अर्जुन के बाण: मत दो परम्पराओं के नाम पर हादसों को निमंत्रण

चित्र में रेखांकन के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है कि पालकी को किस तरह से ऊंचा किया जा सकता है।

अर्जुन सिंह चंदेल

मृत्युलोक के राजा सावन के पहले दिन सोमवार को अपनी प्रजा की कुशल क्षेम जानने मंदिर से निकले, अपने राजा की एक झलक पाने के लिए जनमैदिनी उमड़ पड़ी। अखबारनवीसों की मानें तो लगभग डेढ़ से दो लाख श्रद्धालु सवारी का आनंद लेने को मौजूद थे। प्रदेश के संवेदनशील मुख्यमंत्री माननीय मोहन यादव जी का विशेष लगाव होने के फलस्वरूप सावन सोमवारों और भादव के दो सोमवारों को निकाली जाने वाली राजाधिराज बाबा महाकाल की सवारी को किस प्रकार भव्यता दी जाये इसे लेकर गहन मंथन भी किया गया।

सोमवार को शिवमय मेरी उज्जैयिनी में सवारी के दौरान मची भगदड़ के समाचार भी शनै: शनै: सुर्खियां बन रहे हैं। सवारी के दौरान पानदरीबा क्षेत्र में पालकी के आगे आगे चल रहे मंदिर प्रबंध समिति के अशासकीय सदस्य सम्मानीय राजेेंद्र शर्मा जी धक्का-मुक्की के कारण गिर पड़े। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार आठ से दस लोग उन्हें रौंदते हुए भी निकल गये। बमुश्किल वह खड़े हो पाये। यदि वह खड़े ना हो पाते तो संभव था कि सावन की पहली सवारी ही कलंकित हो जाती।

दूसरी घटना हरसिद्धी पाल पर हुई, जहां भगदड़ मची, तीसरी घटना रामानुज कोट पर हुई।

हम नगरवासी शुक्रगुजार हैं उस परमपिता परमेश्वर बाबा महाकाल के, जिसने इस नगर को कलंकित होने से बचा लिया। अन्यथा मुख्यमंत्री जी के साथ ही व्यवस्था में लगे प्रशासनिक अधिकारियों, कर्मचारियों के दामन भी दागदार हो जाते।

सुझाव दिया था

सावन सवारी के पूर्व ही समाचार पत्रों के माध्यम से नगर के बुद्धिजीवियों ने सवारी के लिए महत्वपूर्ण सुझाव भी दिया था कि निकलने वाली परंपरागत सवारी को यदि ऊंचाई प्रदान कर दी जाये तो सवारी मार्ग पर बच्चे, बूढ़े, जवान सभी अपने राजा की झलक पा सकेंगे और उसके सुलभ दर्शनों से अपना जीवन धन्य कर सकेंगे। सामान्य व्यक्ति की ऊँचाई से भी अधिक ऊँचायी वाले बेरिकेडस लगे होने के कारण धर्मालुओं को जेल के सींखचों जैसे अनुभूति होती है। सही तरीके से दर्शन ना होने के कारण श्रद्धालु को संतुष्टि नहीं मिलती है और वह हताश होकर लौटता है।

यह 100 प्रतिशत सही है कि आने वाले सावरियों में और अधिक भीड़ बढ़ेगी और शाही सवारी पर यह आँकड़ा 10 लाख तक पहुँचने की भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। जब प्रशासन सवारी मार्ग को 100 फीट चौड़ा नहीं बना सकता है तो एकमात्र विकल्प यही बचता है कि हम बाबा को ऊँचायी पर स्थापित करें ताकि ‘भगवान और भक्त’ का मिलन हो सके, हम हमारे राजा की एक झलक तो देख लें।

बदलाव जरूरी

रही परम्परा की लकीर पीटने की बात तो समय-समय पर 1965, 1992, 1996, 2004, 2018 में समय के हालात, परिस्थितियों को देखते हुए परंपराओं में परिवर्तन हुए हैं और करना पड़ेंगे। वर्षों पूर्व चारधाम यात्रा पैदल की जाती थी अब सरकार रोप वे, फोरलेन सडक़ें, हेलीकाप्टर से चारधाम यात्रा को सहज व सरल बना रही है। आज से 25 वर्ष पूर्व ना महाकाल में भीड़ होती थी ना सवारी में। लेकिन अब परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया है।

अब दुर्घटनाओं, हादसों को रोकना है, भीड़ नियंत्रित करना है तो नये प्रयोग करना होंगे यह समय की माँग है। विरोध तो हर काम का होना लाजिमी है पर जनहित में क्या निर्णय सही होगा यह विवेकपूर्ण निर्णय प्रशासनिक अधिकारियों का होना चाहिये। परंपरा तो शिवलिंग को स्पर्श करने और गर्भगृह में प्रवेश की भी थी फिर आपने क्यों बदली क्योंकि परिस्थितियों ने परंपरा बदलने पर मजबूर किया और आपने गर्भगृह प्रवेश बंद किया।

हम यह भी जानते हैं कि उज्जैन में पत्ता भी तभी खडक़ेगा जब मुख्यमंत्री जी की सहमति होगी। पर प्रशासनिक अधिकारियों का यह दायित्व है कि वह माननीय मुख्यमंत्री जी के संज्ञान में इस माँग के नकारात्मक, सकारात्मक दोनों पहलू लाये और उन्हें उचित मांग का पालन करने के लिये संतुष्ट करें, भले ही एक बार प्रयोग किया जाये, जैसा एल.ई.डी. स्क्रीन लगाकर किया गया।

प्रयोग करके निर्णय लिया जाये उचित ना लगे तो वापस पुरानी व्यवस्था रहने दीजिये। क्योंकि भविष्य में सवारी दौरान अप्रिय घटना और हादसा होना तय है भोलेनाथ भी कब तक मदद करेंगे हम नासमझों की।
जय महाकाल

(चित्र में रेखांकन के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है कि पालकी को किस तरह से ऊंचा किया जा सकता है।)

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