अर्जुन सिंह चंदेल
जब तक मसालों के बगीचों में थे बहुत आनंद आ रहा था जैसे ही बाहर चमचमाते शोरूम पर आये तो मसालों के रेट सुनकर होश फाख्ता हो गये। जो इलायची अच्छी से अच्छी उज्जैन में 2500 से 3200 रुपये किलो मिल रही है मतलब सबसे सर्वोत्तम 3200/- वह केरल में 3900/- रुपये, इसी तरह लोंग, कालीमिर्च, जायफल सबके दामों के यही हाल है। साथ गये हमराही भी सब सयाणे ही थे।
हमने भी झट उज्जैन मोबाइल फोन घुमाया और हमारे किरायेदार जो थोक के ही व्यापारी है उनसे सारे रेट ले लिये। शायद शोरूम का संचालक हमें पर्यटक के रूप में तो जानता ही था पर वह हम सबके मालदार होने का मुगालता पाल बैठा वह यह नहीं जानता था कि इंदौरी और उज्जैनी वाले ऊँची चीज होते हैं और जब दोनों ही मिश्रण का तडक़ा लग जाय तो क्या कहने।
खैर उस मसाले वाले से कभी ना मिलने का वायदा करके अलविदा कह दिया। आधा घंटे बाद ही हम लोग भगवान के देश की एक खूबसूरत जगह ‘थेक्कड़ी’ पहुँच गये थे। उस खूबसूरत जगह में हमें एक ही रात रूकना था पर यहाँ भी हमारा आशियाना बहुत सुंदर था। होटल का नाम था ‘एलीफेन्ट रूट’ थेक्कड़ी के दिल में स्थित सर्वसुविधायुक्त होटल रिसॉर्ट की वास्तुकला भारतीय अवधारणाओं और पश्चिमी आराम का एक संयोजन है।
प्रकृति की गोद में बसे इस होटल की सुंदरता और साज-सज्जा देखकर ही दिल बाग-बाग हो गया। लगभग 12.30 के आसपास हम होटल पहुंचे थे, क्या बताये आपको? होटल के सारे कर्मचारी हमारा ही इंतजार कर रहे थे हमारे दल के सभी 11 सदस्यों का ऐसा स्वागत हुआ जैसा राजा-महाराजाों का होता है।
होटल के द्वार पर ही हम सबकी मंगल आरती की गयी, तिलक लगाया गया और पुष्प मालाओं से हमारा स्वागत किया गया और वेलकम ड्रिंक्स दिया। दिल को छू लेने वाला दृश्य था। आतिथ्य सत्कार कैसा होना चाहिये यह हमने आज केरलवासियों से सीखा।
चूँकि भोजन का समय हो गया था और हमारे पास घूमने के लिये आधा ही दिन बचा था इसीलिये सामान कमरों में भेजकर हमें सीधे भोजन की टेबल पर ही बिठा दिया गया। हमें आज केरल का पारंपरिक भोजन परोसा जाने वाला था जो शुद्ध और सात्विक होना स्वाभाविक था। पर यह कोई साधारण भोजन नहीं था शायद देवता भी इसी तरीके से और ऐसा ही भोजन करते होंगे जैसा हम करने वाले थे।
केले के पत्ते पर रखे ‘सध्या ‘
सबसे पहले केले के साफ सुथरे धुले हुए पत्ते रखे गये फिर सबसे पहले नमक, अचार, सलाद, सांभर, कढ़ी, दाल रसम, चावल, मीठा दलिया, पापड़ और भी न जाने क्या-क्या कम से कम चावल के साथ 20 तरह की साइड डिश होगी। इसे यहां पर सध्या कहा जाता है। इस पारंपरिक भोजन अनुशासन के साथ ही परोसा और खाया जाता है।
केले के पत्ते का किनारे वाला भाग भोजन कर रहे व्यक्ति के बॉयी ओर रखा जाता है। इसमें भात (चावल), नमकीन, अचार और मीठे व्यंजन रखे जाते हैं। अनेक स्वाद वाला यह भोजन हमारी रूचि को अनेक तरह से पूर्ण करने वाला था और हमें संतुष्ट। और हाँ खाने की पत्तल में पीले केले भी परोसे गये थे। केरल में रोटी का प्रचलन बहुत ही कम है, विशेष आर्डर करने पर ही बनायी जाती है।
जब इत्मीनान से भोजन परोस दिया गया तो होटल के मृदुभाषी प्रबंधक ने हम सबको खाने का पूर्ण विवरण, उसे किस प्रकार खाया जाता है उसके सारे कायदे कानून बताये। सबसे पहले चावल के थोड़े हिस्से को दाल के साथ बिना चम्मच का उपयोग किये और उसमें पापड़ के टुकड़े मिलाकर खाना चाहिये, दाल के बाद चावल को कढ़ी के साथ पापड़ मिलाकर उसके बाद सांभर के साथ चावल, फिर अंत में चावल के साथ रसम मिलाकर पापड़ चूरकर खाया जाता है, बीच में आप स्वादानुसार अचार, सब्जी का प्रयोग कर सकते हैं अंत में मीट दलिया (लपसी) खाइये और केले खाकर भोजन समाप्त कीजिये।
रोटी लेना ही भूल गये
इतना लजीज भोजन था कि हम रोटी लेना ही भूल गये सारा ध्यान चावल (भात) पर ही केन्द्रित कर दिया। सचमुच मजा आ गया। सावधान! अब सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि जिस केले के पत्तल में आपने खाना खाया था उसे फोल्ड (घड़ी) करने का भी एक तरीका है यदि आप ने केले के पत्ते को ऊपर से नीचे की ओर मोडक़र चारों ओर से फोल्ड किया तो उसका अर्थ होता है खाना स्वादिष्ट था और यदि केले के पत्ते को नीचे से ऊपर की ओर ले जाकर फोल्ड किया तो अर्थ होता है खाने में स्वाद नहीं है। हम सब ने उसे ऊपर से नीचे की ओर ले जाकर ही फोल्ड किया क्योंकि खाना जो स्वादिष्ट था। अब अगले अंक में पेरियार झील की यात्रा।