अर्जुन सिंह चंदेल
गतांक से आगे
पुनाखा के आधे पर्यटन स्थलों को देख चुके थे आज की यात्रा को विराम देकर हमें होटल में चेक इन करना था घड़ी शाम के 4 बजा रही थी। रास्ते भर मन में विचार आता रहा था कि हमारे 140 करोड़ आबादी वाले हिंदुस्तान में भी तो शिवलिंग की पूजा की जाती है वह भी तो योनि के बीच स्थित लिंग ही तो है जिन्हें हम शिवलिंग के रूप में पूजते हैं। हमारे आसाम के गौहाटी में ‘कामख्या’ देवी के मंदिर में ‘योनि’ की ही तो पूजा होती है, फिर भूटान में लिंग की पूजा अनूठी कैसे हुयी? हाँ इतना अंतर जरूर है कि यहाँ सार्वजनिक रूप से जो चीज प्रदर्शित की जाती है हमारे देश में नहीं। हो सकता है हिंदु और बौद्ध धर्म के मिश्रण के कारण ऐसा हो रहा हो।
सोच विचार के बीच ही राष्ट्रीय राजमार्ग पर पुनाखा शहर के थोड़ी ही बाहर हमारा होटल ‘लोबेसा’ आ गया जो शायद हमारी भूटान यात्रा का सबसे सुंदर आशियाना साबित होने वाला था। हमारी लक्जरी गाड़ी के रूकते ही होटल लोबेसा का पूरा स्टॉफ हमारी अगवानी को आ गया। आधा दर्जन कर्मचारियों में सिर्फ एक ही पुरुष था बाकी सभी महिलाएं उनके देश की पारंपरिक डे्रस में थी यह डे्रस शायद दुनिया की सबसे अच्छी होगी वह इस मायने में कि इसमें स्त्री के शरीर का अधिकतम भाग ढक़ा रहता है।
हमने अपना-अपना सामान उठाने का प्रयास किया परंतु उन सभी ने विनम्रता से हमें मना कर दिया। स्वागत कक्ष में हमें परंपरा अनुसार वेल्कम ड्रिंक दिया गया और कमरे आवंटित कर चाबियां दे दी गयी। मेरा रूम ऊपर था बाकी साथियों के दो रूम नीचे थे। रूम से, काफी बड़ी टेरेस थी जहाँ सामने ही पहाड़ और नीचे हरियाली से लबालब खेत और पुनाखा शहर की जगमगाती लाइटें बहुत ही सुंदर और अप्रतिम दृश्य था।
भूटान की अधिकांश आबादी शाकाहारी
हाथ मुँह धोकर रिसेप्शन पर आये और रात्रि भोजन का आर्डर दिया जो पूरी तरह सात्विक और शाकाहारी था। हाँ एक बात का उल्लेख करना चाहूँगा कि भूटान की अधिकांश आबादी शाकाहारी है। माँस की दुकानें यदा-कदा ही होगी, होटलों में चिकन ही मिल पाता है। मछली का शिकार भूटान में प्रतिबंधित है और कड़ी सजा का प्रावधान है यही कारण है कि भूटान की नदियां मछलियों से भरी पड़ी है। 10 फीट ऊपर से भी नदियों के स्वच्छ जल में हजारों मछलियों को देखा जा सकता है। बकरा-बकरी तो हमें कम ही दिखायी दिये। यदि किसी पर्यटक द्वारा मछली खाने की फरमाइश की जाती है तो भारत से आयात की हुयी मछली बनाकर परोसी जाती है।
हम 6 लोग की टीम में एक साथी की तबियत थोड़ी नासाज हो रही थी। शाम ढल चुकी थी ठंड तो पुनाखा में भी थी परंतु थिम्पू से कम। होटल के रूमों में हीटर लगे हुए थे। पूरा फर्नीचर लकड़ी का था और खास बात यह थी कि होटल के रूमों को पारंपरिक तरीके से सजाया गया था, कुंडी से लेकर कपड़े टाँगने की खूँटी, हेंगर वाशरूम सभी में आधुनिकता का कहीं नामोनिशान तक नहीं था। सचमुच मजा आ गया।
हरि मिर्ची की सब्जी ‘चीज’ के साथ
यारों की महफिल रोशन होने का समय आ गया था। खुसफुसाहट चालू हो गयी थी। मेरा सौभाग्य कहूँ या पूर्वजन्मों का सदफल कि उम्र के आधार पर पूरी टीम में मैं चौथे क्रम पर था मुझे प्रेम और सम्मान सबसे ज्यादा दिया जाता है। मेरे ग्रीन सिग्रल का इंतजार किया जा रहा था। भूटान में होटलों के रेस्टोरेन्ट रात 9 बजे बंद हो जाते हैं, सारा स्टाफ अपने घरों को लौट जाता है। रात्रि में होटल में चौकीदार के अलावा कोई नहीं रहता। इसलिये 7 बजे मंडली बैठी और ठीक 8:30 पर होटल लोबेसा के डाइनिंग हाल में पहुँच गये जहाँ खाने की टेबल वहीं चिरपरिचित हिंदुस्तानी तुवर दाल तडक़े वाली और मिक्सवेज साथ में ‘इमा दात्से’ हरि मिर्ची की सब्जी ‘चीज’ के साथ (भूटानी स्पेशन) सजी हुयी थी।
बढिय़ा खाना खाया। 8 जनवरी कुछ घंटों के बाद समाप्त होने वाली थी जिसके साथ ही हमारी भूटान यात्रा का आधा सफर भी, कल हमें ‘पुनाखा’ के बचे हुए स्थान देखना थे। 9:30 पर सभी रूम में आकर सो गये। सर्दी की रात में रूम में हीटर की गरमी हो तो नींद जल्दी अपना असर दिखाती है। रात के 11 बजे होंगे गहरी नींद में मोबाइल के वाट्सअप नंबर पर बज गयी घंटी।
शेष कल