कालिदास के आंगन में उतरी डाकू सुल्ताना

लोक नाट्य समारोह में नाटक का मंचन

उज्जैन, अग्निपथ। उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं कालीदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन (म.प्र.) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय लोकनाट्य समारोह में शुक्रवार को राजेन्द्र त्रिपाठी द्वारा लिखित नाटक सुल्ताना डाकू का मंचन संतोष कुमार के निर्दशन में पं सूर्य नारायण व्यास संकुल प्रेक्षागृह में (म.प्र.) में हुआ।

नाट्य समारोह के पहले दिन सुल्ताना डाकू नाटक के मंचन का शुभारंभ मुख्य अतिथि प्रो. चिंतामणि मालवीय (विधायक) आलोट, विशिष्ट अतिथि गोविंद गन्धे, निदेशक, कालीदास संस्कृत अकादमी एवं शरद शर्मा ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। अंग्रेजी शासन के दौरान हुए बिजनौर के नजीबाबाद के प्रसिद्ध डाकू सुल्ताना के जीवन पर आधारित नाटक प्रस्तुत किया गया।

अंग्रेजी शासन के जीवंत दृश्यों ने सभी दर्शकों की प्रशंसा बटोरी। द्वारिका लोकनाट्य कला उत्थान के कलाकारों ने सुल्ताना डाकू के जीवन से जुड़े कई प्रसंगों को मंच पर जीवंत किया। नाटक के माध्यम से दिखाया गया कि सुल्ताना ब्रिटिश हकुमत के लिए तो डाकू था, लेकिन वास्तव में वह गरीब समाज के लिए किसी देवता से कम नहीं था।

आजादी के लिए जब समाज का हर व्यक्ति अपने स्तर से हर सम्भव योगदान दे रहा था। तो सुल्ताना डाकू निर्धन व शोषित लोगों को आर्थिक सहायता व सुरक्षा मुहैया करा रहा था। उसकी महिला मित्र फूलकंवर उसे इस गलत रास्ते से हटाकर दूसरे तरीकों से समाज की सेवा करने के लिए कहती है। तो सुल्ताना कहता है कि जब समाज में नीच, ऊंच, छोटा, बड़ा का भेद बढ़ेगा। तब सुल्ताना पैदा होता रहेगा। जब पुलिस के द्वारा उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है और फांसी की सजा सुनाई जाती है तो सुल्ताना डाकू स्वयं फांसी के फंदे पर लटक जाता है और नाटक का दु:खद अंत हो जाता है।

नाटक की परिकल्पना केंद्र के प्रभारी निदेशक आशिस गिरि ने किया है। सुल्ताना डाकू की भूमिका में संतोष कुमार तथा मंच पर अशर्फी लाल, रतन कुमार, भारत लाल, रमेश कुमार, आत्मा कुमार, विजय कुमार, घनश्याम, राकेश आदि ने अपने बेहतरीन अभिनय से दर्शकों को अभिभूत किया। इस अवसर पर काफी संख्या में दर्शक उपस्थि रहे।

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