मध्य रात्रि हरि-हर मिलन, परछाई स्वरुप भोलेनाथ को घर छोडऩे आए गोपाल जी भस्म आरती में हुए शामिल
उज्जैन, अग्निपथ। बैकुंठ चतुर्दशी पर गुरुवार की मध्य रात्रि भगवान महाकाल ने भगवान विष्णु को सृष्टि का भार सौंपा। चार महीने से यह दायित्व महाकाल खुद संभाल रहे थे। इसके बाद पालकी में विराजित भगवान महाकाल वापस मंदिर लौटे। इस दौरान गोपाल जी भी परछाई स्वरुप में उन्हें छोडऩे मंदिर तक आए। यहां भस्म आरती में शामिल होने के बाद गोपाल जी के परछाई स्वरुप से पुन: अपने भवन में पधारने का आह्वान किया गया।
इससे पहले गुरुवार को आधी रात को हरि-हर मिलन हुआ। रात करीब 11 बजे महाकालेश्वर मंदिर से भगवान महाकाल की सवारी गोपाल मंदिर के लिए निकली। हरि-हर मिलन के साक्षी बनने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु सवारी मार्ग के दोनों ओर के साथ ही द्वारकाधीश गोपाल मंदिर में जुटे। गोपाल मंदिर में हरि यानी विष्णु का हर यानी शिव से मिलन हुआ।
दोनों देवों को अपने-अपने स्वभाव के विपरीत मालाएं धारण करवाई गईं। महाकाल की ओर से द्वारकाधीश गोपालजी को बिल्वपत्र की माला और द्वारकाधीश गोपालजी की ओर से महाकाल को तुलसी पत्र की माला धारण करवाई गई। इसके बाद महाआरती हुई। पूजन, अर्चन के बाद महाकालेश्वर की सवारी देर रात वापस महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पहुंची।
गोपाल जी, भस्म आरती में होते हैं शामिल
महाकाल मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा ने गोपाल जी के महाकाल मंदिर तक साथ आने के बारे में बताया कि हरिहर मिलन के बाद जब भगवान महाकाल पालकी में विराज कर वापस मंदिर आते हैं, तो उनके साथ गोपाल जी भी परछाई स्वरूप में उन्हें घर छोडऩे आते हैं।
इस दौरान भगवान महाकाल की ओर से भी भस्म आरती में गोपाल जी का वैसा ही स्वागत होता है, जैसा गोपाल मंदिर में भगवान महाकाल का किया जाता है। शिवलिंग के समक्ष भगवान विष्णु की प्रतिमा रखी जाती है। भोग लगाया जाता है। बेल पत्र और तुलसी पत्र का यहां भी आदान-प्रदान होता है।