सीएम के शहर में जनप्रतिनिधियों से सामंजस्य बैठाना अफसरों की सबसे बड़ी मुश्किल
उज्जैन, अग्निपथ। नगर पालिक निगम उज्जैन इन दिनों शायद सबसे बुरे हालातों से गुजर रही है। शहर के 6 लाख नागरिकों को उम्मीद थी कि डॉ. मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद नगर सरकार के दिन बदलेंगे पर वर्तमान हालात और बदतर हो चले हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.ए.एस.) की कुर्सी पर जोड़-तोड़, गुणा-भाग करके जैसे-तैसे आशीष पाठक जी काबिज तो हो गये परंतु अब उनसे नगर निगम नहीं संभल पा रहा है। नगर निगम का यही आलम रहा तो सिंहस्थ के आने वाले प्रोजेक्टों का क्रियान्वयन खटाई में पड़ सकता है।
क्यों बन रहे हैं ऐसे हालात
डॉ. मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद संभाग की राजनैतिक चेतना का शून्य हो जाना लाजिमी है। संभाग और जिले की प्रत्येक बनने वाली योजना में मुख्यमंत्री की दखलंदाजी होना स्वाभाविक है। ऐसे में संभाग व जिलों के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा सारे जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा किया जाना है। फिर वह चाहे नगर का प्रथम नागरिक महापौर हो, सांसद हो या विधायक।
परंतु नगर निगम का गणित कुछ और ही है। मुख्यमंत्री जी की बहन श्रीमती कलावती जी यादव जो 6 बार से अधिक की लोकप्रिय पार्षद रह चुकी है और वर्तमान में उज्जैन नगर निगम की अध्यक्ष भी हैं वह एक सुपर पावर स्टेशन बनकर उभरी हैं। मुख्यमंत्री जी की बहन होने के नाते उनके राजनैतिक कद में अप्रत्याशित वृद्धि होना ही थी।
हालात यह है कि सुबह से ही निगम अध्यक्ष के दरबार में सारे अधिकारी-कर्मचारी हाजिरी लगाने पहुँच रहे हैं। निगम के सारे महत्वपूर्ण निर्णय उन्हें ही करना पड़ रहे हैं। निगम में बिना कलावती यादव जी की मंशा के पत्ता भी नहीं खडक़ सकता है। पार्षद और मेयर इन कौन्सिल तो लगभग मरणासन्न स्थिति में है, महापौर स्वयं अपने अस्तित्व की लड़ायी लड़ रहे हैं।
निगमायुक्त आशीष पाठक दो पाटों के बीच है। एक कलावती यादव जी हैं तो दूसरी ओर मुकेश टटवाल जी वह किसका कहना माने यह सबसे बड़ी समस्या है। दो शक्ति पुंजों के बीच उलझे आशीष पाठक आयुक्त की कुर्सी पर मुख्यमंत्री जी के रहमोकरम पर हैं, जिस दिन भी वह बहन कलावती यादव के गुस्से का शिकार होंगे उसी दिन उनका बोरिया-बिस्तर बंधना तय है। महापौर और निगम अध्यक्ष तथा पार्षदों के बीच सामंजस्य बैठा पाने में असफल निगमायुक्त बाकी पार्षदों के और मेयर इन कौन्सिल के सदस्यों के निशाने पर हैं।
निगम में पैसों का भी खेल
निगम के गलियारों में यह भी चर्चा है कि आयुक्त आशीष पाठक जी बहन कलावती के यहाँ से भुगतान के लिये आयी सूची का तो अक्षरश: पालन करते ही हैं पर निगमाध्यक्ष के यहाँ से आयी सूची संज्ञान में आने के बाद महापौर निवास से भी भुगतान हेतु सूची जारी कर दी जाती है। दो पाटों के बीच पिस रहे निगमायुक्त को दोनों के आदेशों का पालन करना ही होता है इसके अलावा जिनकी पहुँच निगमाध्यक्ष और महापौर के यहाँ नहीं है उन्हें 5 प्रतिशत अतिरिक्त पी.सी. का दंड भुगतना पड़ता है।
मुख्यमंत्री की योजनाएं भी खटाई में
प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा शहर विकास हेतु करोड़ों की कार्ययोजना तो स्वीकृत की ही साथ ही उसके लिये पर्याप्त राशि भी नगर निगम को उपलब्ध करा दी। दुर्भाग्य की बात है कि सडक़ों का निर्माण कार्य भी जिस गति से होना चाहिये नहीं हो पा रहा है चाहे वह सिंधी कालोनी तिराहे से हरिफाटक पुल तक फोरलेन निर्माण हो या अन्य निर्माणाधीन सडक़ें, सभी में कहीं न कहीं बाधाएं आ रही है जिनका हल नहीं निकल पा रहा है।
सफाई व्यवस्था चरमरायी
नगर की सफाई व्यवस्था भी पूरी तरह से चरमरा गयी मात्र फोटो और प्रेसनोट में ही सफाई दिखायी जा रही है धरातल पर शहर की सडक़ों पर गंदगी पसरी पड़ी है नाले मलबे से भरे पड़े हैं। गधापुलिया से मंछामन मार्ग पर स्थित नाले की स्थिति यह है कि वह 80 प्रतिशत कचरे से भरा पड़ा है। थोड़ी सी वर्षा होने के बाद ही सारा पानी सडक़ पर आ जाता है जिससे हजारों लोगों को परेशानी होती है।
चौड़ीकरण कार्य के हालात बदत्तर
के.डी. गेट से इमली चौराहे तक चौड़ीकरण कार्य एक वर्ष बीत जाने के बाद भी अधूरा है। वहाँ के निवासी गत वर्ष के वर्षाकाल में नारकीय जीवन बिता चुके हैं इस वर्ष भी वर्षा प्रारंभ हो चुकी है और निर्माण पूर्ण नहीं हुए हैं। अधिकारियों-कर्मचारियों पर अपना नियंत्रण खो चुके निगमायुक्त आशीष पाठक सिंहस्थ के मद्देनजर होने वाले मार्गों के चौड़ीकरण का कार्य कैसे करवा पायेंगे यह यक्ष प्रश्न नागरिकों के सामने खड़ा हो गया है।