुआयना करवाता है और भवन मालिक की हैसियत का सर्वे भी करता है कि आसामी कितना मोटा है।

मेट द्वारा ही संबंधित निर्माण कर्ता को कानून का भय दिखाकर प्राथमिक स्तर पर सौदा पटाने का प्रयास करता है। मामला सेट नहीं होने पर झोन के भवन शाखा के संबंधित लिपिक से बाले-बाले ही अवैध निर्माण का नोटिस जारी करवा देता है। गौर करने वाली बात यह है कि इस नोटिस का जिसका निगम में कोई रिकार्ड नहीं होता।

निगम का नोटिस मिलते ही हैरान-परेशान भवन स्वामी (निर्माणकर्ता) वार्ड पार्षद के पास मदद के लिए पहुंचता है। मतलब शिकारी की गिरफ्त में खुद शिकार पहुंचता है। सारे घटनाक्रम का सूत्रधार वार्ड का पार्षद अनभिज्ञ बनता हुआ अपने मतदाता को सांत्वना देता हुआ कहता है कि आप चिंता मत करो, मैं सब जमा दूंगा।

दो-चार दिनों बाद वह भवन स्वामी को निर्माण में 5-25 गलतियां बता कर और भयभीत कर देता है। डरा-सहमा भन स्वामी अपने जनप्रतिनिधि को तारणहार बताकर पूरी तरह उसके शरणागत हो जाता है कि अब आप ही मुसीबत से बचाइये।

अब शुरू होता है पार्षद का असली खेल। मामला सुलझाने के नाम पर दो-चार फोन घुमाकर मदद का नाटक करते हैं और झोन अध्यक्ष व भवन अधिकारी की तिकड़ी मिलकर शिकार से मोल भाव कर सौदा तय करते हैं। शुरुआत लाखों से होती है तो पार्षद के मोलभाव के बाद थोड़े कम में तय हो जाती है।

मिली रकम में पार्षद, झोन अध्यक्ष, भवन शाखा के मेट, बाबू-अधिकारी सबके बीच अनुपात मुताबिक बंटवारा हो जाता है। दूसरी ओर लुटापिटा भवन स्वामी रकम देने के बाद पार्षद को साधुवाद देते हुए लौट जाता है और बेखौफ होकर निर्माण कार्य में जुट जाता है। यदि मामला व्यावसायिक निर्माण का है और आसामी मोटा है तो फिर हिस्सेदारी मेें निगम के मुखिया और जनप्रतिनिधि के सुप्रीमों भी शामिल हो जाते हैं।

अगर भवन स्वामी समर्पण नहीं करे तो पहुंचती है जेसीबी

इस मामले का दूसरा पहलू यह है कि अगर मेट द्वारा सूचना पत्र (नोटिस) देकर चमकाने के बाद भी भवन स्वामी पार्षद की शरण में नहीं पहुंचता है तो फिर इस संगठित गिरोह के सारे सदस्यों की भृकुटी तन जाती है। भवन स्वामी को सबक सिखाने के लिए कार्ययोजना तैयार कर ली जाती है।

कानून की किताबों के सारे नियम-कायदे खोजे जाते हैं और विधिवत कार्रवाई कर वास्तविक नोटिस जारी किया जाता है। निपटाने की इस प्रक्रिया में पड़ोसियों से निगम आयुक्त, सीएम हेल्पलाइन आदि में शिकायतें भी करवाई जाती है। इसके बाद निगम का संगठित गिरोह विधिवत कार्रवाई करते हुए जेसीबी लेकर पहुंच जाता है निर्माणाधीन भवन को जमींदोज कर भवन स्वामी को सबक सिखाने के लिए।

डॉ. साहब भी ऐसे ही गिरोह का शिकार बने

शहर के प्रतिष्ठित न्यूरो सर्जन डॉ. रुपेश खत्री से भी मेयर इन कौंसिल की प्रतिष्ठित सदस्या ने भारी भरकम राशि की मांग की थी। झोन-4 के अंतर्गत आने वाले इस भवन के निर्माण में कई कमियों को गिनाकर दबाव बनाया गया। समर्पण न करने पर लोनिवि की बैठकों में बार-बार मुद्दा उठाया गया और मामले को पूरा पकाने के बाद अधिकारियों-कर्मचारियों की मिलीभगत से गिरोह ने संघ परिवार से जुड़े न्यूरो सर्जन को भी अपना शिकार बना ही लिया।

भाजपा नेत्री अब बैकफुट पर

पार्टी और संगठन को शहर में निर्माण की आड़ में संगठित गिरोह द्वारा खेले जा रहे खेल की जानकारी लगने पर भाजपा नेत्री को जमकर लताड़ा गया और इस पूरे घटनाक्रम का सूत्रधार उन्हें ही माना गया। इक्का-दुआ के इस खेल के बारे पत्ते खुल जाने के बाद यह भाजपा नेत्री अब खुद को पाक-साफ बताने का प्रयास कर रही हैं और बयान दे रही हैं कि इसमें मेरी कोई भूमिका नहीं है।

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