सशक्तिकरण संवाद-पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में कार्यक्रम का आयोजन
उज्जैन, अग्निपथ। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान (जेएनआईबीएम) में 2024 के विश्व दिव्यांगजन दिवस के अवसर पर एक गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर एक समावेशी और सुदृढ़ भविष्य के लिए विकलांग व्यक्तियों के नेतृत्व को बढ़ावा देना थीम के तहत दिव्यांगजनों के जीवन में गुणवत्ता सुधार के प्रयासों और समान अधिकारों के संरक्षण पर चर्चा की गई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर डॉ. कामरान सुल्तान, संकाय अध्यक्ष, एफएमएस पं. जेएनआईबीएम ने की। उन्होंने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि एक दिव्यांग व्यक्ति के रूप में कॉर्पोरेट क्षेत्र में जीवन कौशल चुनौतियों का सामना करने का अनोखा अवसर मिलता है, जिससे दृढ़ इच्छा शक्ति और संघर्ष की शक्ति बाधाओं को पार करने में सक्षम बनाती है।
इस समिट के दौरान प्रो अर्पण भारद्वाज, कुलगुरु विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने संस्थान के इस नवाचार आयोजन को अपराजित योद्धा के रूप में रेखांकित किया और पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान की सराहना की। उन्होंने सामुदायिक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ के सस्टेनेबल डेवलेपमेंट गोल्स से संबंधित पहलुओं पर भी प्रकाश डाला।
इस कार्यक्रम में एक और महत्वपूर्ण अतिथि के रूप में दिव्यांग शोधार्थी अभय जायसवाल को भी सम्मानित किया गया। उन्हें डीन, निदेशक, जेएनआईबीएम आईआईसी-आईक्यूएसी सेल द्वारा अभिनंदन पत्र प्रदान किया गया।
निदेशक प्रोफेसर डॉ. धर्मेंद्र मेहता ने इस आयोजन की पृष्ठभूमि और अवधारणा पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें 2024 के इस विशेष आयोजन के उद्देश्य और लक्ष्यों पर विस्तार से चर्चा की गई। कार्यक्रम में जेएनआईबीएम आईआईसी-आईक्यूएसी सेल की समन्वयक डॉ. नयनतारा डामोर ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
इस अवसर पर जेएनआईबीएम के स्टाफ सदस्य गोविंद तोमर, आमिर खान, दीपांशु, युवराज सिंह, मुकुल और क्रिएटिव रंगोली आर्टिस्ट मेघा शर्मा ने आकर्षक रंगोली बनाई, जो कार्यक्रम को और भी विशेष बना गई। साथ ही, भारत के प्रथम राष्ट्रपति स्व. डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी की 140वीं जयंती भी इस कार्यक्रम के दौरान मनाई गई और उनके स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को याद किया गया। यह आयोजन न केवल दिव्यांगजनों की सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, बल्कि समाज में उनके योगदान को भी स्वीकार करने का अवसर था।