उज्जैन, अग्निपथ। इस बार श्राद्ध पक्ष की शुरुआत 18 सितंबर से हो रही है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से श्राद्ध का आरंभ माना जाता है। एक दिन पूर्णिमा का और 15 दिन कृष्ण पक्ष के कुल मिलाकर के 16 श्राद्ध की श्रेणी में आते है। इस बार प्रतिपदा तिथि के क्षय होने से पूर्णिमा और प्रतिपदा के श्राद्ध एक ही दिन होंगे।
पं. अमर डिब्बावाला ने बताया कि पंचांग के गणित में तिथियां घटते- बढ़ते क्रम में रहती है। कभी तिथि का क्षय होता है तो कभी तिथि की वृद्धि होती है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। इस बार 16 श्राद्ध में प्रतिपदा तिथि का क्षय है। तिथि के अध्ययन से देखें तो 18 सितंबर के दिन दोपहर 12 बजे तक पूर्णिमा का श्राद्ध करें और 12 बजे बाद दोपहर 1.30 बजे तक प्रतिपदा का श्राद्ध कर लें।
उसके बाद तिथि के क्षय का आरंभ होगा, जिसमें श्राद्ध नहीं किए जाते। इस बार श्राद्ध पूर्वा भद्रपद नक्षत्र, बुधवार को मीन राशि के चंद्रमा की उपस्थिति में आरंभ होगा। ग्रहों में बुध आदित्य योग और शनि का शशयोग विद्यमान रहेगा। इस योग में श्राद्ध का आरंभ अच्छा माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र से देखें तो सूर्य परम कारक ग्रह बताए जाते हैं। वहीं, शनि का संबंध यम से माना जाता है। ऐसी स्थिति में जब सूर्य की तपिश पड़ती है। शनि का प्रभाव स्थापित होता है तो पितरों का अपना प्रभाव बढ़ जाता है।
श्राद्ध के बाद भी पितरों के निमित्त तीर्थ श्राद्ध अवश्य करना चाहिए
पं. डिब्बावाला ने कहा कि कई लोग गया जी में श्राद्ध करने के बाद अपने पितरों के निमित्त धूप, ध्यान, पिण्डदान नही करते, जबकि यह गलत है। श्राद्ध त्यागने से पितरों का दोष लगना शुरू हो जाता है। पौराणिक मत यह है कि जो पुत्र तन, मन, धन से योग्य है वह पितरों के निमित्त गया श्राद्ध अवश्य करे। इसलिए गया श्राद्ध के बाद भी पितरों के निमित्त तीर्थ श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।