आज पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा था। अल सुबह भोर होने से पूर्व सोशल मीडिया पर पुरुषों सहित महिलाओं द्वारा भी पोस्ट डाल महिला दिवस की शुभकामनाएं, बधाई के साथ ही महिलाओं के शौर्य और संघर्ष की गाथा गाई जा रही थी। भोर होते ही अखबारों पर हाथ गया तो अधिकांश अखबार महिला दिवस पर महिलाओं की प्रगति, संघर्ष सहित आगे बढऩे के हौसले अफजाई की खबरें और विज्ञापन भरे पड़े मिले।
जब पूरा विश्व इस दिवस की महारानी लक्ष्मी बाई से लेकर महादेवी वर्मा जैसी कवियित्री, सरोजिनी नायडू सहित वर्तमान में संघर्ष कर खुद के पैरों आया खड़ी हुई महिलाओं के प्रति नतमस्तक हो रहा था। उसी दौरान आदिवास अंचल के थांदला नगर की कुछ महिलाएं अपने पतियों और गोद में अपने बच्चों को लेकर अनुविभागीय अधिकारी जो मातृशक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं के कार्यालय के बाहर हाथों में आवेदन लेकर परेशान दिख रही थी।
द्वारपाल बार-बार गोद में बच्चे उठाए महिलाओं की एक तरफ दूर जाकर बैठने की बात कर रहा था, तो अनुविभागीय अधिकारी कक्ष में व्यस्त थीं। परेशान महिला अपनी पीड़ा महिला दिवस पर सिर्फ महिला अधिकारी को अवगत करना चाहती थी। जैसे ही अनुविभागीय अधिकारी ज्योति परस्ते जो झाबुआ समयावधि बैठक हेतु बाहर निकली महिलाए, पति और बच्चों के साथ रोती, बिलखती हाथ जोड़ आवेदन थमाते हुए कहने लगी कि ऐसा हो गया तो हमारे पास आत्महत्या करने के अलावा और कोई चारा नहीं रहेगा।
महिला दिवस पर महिला अधिकारी को दिए आवेदन का कब और कितना असर होगा यह तो न्याय संगत, ईमानदार शासकीय कार्य प्रणाली बताएगी। किन्तु वहां खड़े अन्य लोगों के रोंगटे खड़े हो गए। आखिर महिला दिवस पर वो जिम्मेदार महिलाएं जिनके लिए उस संस्था और पद पर रहते हुए उन्हें आतमनिर्भर बनने न्याय दिलाना चाहिए। वो राजनीति के दल दल में फंस गरीब आत्मनिर्भर महिलाओं के परिवार उजडऩे की बाट जो रही।
महिलाए ने अनुविभागीय अधिकारी को दिए आवेदन का अवलोकन किया तो पूरा मामला समझ आया। दरअसल थांदला नगर परिषद ने राजस्व की सरकारी भूमि पर जहां दो दशक से गरीब परिवार की महिलाएं व उनके पति दो जून की रोटी कमाने व्यवसाय कर रहे थे पर न केवल उन्हें वहां से बेदखल किया। अपितु उक्त राजस्व मद की जमीन पर दुकानों का निर्माण कर कोरोना काल के लॉकडाउन में गुपचुप नीलामी भी कर दी। नगर पालिका के जिम्मेदार अधिकारी ने पूर्व में व्यवसाय कर रहे निचले तबके के लोगों को हटाने से पूर्व आश्वस्त किया था कि उक्त दुकाने बनने के बाद प्राथमिकता से उन्हें दी जाएगी।
जब दुकाने नहीं मिली और दुकानों का मामला उजागर होकर न्यायालय में पहुंचा तब पूरे नगर में परिषद की कारस्तानी उजागर हुई। महिलाओं का आरोप है कि वे बीते 20 वर्षों से पुराना छात्रावास भवन व पुरानी मंडी के समीप गुमटी लगा कर व्यवसाय कर रहे थे। जहां नगर परिषद द्वारा दुकाने बना कर बेच दी। जिसका हमे पता ही नहीं चला। शासन के नियमानुसार 3 वर्ष से अधिक से स्थापित लोगों की प्राथमिकता से दुकाने आवंटन में शामिल किया जाना चाहिए।
महिलाओं ने दिए आवेदन में यह भी आरोप लगाया मुख्य नगर पालिका अधिकारी प्रतिदिन अपने कर्मचारियों हमारे व्यवसाय स्थल भेज हमें डराते धमकाते हैं और हमारा सामान फेंक देते हैं। नगर परिषद कर्मचारी बिना किसी वैध आदेश के हमारी दुकानों में तोड़ फोड़ करते हैं। नगर परिषद की दादागिरी से हमको बचा कर नुकसान की भरपाई नगर परिषद से करवाई जाए।
नगर परिषद की ज्यादतियों से परेशान होकर हमारे पास आत्महत्या के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। महिला दिवस पर अब यदि नगर परिषद में अपने विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करने वाली जिम्मेदार जनप्रतिनिधि जो कहते नहीं थकती की राजनीति सेवा का माध्यम है और संघर्षों से आगे बढ़ा जा सकता।
इधर आत्मनिर्भर महिलाएं परिवार के लिए संघर्ष कर हताश होकर आत्महत्या करने को मजबूर हो रही।
अनुविभागीय अधिकारी को आवेदन देने पहुंची महिन्द्रा खुद आत्मनिर्भर होकर सिलाई के साथ कटलरी दुकान लगा कर परिवार का पालन पोषण कर रही। उनका पति कभी ड्रायवरी, कभी गन्ना ज्यूस आदि का व्यवसाय करता है। इसी तरह से संघर्ष लल्ली और मनीषा भी अपने बच्चों और परिवार के लिए संघर्ष कर रही। लेकिन नगर परिषद से परेशान होकर आत्म हत्या करने को मजबूर तो फिर नगर परिषद की महिला जनप्रतिनिधियों से लेकर महिला अधिकारी द्वारा महिला दिवस की बात करना बेमानी ही कहा जा सकता है।