50 हजार पौधे रोपने का दावा, मौके पर नदारद, निर्माण के समय 13 हजार पेड़ काटे थे
बदनावर, अग्निपथ। लेबड़-नयागांव फोरलेन निर्माण के समय सडक़ में बाधक बन रहे हरे-भरे छायादार व फलदार 13 हजार पेड़ों की 12 साल पहले बलि दी गई थी, किंतु इसकी तुलना में अब तक इसके किनारे पेड़ पनप नहीं पाए हैं। मरम्मत के बाद सडक़ें चकाचक हो गई हैं, लेकिन सडक़ों से हरियाली गायब है और उल्टे फोरलेन सडक़ पर सरपट दौड़ते वाहनों की बढ़ती संख्या से प्रदूषण में जरूर इजाफा हुआ है। अनुबंध के अनुसार कंपनी का 50 हजार पौधे लगाने का दावा धरातल पर सडक़ के दोनों ओर दिखाई नहीं दे रहा है, इससे सडक़ अब भी वीरान नजर आ रही है।
वर्ष 2008-09 में फोरलेन सडक़ का निर्माण मेसर्स वेस्टर्न एमपी इंफ्रास्ट्रक्चर एंड टोल रोड प्रालि द्वारा किया गया था। मुलथान से लेकर मनासा तक एक हजार 291 हरे-भरे पुराने छायादार व फलदार पेड़ इस दौरान काट दिए गए थे। जबकि 128 किमी में 13 हजार पेड़ काटे गए थे। वह भी इस शर्त पर कि कंपनी तीन गुना नए पेड़ तैयार करेगी। इसके लिए बकायदा कलेक्टर से अनुमति भी ली गई थी और इनकी तरफ से अपर कलेक्टर ने यह अनुमति 15 अप्रैल 2008 में दी थी, लेकिन पर्यावरण के प्रति न तो एमपीआरडीसी और न ही निर्माण एजेंसी ने गंभीरता दिखाई। जबकि फोरलेन कंपनी ने वन विकास निगम से वर्ष 2016 में पौधे लगाने के लिए डेढ़ करोड़ रुपये के अनुबंध की बात कही थी।
इस पर वन विकास निगम ने लेबड़ से जावरा तक 131 किमी में उसी वर्ष विभिन्ना प्रजाति के 50 हजार पौधे रोपे जाने की जानकारी दी थी। इनमें करंज के 20 हजार 770, शीशम के 23 हजार 690, केसिया सामिया के दो हजार 290, सप्तवर्णी के एक हजार 300, गुल हर्रा के 500, चिरोल के 350, गुलमोहर व जंगल जलेबी के 250-250, इमली के 200, कचनार व पेल्टाफार्म के 150-150, अशोक के 100 आदि किस्मों के पौधे शामिल थे।
इस संबंध में जागरूक लोगों ने एमपीआरडीसी समेत, कलेक्टर व अन्य अधिकारियों को नोटिस भेजा था। इसके जवाब में मप्र सडक़ विकास निगम भोपाल के बीओटी के मुख्य अभियंता आशुतोष मिश्रा द्वारा 30 सितंबर 2019 को पत्र के माध्यम से जानकारी दी गई। इसमें बताया कि रिपोर्ट के मुताबिक मार्ग के निर्माण में कुल छह हजार 744 वृक्ष बाधित थे, जिसमें संबंधित जिले के कलेक्टर द्वारा प्राप्त अनुमति के अनुसार कुल 50 हजार 94 पौधे लगाए जाना थे।
अनुबंधकर्ता (कंसेशनायर) द्वारा उक्त अनुमति अनुसार पौधारोपण किया गया है। जिसका सत्यापन उप वन मंडलाधिकारी एवं मप्र राज्य वन विकास निगम के अधिकारियों द्वारा किया गया था। उक्त सत्यापन में 54 हजार 804 पेड़-पौधे वर्ष 2017 में अर्थात सडक़ निर्माण के लगभग आठ वर्ष बाद भी मार्ग पर पाए गए थे। इसके अतिरिक्त पौधारोपण का कार्य पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए अनुबंधकर्ता कंसेशनायर द्वारा प्रतिवर्ष किया जाता है। इस वर्ष भी कंसेशनायर द्वारा लगभग आठ हजार पौधे फोरलेन किनारे लगाए गए हैं।
बेमानी लग रही तीन गुना की बात
उधर, 12 साल में जितने पेड़ काटे गए, उतनी संख्या में भी अभी तक पेड़ तैयार नहीं हो पाए हैं, तो तीन गुना की बात तो बेमानी लग रही है। दूर-दूर तक हरे पेड़ कहीं भी नजर नहीं आ रहे हैं। इससे अधिकांश सडक़ वीरान-सी लगती है। निर्माण एजेंसी का ध्यान सिर्फ टोल वसूली में है। जबकि पर्यावरण के प्रति लापरवाही नजर आ रही है। सडक़ विकास प्राधिकरण भी ध्यान नहीं दे रहा है। जनप्रतिनिधि, सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था एवं जागरूक लोगों द्वारा समय-समय पर इस संबंध में अधिकारियों को अवगत कराया जाता है, किंतु उनकी जायज मांगों पर भी गौर नहीं किया गया। इससे पर्यावरण का नुकसान हो रहा है।
शिकायत पर जांच कर कार्रवाई करेंगे
एमपीआरडीसी के असिस्टेंट सहायक मैनेजर प्रदीप कुमार सक्सेना का कहना है कि फोरलेन पर पौधे लगाने का कार्य निर्माण एजेंसी का है। उन्होंने वन विकास निगम से अनुबंध कर पौधे लगाए हैं। यदि सडक़ पर पेड़ नहीं मिलते हैं और इसकी शिकायत मिलेगी, तो जांच उपरांत कार्रवाई की जाएगी।
20 हजार पौधों का आर्डर किया है
वेस्टर्न एमपी रोड के हेड कृतार्थ राय का कहना है कि सडक़ चकाचक कर दी है। अब हरियाली फैलाना है। इसके लिए फोरलेन पर डिवाइडर और सडक़ किनारे जहां-जहां पौधे पनप नहीं पाए है, वहां दोबारा से गड्ढे खोदे जा रहे हैं। उनमें पानी और खाद डाला जा रहा है। इसके लिए 20 हजार पौधों का आर्डर कर चुके हैं। बारिश की शुरुआत में पौधारोपण का कार्य तेजी से किया जाएगा। अगले एक साल में चकाचक सडक़ के साथ ही इसके किनारों पर हरियाली नजर आएगी।