अर्जुन के बाण: भोलेनाथ! तेरी स्मार्ट सिटी उज्जैन में सतत 24 घंटे की जगह 48 घंटे में मात्र 1 घंटा जलप्रदाय

अर्जुन सिंह चंदेल

अँग्रेजी शब्द SMART के हिंदी में दो अर्थ होते हैं। पहला अर्थ होता है चालाक, दूसरा अर्थ होता है विशिष्ट, मापने योग्य, प्रातंगिक और समय बद्ध। शायद स्मार्ट शब्द के पहले अर्थ का अधिकारियों ने अपनी चालाकी के हिसाब से अर्थ निकालकर उज्जैन स्मार्ट सिटी की प्रासंगिकता पर ही प्रश्न चिन्ह खड़े कर दिये हैं।

भोलेनाथ आप तो सर्वज्ञाता हैं आप सब कुछ जानते समझते हैं परंतु व्यस्तताओं के कारण शायद आप आपकी नगरी पर ही ध्यान नहीं दे पा रहे हो, खैर, आपका यह भक्त आपको ‘स्मार्ट सिटी उज्जैन’ की हो रही दुर्दशा का बिंदुवार आँखों देखा हाल बताता है।

स्मार्ट सिटी के लिये सबसे पहली जरूरत होती है ‘पर्याप्त पानी की आपूर्ति’ तो प्रभु हमारी उज्जैयिनी में स्मार्ट सिटी के स्मार्ट अधिकारियों ने करोड़ों की योजना में इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया क्योंकि यह दीर्घकालिक योजना होती है और इसमें ‘माल’ देर से मिलने का डर था।

शहर के 7 लाख लोग बीते 100 दिनों से ज्यादा समय से पेयजल संकट झेल रहे हैं। नगर सरकार के जिम्मेदारों ने सर्दी में तो रोजाना पानी दिया परंतु जिन माहों में पानी की जरूरत ज्यादा होती है उन बीते महीनों में ‘स्मार्ट सिटी उज्जैन’ के बाशिन्दे एक दिन छोडक़र पेयजल प्रदाय की त्रासदी भोगने पर मजबूर हो रहे हैं।

आजादी के पहले के वर्षों पुराने पम्प और वृद्ध और जर्जर हो चुके इंटकवेल और फिल्टर प्लांटों के पुर्नउद्धार के लिये कोई योजना अभी तक मैदान में मूर्तरूप लेती दिखायी नहीं दे रही है। माल कूटने के चक्कर में और स्मार्ट सिटी के मद में मिली राशि को बत्ती लगाने के चक्कर में हामूखेड़ी और कानीपुरा क्षेत्र में और उच्चस्तरीय पानी की टंकियों का निर्माण किया जा रहा जबकि वर्तमान में कार्यरत 44 टंकियों को पूरी क्षमता के साथ पी.एच.ई. विभाग भर नहीं पा रहा है।

 टंकी में आठ साल बाद भी पानी नहीं भरा

44 के अलावा 4-5 उच्चस्तरीय टंकिया बंद पड़ी है, जिनमें छत्रीचौक, नीमनवासा, ढांचा भवन की पुरानी टंकी और उजरखेड़ा में सन् 2016 में बनी लाखों की टंकी में आठ साल बाद भी आज तक एक भी बूँद पानी नहीं भरा गया। उम्मीद है 2028 के सिंहस्थ में 12 वर्षों बाद यह उच्चस्तरीय टंकी, पानी के दर्शनों का लाभ ले पायेगी। स्मार्ट सिटी परियोजना में पेयजल आपूर्ति की पर्याप्त व्यवस्था के लिये नये पेयजल स्त्रोत निर्माण की दीर्घकालिक परियोजना के साथ ही गंभीर डेम और गऊघाट प्लांट की पुरानी सारी मशीनरी को बदला जाना था पर ऐसा कुछ हुआ नहीं।

अब बात करते हैं हमारी स्मार्ट सिटी उज्जैन के डे्रनेज सिस्टम की, बीते दिनों मात्र ढ़ाई इंच बारिश से स्मार्ट शहर की सारी सडक़ें जलमग्र हो गयी, शहर के सारे नाले-नालियां चौक पड़े हैं, जिनमें मलवा भरा पड़ा है।

प्रभु! हमारे यहाँ 1600 मिमी व्यास की डे्रनेज पाइप लाईन को साफ करने के संसाधन हमारे पास नहीं है इस गौरवशाली नगर के लिये और खासकर पी.एच.ई. विभाग के लिये शर्मनाक बात यह रही कि स्मार्ट सिटी उज्जैन को डे्रनेज पाइप लाईन की सफायी के लिये भोपाल से इंजीनियर और मशीन बुलानी पड़ी। जिससे यह संदेश हो गया कि स्मार्ट सिटी उज्जैन के डे्रनेज विभाग का अमला अकर्मण्य और अक्षम है।

हद तो तब हो गयी जब भोपाल से आयी टीम का सम्मान करवाया गया। सम्मान के कुछ ही दिनों बाद वह चेंबर फिर उफना गया और लाईन चोक हो गयी। क्या मेरी स्मार्ट उज्जैयिनी में डे्रनेज लाईन की सफाई के लिये पर्याप्त मशीनरी और संसाधन नहीं होना चाहिये? प्रभु आप ही बताओ।
(शेष व्यथा कल)

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