अपने मध्यप्रदेश में बाहर के उद्योगपतियों के लिये ग्लोबल इनवेस्टर्स मीट आयोजित करने और रेड कारपेट बिछाने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार और प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय शिवराज सिंह जी के पास प्रदेश के बिल्डरों की समस्याओं के लिये समय नहीं है। राजनीति में उलझ़ी ‘रेरा’ के चेयरमैन पद की नियुक्ति के कारण प्रदेश में लगभग 5000 करोड़ के प्रोजेक्ट रूके हुए हैं।
रेरा (रेग्युलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट 2016 एक कानून है जिसे भारतीय संसद ने पास किया था। रेरा का मकसद रियल एस्टेट सेक्टर में ग्राहकों का निवेश बढ़ाना और उनके हितों की रक्षा करना है। काफी वक्त से घर खरीददार इस बात की शिकायत कर रहे थे कि रियल एस्टेट की लेनदेन एकतरफा और ज्यादातर डेलवपर्स के हक में थी। रेरा का मकसद विक्रेता और संपत्ति के खरीददार के बीच न्याय संगत और सही लेनदेन तय करना है।
रेरा लागू होने के बाद यह अनिवार्य कर दिया गया है कि रेरा में पंजीकृत होने के पहले किसी तरह का लॉन्च या विज्ञापन नहीं किया जायेगा, कोई भी अतिरिक्त इजाफा या परिवर्तन के बारे में आवंटियों को सूचना देना होगी। प्रोजेक्ट प्लान, ले आउट, सरकारी मंजूरी और लैंड टाइटल स्टेटस, उप ठेकेदारों की जानकारी साझा करनी होगी। प्रोजेक्ट निर्धारित वक्त पर पूरा होकर ग्राहकों को मिल जाए इस पर जोर दिया गया है।
पाँच साल की दोष दायित्व की अवधि की जवाबदारी डेवलपर्स की। रेरा के अंतर्गत 500 वर्ग मीटर से ज्यादा क्षेत्रफल पर विकसित प्रोजेक्ट या 8 से ज्यादा अपार्टमेंटस बनते हैं तो डेवलपर्स का अपने राज्य को रेरा में पंजीयन अनिवार्य है। हमारे मध्यप्रदेश में 4 जून 2020 तक 2640 पंजीकृत प्रोजेक्टस और 244 ऐसे प्रोजेक्टस थे जिनका पंजीयन प्रक्रिया में है। मध्यप्रदेश रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) के साथ 1897 प्रमोटर और 677 रियल स्टेट एजेंट रजिस्टर्ड है।
मध्यप्रदेश पिछले डेढ़ दो माह पहले तक तो सब कुछ ठीक था रेरा के चेयरमेन पद पर एंटोनी डिशा जी कार्यरत थे उनकी ईमानदारी और कत्र्तव्य निष्ठा के कारण रेरा में लंबित मामले त्वरित गति से निपट रहे थे परंतु प्रदेश की भाजपा सरकार को उनकी कार्यशैली में काँग्रेसियों के प्रति सहानुभूति नजर आयी और उन्हें पदमुक्त कर दिया गया उनके जाने के बाद रेरा के चेयरमैन का पद रिक्त है और फाइलों का अंबार लग गया है।
विगत डेढ़ माह से मुख्यमंत्री इस पद के लिये कोई योग्य अधिकारी नहीं ढूँढ़ पा रहे हैं जिसके कारण लगभग 5000 करोड़ लागत के प्रोजेक्टस चालू नहीं हो पा रहे हैं। देश-विदेश के बाहरी उद्योगपतियों को अनेक रियायतों की घोषणा जैसे मुफ्त बिजली, 1 रुपये प्रति वर्ग फीट में जमीन, टैक्स में छूट का लालच देकर उनके लिये रेड कारपेट बिछाने वाले मुख्यमंत्री से जिनके लिये ‘रेरा’ में चेयरमैन और दो अन्य सहायक संचालकों की नियुक्ति मात्र 10 मिनट का कार्य है , जो नहीं हो पा रहा है। चेयरमैन की नियुक्ति से 5000 करोड़ के प्रोजेक्टस को यदि मंजूरी मिल जाती तो प्रदेशवासियों को रोजगार भी मिलता और शासन के खजाने में लगभग 1000 करोड़ भी जमा होते। रेरा में नियुक्तियों का लंबित होना समझ से परे हैं।