उज्जैन, (अर्जुनसिंह चंदेल), अग्निपथ। जघन्य और विरले गुड्डू कलीम हत्याकांड के दो प्रमुख किरदार मरहूम गुड्डू कलीम और हत्या के आरोपी छोटे बेटे दानिश के जीवन से पाठकों को बहुत करीब लाने का प्रयास मैंने किया है ताकि पाठक किरदारों के चरित्र और उनके गुण-दोष में की सूक्ष्म विवेचना कर सके। आज मैं आपको रूबरू करवाता हूँ मृतक गुड्डू कलीम की पत्नी नीलोफर के किरदार से।
रोज कुँआ खोदकर पानी पीने वाले बेहद गरीब परिवार की लाड़ली बिटिया नीलोफर अब जवान हो चली थी गरीब पिता को उसकी शादी की चिंता सताने लगी थी। रिश्तेदारों ने बताया कि उज्जैन निवासी वजीर खाँ के परिवार में उनका छोटा बेटा कलीम शादी योग्य है वहाँ नीलोफर की शादी की बात चलायी जा सकती है। सामान्य परिवार है, बेटी खुश रहेगी।
बात चली रिश्ता पक्का हो गया पर अमूनन जैसा होता है कि गरीब पिता अपनी बेटी का विवाह किससे कर रहा है उस लडक़े के गुण-दोष की विवेचना करने का अधिकार नहीं होता। नीलोफर के साथ भी ऐसा ही हुआ, गुड्डू कलीम का स्वभाव, पढ़ायी-लिखायी, कार्यशैली, रोजगार की तहकीकात किये बिना ही रिश्ता पक्का कर दिया गया। नीलोफर फारसी शब्द है जो महिलाओं का ही होता है। यह शब्द मूलत: संस्कृत के नीलोत्पल से बना है। नीलोफर का शाब्दिक अर्थ है कीमती, दुर्लभ, नीला कमल, एक फूल, लिली जो पानी के तालाबों, नदियों या झीलों में खिलती है।
सन् 1988 में गुड्डू कलीम उज्जैन से बारात लेकर गये और नीलोफर को अपनी जीवन संगिनी बनाकर ले आये। नीलोफर का भाग्य भी उसे महाकाल की नगरी ले आया जहाँ उसे अपने नाम के शाब्दिक अर्थ अनुसार आगे का जीवन तालाब के गंदे पानी में खिले कमल के फूल के सामान ही गुजारना था। वजीर खाँ के परिवार को उम्मीद थी कि बहू नीलोफर कलीम को संभाल लेगी पर ऐसा हुआ नहीं गुड्डू की दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं हुआ।
वही आवारागर्दी, गलत लोगों की संगत, घर देर से लौटना। नीलोफर को पत्नी का सुख नहीं मिल पा रहा था। पति की ओर से मान, सम्मान, प्यार-दुलार से वह वंचित थी। शादी के एक-दो साल तो ठीक चला फिर पति-पत्नी के बीच कहासुनी और किचकिच चालू हो गयी। इसी बीच शादी के डेढ़ साल बाद नीलोफर गर्भवती हो गयी और उसने आसिफ को जन्म दिया।
ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था वजीर खाँ के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूटने वाला था। जिस परिवार की वह बहू बनकर आयी थी वह परिवार अभिशापित होने वाला था। सन् 1990-92 के बीच नीलोफर के जेठ सलीम की हत्या हो गयी। सलीम भाई का बेटा आरिफ उस समय मात्र 3 वर्ष का रहा होगा और बेटी एक-डेढ़ साल की। सलीम भाई की मौत के बाद उनकी पत्नी भी बच्चों को छोडक़र चली गयी।
अब नीलोफर पर तीन बच्चों की जवाबदारी आ गयी थी स्वयं का बेटा आसिफ, सलीम भाई का बेटा आरिफ और उनकी बिटिया इसी बीच नीलोफर ने एक और बेटे को जन्म दिया जिसका नाम था दानिश। जिस समय शादी के बाद नीलोफर के सांसरिक सुख भोगने के दिन थे, घूमने-फिरने, मौज-मस्ती के दिन थे उस समय वह चार-बच्चों की परवरिश में मशगूल हो गयी।
संयुक्त परिवार था और छोटा सा घर। जैसे-तैसे दिन गुजर रहे थे और सलीम भाई की मौत का जख्म धीरे-धीरे भर ही रहा था कि 97-98 में वजीर खाँ के बड़े बेटे रशीद जो म.प्र. राज्य परिवहन निगम में चालक थे उन्होंने छोटे भाई सलीम के हत्यारे के पिता खडग़सिंह की निर्मम हत्या कर दी।
रशीद भाई को आजीवन कैद की सजा हो गयी और सजा दौरान ही बीमारी से मौत। रशीद भाई के दो बेटे, सलीम भाई के दो बच्चे, कलीम के दो बेटे 6 बच्चों की देखभाल राजिया और नीलोफर को करनी पड़ी। गुड्डू कलीम का पत्नी की ओर ध्यान नहीं देना नीलोफर से दूरियां बढ़ा रहा था।
बदनसीब नीलोफर अब अभिशप्त परिवार की बहू थी। परिस्थितियां बदली उसका पति पार्षद बना और धन संपदा भी बेतहाशा आ गयी, वजीर पार्क में शानदार बंगला बन गया, ऐशो आराम के सारे भौतिक साधन मिल गये परंतु नीलोफर का पति गुड्डू उसके साथ मारपीट तक करने लगा जब चाहे घर से निकाल देता, वह कई दिनों तक मायके रहती फिर ले आता।
गाली-गलौच तो सामान्य बात थी। अशिक्षित और संस्कारविहीन गुड्डू के पास धन की देवी लक्ष्मी सचमुच उल्लू पर सवार होकर आयी थी जिसने उसकी मति भ्रष्ट कर दी। घर की ‘लक्ष्मी’ के साथ वह जानवरों जैसा व्यवहार करने लगा और पत्नी पर चरित्र को लेकर शंका करने लगा। नीलोफर खून के घूँट पी रही थी, छोटा बेटा दानिश घर से निकाला जा चुका था। धीरे-धीरे मौत गुड्डू के नजदीक आ रही थी।
अगले अंक में…
‘गुड्डू कलीम’ हत्याकांड की कहानी – 1 : शैतान स्वयं संतानों के रूप में आकर खड़ा हो गया