अर्जुन सिंह चंदेल
मध्यप्रदेश के 8 करोड़ नागरिकों की आशाओं के केन्द्र बिंदु यशस्वी मुख्यमंत्री माननीय मोहन जी यादव सत्ता के सिंहासन पर सत्तारूढ़ हुए आपको लगभग 320 दिन पूर्ण हो चुके हैं। अर्थात कार्यकाल के 1825 दिनों में से लगभग 20 प्रतिशत पूर्ण होने को है। आपकी अहर्निश कार्यक्षमता काबिले तारीफ है। पर हम उज्जैनवासी थोड़े से आशंकित है। क्यों आशंकित है यह प्रश्न सुधि पाठकों के मस्तिष्क में उठना लाजमी है।
हम आज बिंदुवार बात करना चाहेंगे। सबसे पहले बात कर लेते हैं आपके गृह नगर, अद्भुत स्मार्ट सिटी, स्वर्ग से न्यारी बनने वाली हमारी अवंतिका की पेयजल प्रदाय व्यवस्था की, जो मानव जीवन के लिये हवा की तरह ही अति आवश्यक है। बीते कुछ दिनों से शहर के नागरिक पानी के लिये त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे हैं।
वर्षाकाल के पहले नागरिकों ने एक दिन छोडक़र की जाने वाली पेयजल व्यवस्था को भी स्वीकार किया परंतु अब विडम्बना देखिये पूरा गंभीर डेम लबालब है, अपनी पूर्ण क्षमता 2250 एम.सी.एफ.टी. की वह कई बार मर्यादा तोड़ चुका है। उसके बाद भी उज्जैन के नागरिकों के कंठ प्यासे हैं।
पी.एच.ई. (संधारण खंड) मरणासन्न अवस्था में है। विभाग के बेखौफ कार्यपालन यंत्री भास्कर को नागरिकों की परेशानी से कोई सरोकार नहीं है। वह ‘रोम जल रहा है नीरो बंसी बजा रहा है’ को चरितार्थ कर रहे हैं। माननीय मुख्यमंत्री जी आपको यह जानकर हैरत होगी कि आपके गृहनगर के वह पहले कार्यपालन यंत्री है जिन्होंने पदस्थी के बाद वाल्व मैन, लाईनमैन तो छोडिय़े विभाग के सब इंजीनियरों के साथ भी आज तक बैठक नहीं की। कार्य पर चर्चा करना तो दूर की बात है।
अदूरदर्शितापूर्ण निर्णय के कारण इंटेकवेल, फिल्टर प्लांट, पंपों की क्षमता बढ़ाये बिना बीते 5 सालों में टंकियों की बाढ़ ला दी गयी। राजनैतिक प्रभुत्व के कारण बिना सोच-विचार के ही मनचाही और अनुयुक्त जगहों पर उच्चस्तरीय टंकियों का निर्माण करवा दिया गया। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि वर्तमान में इस नगरी में 44 उच्चस्तरीय पानी की टंकिया कार्यरत है और दो-तीन निर्माणाधीन है।
आलम यह है कि पूर्व में बनी टंकियां ही पूरी क्षमता के साथ नहीं भर पा रही थी। जो टंकिया 5 मीटर तक भरायी जानी चाहिये वह 3-4 मीटर तक ही भरा पा रही थी। यदि आप पंपिंग और फिल्टर प्लांट की क्षमता नहीं बढ़ा पायेंगे तो टंकियां कैसे पूरी क्षमता से भरी जा सकती है, जर्जर हो चुके पंप और मोटर अपनी कार्यक्षमता का 60-70 प्रतिशत ही दे पा रहे हैं। अकर्मण्य और लापरवाह अधिकारियों की उदासीनता की भी इस कृत्रिम जलसंकट में महत्वपूर्ण भूमिका है।
उज्जैन के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग का गौरवशाली अतीत रहा है। चाहे वह 2003 का हो या 2008 का भीषणतम जलसंकट रहा हो तत्कालीन अधिकारी-कर्मचारियों ने अपनी कत्र्तव्यपरायणता का सर्वश्रेष्ठ इस शहर को दिया है और बाँध की आखरी बूँद तक का पानी इस शहर को मुहैया कराकर जलसंकट राहत दी।
विभाग के संसाधनों की चाहे वह ट्रांसफार्मर हो या मोटर पंप यह स्थिति रहती थी कि 200 प्रतिशत स्टैण्ड बाय (दोगुने विकल्प) रहते थे। अब हालात इतने बदत्तर है कि गंभीर बाँध से चले पानी का 40 प्रतिशत पानी लीकेज और फिजूलखर्ची में ही बर्बाद हो रहा है।
एक छोटा सा उदाहरण काफी है बीते दिनों जूना सोमवारिया क्षेत्र से शासकीय भूमि पर बसी अवैध कॉलोनी को जमींदोज किया गया था पर वहाँ के निवासियों के पाईप लाईन से आज भी पानी व्यर्थ बह रहा है। पी.एच.ई. के अधिकारियों के कानों पर जूँ तक नहीं रेंग रही है। माननीय मुख्यमंत्री जी व्यथित ह्रदय से यह आपको बताना पड़ा रहा है कि आपके गृहनगर के निवासियों को पानी का कृत्रिम संकट झेलना पड़ रहा है। कृपा करके यहाँ तैनात अकर्मण्य अधिकारियों को यहाँ से विदा करें।