भूटान यात्रा वृत्तांत भाग-16 : पुनाखा की मदहोश करने वाली मदमस्त शाम जिंदगी का स्वर्णिम इतिहास रच गयी

अर्जुन सिंह चंदेल

गतांक से आगे

पुनाखा के सारे पाईंट हम देख चुके थे पुनाखा में आज हमारी आंखरी रात थी। शाम के 4 बज रहे थे वैसे भी आज मजा नहीं आया घूमने में, पर हमारी आज की शाम हसीन होने वाली थी। गाईड टेकराज ने बताया कि होटल में कैम्प फायर का आयोजन है, आप लोगों के सम्मान में यह सुनकर ही दिल झूम उठा।

मार्केट में जाकर खरीदी तो करनी नहीं थी पर वहाँ का व्यवस्थित सब्जी मार्केट देखकर बहुत अच्छा लगा। करीने से सजी हुयी दुकानें, हर सब्जी पेक, साफ-सफाई इतनी की मक्ख्यिां भी कहीं नजर नहीं आती। सारी दुकानों पर महिलायें सजी-धजी व्यवस्थित परिधान में नजर आ रही थी। सब्जियों के भाव टटोले जो भारत से ज्यादा महँगी थी कारण कि अधिकांश सब्जियां भारत से आयात की जाती है। समय है तो आपको एक बात और बताना चाहूँगा वह यह कि भूटान में राजशाही का शासन है।

भूटान का राजप्रमुख राजा होता है। यह पद वंशानुगत है लेकिन भूटान के संसद (शोगडू) के दो तिहायी बहुमत द्वारा हटाया जा सकता है। संसद (भूटानी भाषा में शोगडू) में 154 सीटें होती है, जिसमें 105 स्थानीय चुने हुए सांसद, 12 धार्मिक प्रतिनिधि और राजा द्वारा नामांकित प्रतिनिधि 37 होते हैं। इन सभी का कार्यकाल 3 वर्षों का होता है।

मंत्री परिषद के सदस्यों का चुनाव राजा करता है और राजा की शक्तियां मंत्रिपरिषद में निहित होती है। खैर यह तो राज-काज की बात है परंतु अपने राजा के प्रति देशवासियों का इतना प्रेम शायद ही दुनिया के किसी और देश में होगा। भूटान में बीते चार दिनों में हम जहाँ-जहाँ भी गये चाहे होटल हो, रेस्टोरेन्ट हो, किराने की दुकान हो, सब्जी की दुकान हो हर जगह भूटान के वर्तमान राजा जिग्मे खेसर नामाग्याल वांग्चुक और उनके परिवार की सुंदर तस्वीरें लगी हुयी हैं।

सभी भूटानी, परिजनों से ज्यादा अपने राजा को प्यार करते हैं और उन्हें देवता की तरह मान-सम्मान देते हैं भूटान के राजा सचमुच के ‘अजातशत्रु’ हैं उनका कोई आलोचक हमें तो नहीं मिला दर्जनों लोगों से हमारी चर्चा के बावजूद भी। काश मेरे देश का भी कोई ‘राजनेता’ भारतवासियों के दिल में भूटान के राजा की तरह अपनी जगह बना पाता।

थोड़ी देर घूम फिरकर 6 बजे के लगभग होटल ‘लोबेसा’ पहुँच गये। होटल के महिला और पुरुष कर्मचारी कैम्प फायर की तैयारियों में लगे हुए थे कमरों के बाहर एक खुली जगह में बड़ा सारा म्युजिक सिस्टम लगा हुआ था। कोने में बार बनाया गया था जिसमें बीयर-व्हिस्की, रम की बोतलें सजाकर रखी हुयी थी। हम लोगों के लिये टेबल-कुर्सियां लगा दी गयी थी, दो-तीन बेंच भी लगी थी। हमसे निवेदन किया गया कि 7 बजे तक आप लोग कार्यक्रम स्थल पर आ जाये।

आज सत्संग बंद कमरे की जगह खुले आकाश के नीचे होने वाला था जहाँ मैदान के बीच में अग्नि देवता को भी सादर आमंत्रित किया जाने वाला था। अपने-अपने कमरों में जाकर हाथ-मुँह धोकर और सर्दी के हिसाब से गर्म कपड़े धारण करके खार मंजन और सामान लेकर कैम्प फायर वाली जगह आ गये।

हम 6 साथियों के अलावा एक वरिष्ठ सज्जन कनाडा के थे जो रेडक्रास में अधिकारी रह चुके थे और दो कपल थे जो विदेशी थे वह भी होटल लोबेसा में ही रुके थे। अग्नि प्रज्जवलित की जा चुकी थी, संगीत बज रहा था होटल की ही दो कर्मचारी बालाएँ गाना गा रही थी। मदहोश करने वाली शाम थी, हम लोगों ने उज्जैन के नमकीन का स्वाद सभी को टेस्ट कराया।

साथियों के सूखे कंठ तर होना चालू हो गये थे कनाडा के सज्जन से भी अच्छी दोस्ती हो गयी थी वह भी भारत घूमने ही आये थे। होटल वालों ने जो बीयर बार सजा रखा था उसकी बिक्री कम हो रही थी क्योंकि हमारी टीम के पास सोमरस स्वयं का ही था। शरीर में दो-तीन पेग जाने के बाद पैर अपने आप थिरकने लगते हैं। टीम के एक-दो साथी डाँस में भी महारथ रखते हैं। जब शाम मस्तानी हो, सर्द रात हो, बीच में अलाव हो, संगीत बज रहा हो तो नाचने वालों के पैर रूक नहीं सकते।

भूटानी बाला ने भी डाँस में साथ दिया जिससे 9 जनवरी की वह सर्द रात और हसीन बन गयी। लगभग दो घंटे गुजर चुके थे आनंद के। भोजनशाला बंद होने का समय हो चला था। सभी लोग भोजन करने के बाद सो गये। सुबह हमें 6 दिवसीय भूटान यात्रा के अंतिम पड़ाव ‘पारो’ के लिये रवाना होना था।
शेष कल

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