गुड्डू कलीम हत्याकांड की कहानी – 8 : अत्याचार और अन्याय देखना और सहना ‘आसिफ’ की नियति बन चुका था

पिता कलीम का माँ नीलोफर के साथ ‘जाहिलों’ जैसा व्यवहार बेटे आसिफ को कचोटता था परंतु पिता के आतंक के कारण वह विरोध करने का साहस कभी नहीं जुटा पाया।

गुड्डू कलीम हत्याकांड की कहानी - 8

उज्जैन, (अर्जुन सिंह चंदेल) अग्निपथ। गुड्डू कलीम हत्याकांड की कहानी अब अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ चली है। मरहूम गुड्डू कलीम का बड़ा बेटा आसिफ भी इस हत्याकांड में आरोपी है। सुधि पाठक इस किरदार के बारे में भी अवश्य जानना चाहेंगे। आसिफ की उम्र वर्तमान में 32-34 साल होगी। आसिफ बहुत ही संजीदा, मिलनसार, व्यवहार कुशल है जन्म लेते ही उसके पिता के परिवार पर जहाँ एक ओर मुसीबतों का पहाड़ टूटा, वहीं उसने अपने आवारा पिता को ‘फर्श से अर्श’ पर भी देखा है।

अबोध बालक आसिफ ने एक ताऊ की हत्या एवं दूसरे ताऊ की असामायिक मौत को बाल्यपन में ही महसूस किया। वजीर खाँ के परिवार का माहौल ही नहीं था कि वहाँ बच्चों को स्कूल भेजने के बारे में गंभीरता से विचार किया जाय या उन्हें अच्छे संस्कार दिये जाये।

बचपन से ही परिवार में रुदन, क्रंदन देखने के कारण बालक आसिफ के दिमाग पर गहरा असर छोड़ा होगा। जब कुछ समझने की उम्र हुयी तो माता-पिता के बीच विवाद और मारपीट ने उस बच्चे के दिमाग को कुंठित जरूर किया होगा।

इतना सब होने के बावजूद भी वह पिता का आज्ञाकारी था। यह नहीं कहा जा सकता कि यह उसकी मजबूरी थी या उसका गुण। बड़े बेटे आसिफ की उम्र के साथ ही उसके पिता का साम्राज्य भी बढ़ता जा रहा था। आसिफ को वह मान-सम्मान नहीं मिल पा रहा था जो एक आदर्श पिता के बड़े बेटे के रूप में मिलना चाहिये।

आसिफ बालिग हो चुका था परंतु गुड्डू कलीम किसी भी मामले में उससे राय-मशिवरा नहीं करता था। सार्वजनिक रूप से भी आसिफ का अपमान करना कलीम के लिये सामान्य बात थी।

इन सबके बावजूद भी आसिफ कभी अपने पिता को पलटकर जवाब नहीं देता था वह अपने आपको आदर्श बेटा साबित करना चाहता था। 2013 के बाद गुड्डू पर जब राजनैतिक हमले होने शुरू हुए थे तो उसने अपने आपको समाज और दुनिया के सामने मजबूत दिखाने के लिये अपने ही मित्र नासिर लाला की बेटी से बड़े बेटे आसिफ की शादी धूमधाम से कर दी।

नासिर लाला की बेटी अब गुड्डू कलीम की बहू थी। आसिफ 25 वर्ष का हो चला था वह अशिक्षित होते हुए भी समझदार था। उसने अपने पिता के अवगुणों को दरकिनार करते हुए गुणों को आत्मसार कर लिया था।

मेहमाननवाजी, मान-सम्मान देना, संबंधों को बनाने की कला उसने सीख ली थी। आसिफ और उसकी पत्नी को वैसे तो किसी भी चीज की कमी नहीं थी परंतु घर-परिवार में शांति नहीं थी।

वजीर पार्क का गुड्डू का वह आलीशान मकान भी उसकी छत के नीचे रहने वाले को सुकून नहीं दे पा रहा था।

आसिफ के पिता कलीम का माँ नीलोफर के साथ ‘जाहिलों’ जैसा व्यवहार बेटे आसिफ को कचोटता था परंतु पिता के आतंक के कारण वह विरोध करने का साहस कभी नहीं जुटा पाया।

इसी बीच छोटे बेटे दानिश के प्रेम-प्रसंग ने घर की कलह में आग में घी का काम किया। रोज गुड्डू और छोटे बेटे दानिश में विवाद होने लगे। गुड्डू ने दानिश को घर से बाहर निकाल दिया और जायदाद में से उसे बेदखल करने की धमकी भी दे डाली।

दानिश ने अपने प्रेम की खातिर पिता के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया और घर छोडक़र प्रेम विवाह किया।

आसिफ की स्थिति दो पाटों के बीच फँसे होने जैसी थी वह चाहकर भी छोटे भाई दानिश का समर्थन नहीं कर पाया क्योंकि यदि वह ऐसा करता तो गुड्डू उसे भी पत्नी सहित घर से बाहर कर देता।

अन्याय और अत्याचार को देखना और सहना आसिफ की नियति बन चुकी थी। आसिफ अपने छोटे भाई दानिश को बहुत प्यार करता था। नीलोफर और बेटा आसिफ गुड्डू से छिपकर दानिश को उसके जीवन-यापन के लिये आर्थिक मदद भी करते थे।

शायद गुड्डू की हत्या वाले दिन आसिफ के सब्र का पैमाना छलक गया होगा, क्योंकि आसिफ और दानिश का इसके पूर्व कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं रहा है।

दानिश ने तो मुफलिसी के दिनों में भी कोई अपराध नहीं किया, मेहनत-मजदूरी करके अपना जीवन यापन किया। फिर ऐसा क्या हुआ?

अगले अंक में…

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