उज्जैन, (अर्जुन सिंह चंदेल) अग्निपथ। यारों का यार था ‘गुड्डू कलीम’। कहते है ना कोई भी इंसान पूर्ण नहीं होता है और ना ही सर्वगुण संपन्न। भगवान राम के किरदार में भी खोट निकाल दी थी जमाने ने। गुड्डू के पास लक्ष्मी जी शायद ‘कमल’ की जगह ‘उल्लू’ पर सवार होकर आयी थी।
गुड्डू कलीम का जन्म सन् 1964 के आसपास का होगा। 24 साल की उम्र में उसकी शादी इंदौर के आजाद नगर में रहने वाले बेहद गरीब मुस्लिम परिवार की युवती नीलोफर से हुयी थी। आजाद नगर में रहने वाली नीलोफर का परिवार आज भी मेहनत-मजदूरी करके अपना जीवकोपार्जन करता है। गुड्डू के साले रंगाई-पुताई के कार्य करते हैं।
गुड्डू बचपन से ही शैतान प्रवृत्ति का था। मुस्लिम परिवारों में वैसे भी अधिक संतानें होने के कारण पढ़ाई-लिखायी पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है। इसी का शिकार हुये गुड्डू की परवरिश को अच्छा नहीं कहा जा सकता है।
तीन भाइयों में सबसे बड़े रशीद भाई मध्यप्रदेश राज्य परिवहन निगम में चालक थे। दूसरे सलीम भाई का अधिकांश समय धरमबड़ला स्थित खेत पर ही गुजरता था। वह रहते भी वहीं थे। कोट मोहल्ला वाले मकान में वजीर खाँ का परिवार रहता था जिसमें उनकी पत्नी, चारों बेटियां, रशीद भाई और पत्नी रजिया बाजी और दो बेटे तथा गुड्डू कलीम थे।
बचपन से ही गुड्डू की पड़ोसियों से शिकायतें आने लगी थी। लड़ाई-झगड़ा, मारपीट करना आये दिन की बात हो चली थी। कोट मोहल्ला और गुदरी पर गुड्डू की चौपाल लगा करती थी। क्षेत्र के सारे बदमाश गुड्डू के झंडे तले इक_े होने लगे।
सन् 1982 में 18 वर्ष की उम्र में कलीम ने पहला अपराध किया जो पुलिस तक पहुँचा। व्यायामशाला की गली के आसपास रहने वाले सब्जियों का विक्रय करने वाले परिवार के साथ मारपीट कर दी, मामला थाने पहुँचा और गुड्डू को जेल जाना पड़ा। गुड्डू को जेल का माहौल रास आ गया। जैसे चारधाम यात्रा या मक्का-मदीना की यात्रा से सकून मिलता है वैसा ही सुख गुड्डू ने जेल में महसूस किया।
जेल में उसे उसके उस्ताद बने नवजवान साथी, जिनका शौक था अपराध करना, उनका सान्निध्य मिला। भले ही उसने स्कूल का मुँह नहीं देखा हो पर वह अपराध की ऐसी दुनिया में प्रवेश करने जा रहा था जहाँ एक अलग ही संसार है। हत्यारे, बलात्कारी, चोर-डाकू, सभी उसके संगी साथी थे। गुड्डू को उस अलग दुनिया के प्रोफेसर मिले जिन्होंने गुड्डू की दिलेरी और प्रतिभा का आकंलन बहुत जल्दी कर लिया। जेल में ही टे्रनिंग दी जाने लगी कि अपराध कैसे किये जाय।
18 वर्ष की उम्र का वह नादान बालक ‘मिट्टी का लौंदा’ था उसी प्रकार जैसे कि मिट्टी को यदि कुम्हार और ‘चाक’ मिल जाये तो उसे जैसा चाहे वैसे गढ़ा जा सकता है। देखते ही देखते बचपन का वह नटखट और शैतान बालक कब अपराधी बन गया परिवार को पता ही नहीं चल पाया। गुड्डू कलीम के लिये अब जेल ही उसका आशियाना बन चुका था। वह जेल से बाहर आता और फिर थोड़े ही दिन में कोई अपराध करके जेल पहुँच जाता।
जेल में आजीवन सजा काट रहे कैदी उसके अच्छे दोस्त बन गये। जेल में उसकी जान पहचान अच्छी होने के कारण उसे बाहरी दुनिया जैसी सुख-सुविधाएं मुहैया होने लगी। जिले भर के अपराधी उसे पहचानने लगे। दोस्त बनाने का गुण उसमें जबर्दस्त था। जब वह जेल से बाहर आकर शाम को गुदरी चौराहे पर खड़ा होता तो भीड़ जमा होने लगी। जेल में उसके साथ रहे अपराधी अब उसके दोस्त बन गये थे। शाम को वह गुदरी चौराहे पर मिलने आते तो गुड्डू गर्मजोशी से उनका इस्तकबाल करता। दावतें होती जिनमें जमकर मौज-मस्ती होती। अब गुड्डू कलीम का दोस्त वही बन सकता था जो भैरवगढ़ जेल रिटर्न हो।
गुड्डू कलीम’ हत्याकांड की कहानी – 1 : शैतान स्वयं संतानों के रूप में आकर खड़ा हो गया