मरते बांस के झुंड भी देकर जाते हैं बैम्बू चावल

अर्जुन सिंह चंदेल

मुन्नार से हमें जाना था केरल राज्य के एक और खूबसूरत पर्यटन स्थल थेकड़ी जिसे पेरियार, कुमिली के नाम से भी जाना
जाता है। हमारे टूर प्रोग्राम में थेकड़ी के लिये सिर्फ एक ही दिन आरक्षित था।

गूगल बाबा मुन्नार से थेकड़ी की दूरी 96 किलोमीटर बता रहे थे और समय लगभग तीन घंटे का। हमारे दल के कप्तान संकल्प  ने बताया  कि रास्ते में आपको मसालों का बगीचा भी दिखायेंगे। टेपो टे्रवलर ने सुबह 9:30 बजे मुन्नार छोड़ दिया, सुहाना सफर था मौसम खुशगवार, हमराही थे ह्रश्वयारे-ह्रश्वयारे दोस्त, अप्रतिम हरियाली, जब सब कुछ बेहतर हो तो लबा सफर भी बहुत छोटा लगता है। चारों और
मनमोहक हरियाली थी।

केरल में आज हमारा तीसरा दिन था इन तीन दिनों के दौरान एक इंच खाली भूमि हमें देखने को नहीं मिली जिस पर हरियाली न हो। हम
ऊपर वालों से पूछ रहे थे केरलवासियों ने पूर्वजन्म में ऐसे कौनसे पुण्य कार्य किये थे जो तूने तेरी पूरी नेमत इस राज्य पर लुटा दी। केरल में हरियाली और पेड़ पौधों को देखकर ‘एक पेड़ माँ के नाम’ जैसे राजनैतिक जुमले बहुत बौने लगते हैं। ईश्वर की रचना देाकर मनुष्य की सोच बहुत छोटी लगती है। केरल में भगवान ने अरबों-खरबों पेड़ पौधे ऐसे ही उपहार में दे दिये।

खैर सफर चल रहा था सडक़ के दोनों और मसालों के पौधे भी नजर आने लगे थे। दो घंटे के सफर के बाद चाय व लघुशंका के लिये गाड़ी रोक दी गयी। एम.सी. कैफे पर, हमारे ग्रुप लीडर केरल के चह्रश्वपे-चह्रश्वपे से वाकिफ हैं वह जानते थे चाय कहाँ अच्छी मिलेगी। कुछ साथियों
ने ताजे नारियल के जूस का आनंद लिया तो कुछ ने चाय का। लगभग दस मिनट के विश्राम के बाद कॉरवा फिर आगे बढ़ गया। थेकड़ी अब नजदीक ही था शायद 25-30 किलोमीटर ही। सडक़ छोटी जरूर थी परंतु बिना गड्ढों वाली, गाड़ी भी 40-50 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से
चल रही थी।

गरम मसाले वालों के आलीशान शोरूम

थेकड़ी से लगभग 10 किलोमीटर पहले हमारी गाड़ी हिंदुस्तान गरम मसाले वालों के आलीशान शोरूम के सामने रूकी, वहाँ पर लगभग आधा
दर्जन केरल बालाएँ शायद हमारा इंतजार ही कर रही थी। संभवत: उन्हें हमारी आने की पूर्व सूचना थी शोरूम के पास ही केसरी टूर एण्ड टे्रवल्स का स्वागत की अपील करता बोर्ड भी टंगा हुआ था जिसे देखकर हमें सुखद अनुभूति हुयी। शोरूम के प्रबंधक ने एक बाला को हमारे दल के लिये तैनात कर दिया। शोरूम के पीछे ही उनका हर्बल एवं आयुर्वेदिक बगीचा था।

हमारे दल के लिये नियुत महिला काफी विदुषी थी उसने हमें विस्तार से और बड़े अच्छे तरीके से अपनी कंपनी हिंदुस्तान के हितों का संवर्धन करते हुए काली मिर्च, लौंग, इलायची, अदरक, हल्दी, कोको, जायफल, वनिला, कॉफी के पौधे दिखाये, साथ ही उनके गुण दोषों के बारे में भी
विस्तार से बताया। शायद वह विदुषी महिला आयुर्वेद चिकित्सा का भी ज्ञान रखती थी।

बांस के झाड़ में फूल

हिंदुस्तान गरम मसाले वालों के बगीचे में एक अकल्पनीय चीज देखने को मिली। अपने राम तो बचपन से यही जानते थे कि चावल धान के खेतों में ही पैदा होते हैं पर इस बगीचे में चावल का उत्पादन करने वाला बांस का पेड़ भी देखा है ना गजब बात। चलो जानते हैं, बांस के पेड़ की औसत उम्र 50 वर्ष होती है, बांस के पेड़ का जब अंतिम समय आता है तब बांस के झाड़ में फूल आते हैं, इन फूलों को मरते बांस के पेड़ की आखरी निशानी माना जाता है। इन्हीं फूलों में से एक विशेष प्रजाति का चावल उगता है बैबू (बबू) राइस कहा जाता है, इसे उगाया नहीं जाता। बांस के झाड़ में 50 साल में एक बार चावल वाले फूलों से निकले चावल को मुलयारी चावल भी कहा जाता है।

बांस के फूल से उगने वाले बैबू चावल की विशेषता यह है कि इसको खाने से लंबे समय तक भूख नहीं लगती, प्रोटीन से भरपूर होने के कारण शरीर मजबूत होता है, जोड़ों के दर्द, कमर के दर्द के लिये यह रामबाण है। भारत में 6000 तरह के चावल की प्रजाति में यह चावल कुछ
अलग हट कर है जिनका बाजार में मूल्य 200/- रुपये प्रति किलो है।

कल जानेंगे इन मसालों की कीमत।

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