अर्जुन सिंह चंदेल
एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान का एक और महत्वपूर्ण आकर्षण है इस उद्यान में 12 वर्षों में आने वाले नीलकुरिंजी के फूल यह एक सुंदर फूल हैं।‘नीलकुरिंजी’ के फूल का वैज्ञानिक नाम ‘स्ट्रोबिलैंथेस कुंथियाना’ है, यह जब खिलता है तो नीलगिरी पर्वत शिखरों और पहाडिय़ों को नीला बना देता है इसी कारण इसे ‘नीलकुरिंजी’ कहा जाता है जिसका अर्थ होता है ‘नीला फूल’।
तमिल में कुरिंजी, मलयालम में गुरिगे। इसी फूल की वजह से नीलगिरी पर्वत श्रृंखला को नील (नीला)+ गिरी (पर्वत) नाम मिला। कुरिंजी का पौधा 1300 मीटर से 2400 मीटर की ऊँचाई पर ही उगता है। इसके पौधे आमतौर पर 30 से 60 सेमी ऊँचे होते हैं, अनुकूल परिस्थितियों में 180 सेमी से भी अधिक बढ़ जाते हैं। तमिलनाडु में रहने वाले पालियन आदिवासी लोग उम्र की गणना के लिये नीलकुरिंजी के फूल खिलने के वर्ष का इस्तेमाल संदर्भ के लिये करते हैं। यह पौधा सितम्बर-अक्टूम्बर के दौरान फूल देता है।
2006 को 7 अक्टूम्बर के दिन मुन्नार में ‘नीलकुरिंजी’ उत्सव मनाया गया। 2006 में नीलकुरिंजी के बड़े पैमाने पर खिले फूलों ने 10 लाख लोगों को आकर्षित किया। 2006 के बाद 2018 में भी नीलकुरिंजी के सुंदर फूलों को देखने के लिये मुन्नार में देशी-विदेशी पर्यटकों की भारी भीड़ थी। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने 2018 में स्वतंत्रता दिवस पर दिये गये भाषण दौरान नीलकुरिंजी का उल्लेख किया था।
तमिलनाडु के कोडईकनाल में स्थित भगवान मुरुगन (कार्तिकेय) को समर्पित कुरिंजी अंदावर मंदिर से भी नीलकुरिंजी फूलों का संबंध है। तमिल भाषा में कुरिंजी शब्द का अर्थ है ‘पहाड़ी क्षेत्र’ और अंदावर का अर्थ है ‘भगवान’। भगवान मुरुगन (कार्तिकेय) को पहाड़ के देवता के रूप में जाना जाता है। ‘कुरिंजी अंदावर’ मंदिर का ‘नील कुरिंजी’ फूल से भी संबंध है। यह फूल यहाँ भी मंदिर परिसर के आसपास 12 साल में एक बार ही पहाडिय़ों पर खिलता है।
2004 और 2016 में यह फूल आखरी बार यहाँ खिला था, ऐसी मान्यता है कि जिस साल कुरिंजी फूल खिलते हैं उस साल इस जगह से मिलने वाला शहद औषधीय महत्व रखता है। एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान में नीलकुरिंजी के फूल 6 वर्ष बाद 2030 में खिलेंगे मन में यह उधेड़बुन चल ही रही थी क्या हम 2030 में फिर से यहाँ आ पायेंगे तभी बारिश ने दस्तक दे दी।
वर्षा से बचते हुए एक शेड के नीचे जगह ली। पानी बंद होने पर बस स्टॉप पर पहुँच गये जहाँ से बस में सवार होकर मन में ‘तहर’ और फूलों की तस्वीरें कैद करते-करते नीचे आ गये जहाँ जीप वाला हमारा इंतजार कर रहा था होटल पहुँचाने के लिये। लगभग 7 बजे आ गये होटल, हमें निर्देश दिये गये जिनको भी खरीददारी करनी हो वह जा सकता है।
रात्रि का भोजन 9-30 बजे शुरु होगा। इंदौरी मित्र गये बाजार से काली मिर्च, इलायची, दालचीनी, तेजपत्ता ले आये। अपने राम तो आरामतलबी है होटल के कमरे में दो और साथियों के साथ आराम फरमाया। इंदौरी मित्रों के आने के बाद सत्संग चालू हुआ। घरों से लाये शक्कर पारे, लड्डू, इंदौरी नमकीन के पैकेट खुल गये। आनंद किया। निर्धारित समय पर रात्रि भोजन के लिये नीचे भोजनालय में आ गये। जहाँ कर्मचारी हमारा इंतजार कर रहे थे। मेरे लिये केरल की प्रसिद्ध मछली ‘फिश किंग’ बनायी गयी थी जिसका हमने स्वाद लिया। शाकाहारी भोजन भी बहुत स्वादिष्ट था।
सभी ने छक्कर भोजन किया हम रात को टहलते निकल पड़े मुन्नार की सडक़ों पर क्योंकि यात्रा में मुन्नार की यह आखरी रात थी, कल सुबह नाश्ते के बाद हमें 12 अगस्त को अगले पड़ाव पेरियार (थेक्डेडे) जाना था। रात को बढिय़ा नींद लेने के बाद सुबह उठकर नाश्ता करके ‘होटल हिल व्यू’ के सभी कर्मचारियों से विदा ली और उनकी अहर्निश सेवाओं के लिये धन्यवाद दिया। कल देखेंगे पेरियार में असली केरल।
शेष कल