रियासतकालीन दो तालाब के अस्तित्व पर संकट

पारपंरिक केचमेंट एरिया बदलने से खेड़ा व ढोलाना तालाब में पर्याप्त पानी नहीं

बदनावर, अल्ताफ मंसूरी (अग्निपथ)। इस साल औसत से अधिक बारिश होने के बावजूद इलाके के 24 में से दो तालाब खाली रह गए। हाइवे निर्माण के दौरान ग्रामीणों के विरोध के बावजूद तालाब में पानी आने का रास्ता बदल देने से रियासतकालीन इन दो तालाबों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है।

उज्जैन-बदनावर फोरलेन निर्माण के दौरान जल संसाधन विभाग के अधीन खेड़ा व ढोलाना के रियासतकालीन दो तालाबों में पानी के परंपरागत रास्तों को बदलकर नए रास्ते से पानी की आवक देने के नाकाम प्रयास किए गए। दोनों ही तालाब सामान्य से अधिक 893.4 मिमी वर्षा होने के बावजूद वर्तमान में न्यूनतम जलस्तर (एलएसएल) यानि डेड स्टोरेट की स्थिति में है। जबकि संबंधित विभाग का दावा है कि उक्त तालाब मिट्टी व मुरम की खुदाई करने से गहरे हुए है। इसलिए उनमें पानी तो भरा है लेकिन वह गहराई में चला गया। जबकि किसानों का कहना है कि जब केचमेंट एरिया में कहीं गाद जमा है और पानी दूसरी ओर मोड़ दिया है तो फिर तालाब कैसे भर गए।

ग्राम खेड़ा का तालाब रियासतकाल में करीब 100 बीघा में बनाया गया था। जिससे तीन गांवों की करीब 400 बीघा कृषि भूमि सिंचित होती है। उक्त तालाब में पानी करीब तीन से चार किमी दूर बडऩगर मार्ग पर ग्राम बामनसुता के पास से आ रहा था। बरसाती पानी तालाब में अधिक मात्रा में आए इसके लिए इनकी साफ सफाई की आवश्यकता को देखते हुए साल 1990-91 में काम के बदले अनाज योजना के अंतर्गत पोल्ट्रीफार्म से महू-नीमच रोड के किनारे स्थित पुलिया तक कैचमेंट एरिया की सफाई करवाई गई थी। तब से पंपरागत रास्ते से ही आवक हो रही थी।

ग्रामीणों के विरोध पर अधिकारियों ने किया था पानी पहुंचने का दावा

किंतु उज्जैन-बदनावर फोरलेन निर्माण के दौरान पोल्टीफार्म के यहां से परपंरागत रास्तों को यू टर्न देकर तालाब में पानी आवक के नए रास्ते तैयार किए जा रहे थे। उसी दौरान आसपास के किसानों ने इसका विरोध किया था। उनका कहना था कि पारंपरिक रास्ते को बदलकर बनाए जा रहे नए कैचमेंट से तालाब में वर्षाकाल का पानी पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाएगा। तब एनएचएआई, निर्माण एजेंसी जीआर इंफ्रा प्रोजेक्ट व जलसंसाधन विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचं और आश्वासन दिया था कि किसी भी तरह से तालाब में पानी की आवक अवरूद्ध नहीं होगी। जल संसाधन विभाग के तत्कालीन एसडीओ राहुल ठाकुर ने यहां तक कह दिया था कि मैंने पूरी तरह सर्वे कर लिया है और खेड़ा तालाब में पानी पहुंचाने की गारंटी मेरी है।

इस बीच इसी साल 16 जून को वर्षा हुई और व्यवस्था की पोल तब खुल गई जब पानी तालाब में जाने की बजाय किसानों के खेतों में भर गया। तब ताबड़तोड़ मशीनें बुलवाकर खेतों से पानी निकाला। किसान विक्रम पाटीदार, अशोक देव, हरीश पटेल, गोपाल सेठ, कैलाश मुकाती आदि का कहना है फोरलेन निर्माण के दौरान ही तालाब में पानी की आवक के रास्तों को लेकर चेताया था। तब अधिकारियों ने मिलकर भरोसा दिलाया था कि फोरलेन निर्माण के केचमेंट के नए रास्तों से भी तालाब में पानी उतनी मात्रा में ही आएगा जैसे वर्षो से आ रहा है। लेकिन विडबंना देखिए कि सामान्य से अधिक 893.4 मिमी वर्षा होने के बावजूद तालाब में करीब 20 से 25 प्रश पानी ही जमा है। वह भी अधिक गहराई होने से जमीन में से हो रही आवक से पानी बढ़ रहा है। यही स्थिती ग्राम ढोलाना में स्थित रियासतकालीन तालाब भी की सामने आई है। जो वर्तमान में एलएसएल की स्थिति में ही है। जबकि क्षेत्र में करीब 24 तालाब में से 22 लबालब हो गए। ऐसे में इन तालाबों से किसानों को सिंचाई के साथ भूमिगत जल स्तर की भी चिंता है। गर्मी के दिनों में पेयजल संकट भी झेलना पड़ सकता है।

इनका कहना है

तालाब में मुरम और मिटटी को लेकर खुदाई से तालाब गहरा हो गया है। इस मानसून में हुई वर्षा का पानी तालाब में आया है जो तालाब की गहराई में चला गया है। इस वजह से तालाब खाली दिख रहा है जबकि गत वर्ष की भांति ही तालाब वर्तमान में भरा हुआ है।
– सोना कनोजे, एसडीओ जल संसाधन विभाग, बदनावर

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