उज्जैन, अग्निपथ। श्राद्ध पक्ष की चतुर्दशी पर मंगलवार को गयाकोठा तीर्थ और सिद्धवट के घाट पर पूर्वजों की आत्म शांति तर्पण और श्राद्ध कर्म सहित दूध अर्पित करने के लिए श्रद्धालुओं की एक किमी से अधिक लम्बी लाइन लग गई। अल सुबह से ही श्रद्धालुओं का पहुंचना शुरू हो चुका था। कई लोग शिप्रा नदी में स्नान करने के बाद पूजन कर्म के लिए घाटों पर पहुंचे थे।
तिथि घटने के कारण सोलह दिवसीय श्राद्ध पक्ष इस बार 15 दिनों में पूर्ण होगें। श्राद्ध पक्ष चतुर्दशी तिथि पर धार्मिक नगरी उज्जैन में देशभर से श्रद्धालु गया कोठा और सिद्धवट घाट पर पहुंचे। अंकपात स्थित गयाकोठा का महत्व बिहार के गया के समान माना गया है। यहां पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ रही। सप्त ऋषि मंदिर में दूध अर्पित करने के लिए श्रद्धालुओं की एक किमी लम्बी कतार लगी रही तो वही यही हाल सिद्धवट घाट पर भी देखने को मिला।
यहां पर हजारों लोगों ने पूर्वजों की आत्मशांति के लिए तर्पण, श्राद्धकर्म किया यह क्रम दिन भर चलेगा। क्षिप्रा तट स्थित सिद्धवट पर भी भगवान सिद्धवट को दूध अर्पित करने के लिए सुबह 5 बजे से ही लोगों की लाईन शुरू हो गई थी। पुजारी पंडित सुरेंद्र चतुर्वेदी ने बताया कि श्राद्ध पक्ष की चतुर्दशी पर सुबह 4 बजे से भगवान सिद्धवट मंदिर के पट खुलें। सर्वप्रथम सिद्धवट मंदिर की समस्त पुजारी मंडली द्वारा समस्त भक्तों के पूर्वजों की आत्म शांति व जनकल्याण एवं सृष्टि कल्याण के लिए भगवान सिद्धवट का पूजन अर्चन करने के पश्चात मंदिर प्रशासन द्वारा रखे गए निर्धारित पात्र में दूध अर्पित कर भगवान सिद्धवट का दुग्धाभिषेक संपन्न किया।
राम घाट पर भी भीड़
श्राद्ध पक्ष पर शिप्रा नदी के सभी घाट पर भी श्राद्ध कर्म करने का महत्व है। यहां पर भी बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ रही। शहर के आसपास क्षेत्रों में हो रही वर्षा के कारण पिछले दो दिनों से शिप्रा नदी का जल स्तर बढ़ा हुआ है। पर्व को देखते हुए होमगार्ड व एसडीइआरएफ के जवानों को सुरक्षा के लिए तैनात किया है।
सभी मृत आत्मा की शांति के लिए एक दिन में होगा तर्पण
अमावस्या के दिन कन्या राशि पर सूर्य, बुध की युति रहेगी। वहीं चंद्र व केतु भी इस राशि पर विद्यमान रहेंगे। सूर्य, चंद्र, बुध की युति अपने आप में श्रेष्ठ है और केतु पितरों के संबंध का प्रतिनिधित्व करता है। इन चारों ग्रहों की उपस्थिति में पितरों की पूजा विशेष फल प्रदान करने वाली होती है। 16 श्राद्ध का पर्व काल अपने आप में विशिष्ट माना जाता है। दोषों से मुक्ति के लिए इस दिन पूजन की मान्यता पुराणों में दर्शाई गई है। जो व्यक्ति 16 श्राद्ध में 16 दिन कार्य नही कर पाया हो वह इस दिन भी पितरों की निमित्त श्रद्धार्पण कर दें तो उनकी श्रद्धा मान्य हो जाती है। इस दिन पूजन करके अपने पितरों के निमित्त कर्म करना चाहिए, जिससे परिवार में सुख शांति और समृद्धि हो।
केडी पैलेस पर लगेगा मेला, अन्य घाटों पर होंगे तर्पण
बुधवार को पितृ पक्ष की अंतिम तिथि है। सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर सूर्य ग्रहण भी होगा, लेकिन ये ग्रहण भारत में नहीं दिखेगा, इसलिए इस ग्रहण का सूतक नहीं रहेगा। ग्रहण रात 10.23 से 2.06 बजे तक रहेगा। श्राद्ध पर्व के अंतिम दिन बुधवार को सर्वपितृमोक्ष अमावस्या पर शिप्रा तट पर स्नान के साथ ही पूर्वजों के निमित्त पिंडदान व तर्पण करने के लिए देश भर से श्रद्धालु यहां पहुंचेंगे।
ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले श्रद्धालु शिप्रा में डुबकी लगाने के साथ ही शरीर में देवी-देवता आने वाले व्यक्ति को स्नान कराने के बाद पूजा कार्य किया जाता है। सर्वपितृ अमवस्या पर शिप्रा नदी के रामघाट और केडी पैलेस पर भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचेंगे। यहां पर बुरी आत्माओं से छुटकारा पाने के लिए ग्रामीण इलाके के लोग भी पहुंचकर पूजन पाठ करेंगे।
पं. अमर डब्बावाला ने बताया कि श्राद्ध पक्ष में कुतप काल में पितरों के निमित्त तर्पण विधान, पिंड दान, ब्राह्मण भोजन, गाय, कौवा श्वान भिक्षुक को भोजन का दान तथा तीर्थों पर वैदिक ब्राह्मण को वस्त्र, पात्र का दान करने से पितरों को उसका पुण्य फल प्राप्त होता है। अमावस्या तिथि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र एवं ब्रह्म योग व कन्या राशि के चंद्रमा की उपस्थिति है। इस दिन कुंजर छाया नाम का योग भी बनता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार कुंजर छाया योग में पितरों का पूजन कई गुना पुण्य फल प्रदान करता है। कुंजर छाया नाम का योग कुतप काल के मध्य में दोपहर 12.23 बजे के बाद से शुरू होगा। इस योग में धार्मिक कार्य के साथ ही पितृ कार्य अवश्य करना चाहिए।