भूटान यात्रा वृत्तांत भाग-15 : भूटान में आसानी से नहीं मिलती दवाइयों की दुकान और अस्पताल

अर्जुन सिंह चंदेल

गतांक से आगे
मैंने आपको पहले ही बताया था कि टीम के एक सदस्य की तबीयत नासाज थी। फोन उसी कमरे से आया था बीमार साथी ने अस्पताल चलने की इच्छा जाहिर की और बताया कि उन्हें घबराहट हो रही है। सारे साथी उठ बैठे, तनाव में आ गये। किस्मत से हमारा गाईड टेकराज उसी होटल में रूका हुआ था पर हमारी गाड़ी को लेकर ड्रायवर और कहीं रूका था। आनन-फानन में होटल में ही रूके हुए एक अन्य यात्री के ड्रायवर से मदद माँगी वह सहर्ष तैयार हो गया। होटल में चौकीदार ही था।

बैचेनी महसूस कर रहे साथी को लेकर हमारे 2 अन्य साथी अस्पताल के लिये रवाना हो गये। लगभग डेढ़ घंटे बाद वापस लौटे तब तक होटल में रूके हम तीनों साथी भी जागते रहे। अस्पताल से लौटकर मेरे रूम पार्टनर ने अस्पताल की भव्यता का जो वर्णन किया उससे मुझे भूटानवासियों से जलन होने लगी।

मित्र ने बताया कि अस्पताल की सुंदरता पाँच सितारा होटल जैसी भव्य थी नवजवान भूटानी चिकित्सक रात्रि को 12 बजे भी चाक चौबंद मिला, वह भी एमबीबीएस हमारे देश की तरह नहीं जहाँ ९९ प्रतिशत अस्पतालों में रात्रिकालीन ड्यूटी पर सफेद कोट पहनाकर आरएमपी, बीएएमएस या झोलाछाप डाक्टरों को बैठा दिया जाता है।

हाँ खास बात यह थी कि पूरे अस्पताल में इक्का-दुक्का को छोडक़र मरीज ही नहीं थे। क्या स्वच्छ भूटान, हरे भूटान में लोग बीमार ही नहीं होते हैं? प्रदूषण मुक्त भूटान के डर से बीमारियां दूर रहती है? क्योंकि हमें 72 घंटे से ज्यादा भूटान में हो गये थे। दवाइयों की दुकान ही कहीं नजर नहीं आयी थी और ना ही निजी चिकित्सकों के बोर्ड।

माथा ठनका शायद दुनिया में सबसे ज्यादा किसी देश के निवासी खुश हैं तो वह देश भूटान ही है। क्योंकि हमारे देश में शायद ही ऐसा कोई घर होगा जिसमें प्रतिमाह दवाइयों का खर्च ना हो। नींद उड़ चुकी थी, गुगल देवता की मदद ली तो उन्होंने बताया कि सचमुच सबसे खुश लोग भूटान की धरती पर ही रहते हैं। और भूटान में कोई चिकित्सा महाविद्यालय भी नहीं है।

अधिकांश चिकित्सक और नर्से भारत से ही पढ़ाई करके आते हैं और देशवासियों की सेवा करते हैं। खैर हमारे साथी पूरी तरह से स्वस्थ निकले उन्हें कोई गंभीर रोग नहीं निकला। जिससे सभी खुश हो गये और चैन की नींद सो गये। सुबह आराम से उठना था क्योंकि मार्गदर्शक ने पहले ही बता दिया था कि 9 जनवरी को मात्र 3 ही जगह घूमने की थी। बाकि लोकल मार्केट का आनंद लेना था।

परंतु सुबह उठना तो जल्दी ही पड़ा नहीं तो ब्रेकफास्ट का समय खत्म हो जाता। नाश्ते का विवरण अब नहीं दूंगा। क्योंकि मिलता-जुलता ही रहता है। गाईड टेकराज तो उसी होटल में रूका था वह समय पर आ गया, ड्रायवर भी ठीक 9 बजे गाड़ी लेकर आ गया। नाश्ते के बाद निकल पड़े हम सैर पर पुनाखा शहर से दूर करीब 15-20 किलोमीटर ‘फोबजेखा वेली’ देखने।

वहाँ पहुँचकर पागल बन गये, वेली के नाम पर बड़ा सा समतल मैदान था। पहाड़ों पर रहने वाले भूटानियों के लिये शायद यह समतल बड़ा मैदान भी अजूबा था। सिर पीट लिया, अपने राम तो गाड़ी से भी नहीं उतरे, कुछ साथी उतरकर जरूर चहल कदमी कर वापस गाड़ी में आकर बैठ गये। रास्ते में गाईड ने साप्ताहिक हाट लगने वाली जगह बताई, जानवर याक को दिखाया।

अगला पाईंट था क्रेन पक्षी रिसर्च सेंटर जो भूटान का राष्ट्रीय पक्षी है जो सारस की तरह होता है। पर यह केन्द्र बंद पड़ा था। उसमें भी दम नहीं था। आज का पुनाखा का अगला और अंतिम पाइंट था गेगट गोनपा जो कि भव्य और आलीशान था ऐतिहासिक बौद्ध मठ को देखकर मजा आ गया। अतीत नजर आने लगा था। अंदर फर्श पर बर्फ की चादर बिछी हुयी थी जिस पर खड़े होकर फोटो आदि खींचकर रवाना हो गये मार्केट देखने।

शेष कल

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