अर्जुन सिंह चंदेल
गतांक से आगे
सिम्पली भूटान म्यूजियम अभी हमने आधा ही देखा था आधा बाकी था भूटान में लिंग को उत्पादकता का प्रतीक मानकर उसे देवता का स्थान देकर विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है, यह बताकर वह गाईड नवयुवती हमें लेकर आगे बढ़ चली जहाँ एक स्थान पर तरह-तरह के मुखौटे प्रदर्शित किये गये थे, जिनमें आदमी के जीवन के सारे रस दर्शाये गये थे। अलग-अलग भाव भंगिमा के लिये अलग-अलग तरह के मुखौटे थे।
साल में एक बार राजधानी में मुखौटा नृत्य
गाईड ने हमें बताया कि भूटान में मुखौटा नृत्य का विशेष महत्व है साल में एक बार राजधानी में मुखौटा नृत्य का आयोजन किया जाता है। हम सब ने मुखौटों को पहनकर आनंद लिया। वहाँ से निकलकर एक अन्य स्थान पर भूटान में खाना बनाने में उपयोग किये जाने वाले बर्तनों को प्रदर्शित किया गया था जिसमें भूटान के जन्म से लेकर वर्तमान तक के बर्तन दिखाये गये थे।
एक अन्य जगह पर भूटान में पैदा होने वाले अनाज, फल, सब्जियां प्रदर्शित की गयी थी। समय बीता जा रहा था आधा दिन गुजर चुका था, थिम्पू में आज हमारा आखरी दिन था अर्थात 7 जनवरी, कल सुबह हमें एक और पर्यटन स्थल ‘पुनाखा’ के लिये निकलना था। हमने अपने कदमों को गति दी क्योंकि ३-४ जगहें और देखनी थी और वहाँ शाम 5 बजे बाद सब कुछ बंद हो जाता है।
नवयुवती हमें अब एक बहुत बड़े कक्ष में ले गयी जहाँ भूटान के पारंपरिक नृत्य कर रहे लगभग १५-२० युवक-युवतियों की जोड़ी थी। हम सभी का एक बार फिर गर्मजोशी से उस कक्ष में स्वागत किया गया। आलीशान सोफों पर बिठाया गया और भूटान की विशेष ‘मक्खन वाली चाय’ पेश की साथ ही खाने के लिये मीठे चावल दिये गये। भूख तो लग ही रही थी हमने फटाफट मीठे चावल की एक कटोरी साफ कर दूसरी की माँग कर उसे भी निपटा दिया।
राष्ट्रीय खेल तीरंदाजी
सामने भूटानी मधूर धुनों पर सामूहिक नृत्च चल रहा था भाषा तो समझ नहीं आ रही थी पर सुनने में बहुत अच्छा लग रहा था, हमने भी उस डाँस ग्रुप के साथ नृत्य किया। सचमुच मजा आ गया ‘सिम्पली भूटान’ में प्रवेश के लिये खरीदे गये 6000 वसूल हो गये। उस कक्ष में लगभग आधा घंटा बिताने के बाद बाहर निकले और भूटान के राष्ट्रीय खेल तीरंदाजी का भी मजा लिया और सिम्पली भूटान संग्रहालय को अलविदा कहा।
मूर्ति के नीचे ध्यान कक्ष
लगभग दो बज चुके थे, थिम्पू में एक जगह लंच किया, फिर निकल पड़े ‘गोल्डन बुद्ध स्टेच्यू’ देखने। दुनिया की सबसे बड़ी काँसे से निर्मित डोरडेनमा बैठी हुयी मुद्रा में 177 फीट ऊँची बुद्ध प्रतिमा पहाड़ पर स्थित है। यह प्रतिमा शाक्यमुनि बुद्ध प्रतिमा है जो भूटान के चौथे राजा जिग्में सिग्ये वांगचुक की 60वीं वर्षगांठ पर स्थापित की गयी थी और इस प्रतिमा पर सोने का पानी चढ़ाया गया है।
मूर्ति के नीचे विशालकाय ध्यान कक्ष है जहाँ श्रद्धालु चिंतन और ध्यान करते हैं। आध्यात्मिक और स्थापत्य दोनों ही दृष्टि से उत्कृष्ट कृति-सुंदरता और शांति का आनंद लेने के लिये आकर्षित करती है।
राजा का महल: डेचन चोलिंग हाऊस
अब हम वापस लौट रहे थे तब हाथ से निर्मित कागज बनाने की छोटी इकाई को भी देखा जहाँ पेड़ की लुगदी से मोटा कागज बनाया जाता है। रास्ते में गाईड टेकराज ने वर्तमान राजा का महल दूर से ही दिखाया। जिसे ‘डेचन चोलिंग हाऊस’ कहा जाता हे इसमें भूटान के शाही परिवार का निवास स्थान और सरकारी दफ्तर है।
लोकल मार्केट घूमते समय राजधानी थिम्पू का चांगलिक यांग स्टेडियम भी देखा जहाँ प्रतिवर्ष 17 दिसंबर को स्थापना दिवस समारोह मनाया जाता है और इस समारोह में भूटान के राजा से मुलाकात का मौका भी मिल सकता है। बाजार में घूमते समय लगभग सभी दुकानों में चाहे शो पीस के रूप में हो या स्मृति चिन्ह के रूप में हो विभिन्न साइज के ‘लिंग’ रखे हुए दिखे। 8 बजे के लगभग पीस रिसोर्ट वापस आ गये। सत्संग के बाद रात्रि भोजन और फिर सुबह ब्रेकफास्ट के बाद अगले पड़ाव पुनाखा के लिये रवाना होने का कार्यक्रम तय करके सो गये।
शेष कल