मेडिकल छात्रा ने जमा किए 81 लाख लेकिन प्री-पीजी परीक्षा में शामिल होने पर रोक
उज्जैन, अग्निपथ। आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज में पीजी में एडमिशन लेने वाली छात्रा ने सीट छोड़ दी। नियमानुसार 81 लाख रुपए जमा करने के बाद भी उसके पीजी की परीक्षा दोबारा देने पर 3 साल की रोक नहीं हटाई। इतना ही नहीं छात्रा के 3 साल तक पीजी की काउंसलिंग में बैठने पर रोक भी लगा दी। छात्रा ने इस डबल कार्रवाई के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी।
गुरुवार को सुनवाई के बाद अगले सप्ताह केस में 12 सितंबर को अंतिम बहस होगी। हाई कोर्ट ने मेडिकल कॉलेज से जवाब मांगा है। इंदौर हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति वीके शुक्ला ने आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज (निजी मेडिकल कॉलेज) उज्जैन को नोटिस जारी किया है। अब मामले को अंतिम बहस के लिए 12 सितंबर को सूचीबद्ध किया है।
याचिकाकर्ता रितिका माहेश्वरी की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने बहस की। तात्कालिकता को देखते हुए क्योंकि याचिकाकर्ता ने पहले ही पीजी सीट की पूरी फीस के रूप में 81 लाख रुपए जमा कर दिए हैं, लेकिन अब प्राइवेट मेडिकल कॉलेज और डीएमई के अनुसार वह सीट छोडऩे के नियमों के अनुसार 3 साल तक प्री पीजी परीक्षा में शामिल नहीं हो सकती है। अधिवक्ता आदित्य सांघी ने तर्क दिया कि नियम अवैध और मनमाना है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 से प्रभावित है और इसे अल्ट्रा वायर्स के रूप में रद्द किया जाना चाहिए।
एक गलती, दो सजा को लेकर छात्रा का यह है तर्क
आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज में एनआरआई कैटेगरी में छात्रा डॉ. रितिका माहेश्वरी ने एमबीबीएस के बाद पीजी एग्जाम दिया था। 2022 में पीजी कोर्स में एडमिशन मिल गया। बाद में व्यक्तिगत कारण बताकर डॉ. रितिका ने यह सीट खाली कर दी। सरकार का नियम है कि सरकारी या प्राइवेट कॉलेज में सिलेक्शन के बाद सीट खाली करने पर खर्च स्टूडेंट ही उठाएगा। साथ ही अगले तीन साल तक वह इस एग्जाम की काउंसलिंग में बैन रहेगा। बीच में सीट खाली करने पर डॉ. रितिका के परिवार ने 81 लाख रुपए हर्जाने में भर दिए।