मथुरा-काशी के बाद मांग नहीं करें, अन्यथा सिविल वॉर छिड़ जायेगा

मुस्लिम भी इसको स्वीकार करें, हमको फायनल साल्यूशन चाहिये-पद्मश्री पुरातत्वविद के.के. सुलेमान

उज्जैन, अग्निपथ। विक्रमोत्सव के चलते कालिदास अकादमी में तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय इतिहास समागम का शुभारंभ हुआ है, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में पद्मश्री पुरातत्वविद केके सुलेमान को भी व्याख्यान के लिये आमंत्रित किया गया है। सोमवार को केके सुलेमान के साथ एक पत्रकारवार्ता का आयोजन हुआ।

इसमें केके सुलेमान ने अपने विचार पत्रकारों के सामने व्यक्त करते हुए कहा कि राममंदिर का पक्ष रखने के पूर्व मैं जब मस्जिद के अंदर गया तो पिलर के माध्यम से इस बात की पहचान हुई कि यह 12वीं शताब्दी का मंदिर का पिलर था। यहां पर 90 के करीब हिन्दू मंदिर होने के सबूत अवशेष मिले। फायनल बताया गया कि यह हिन्दू मंदिर था। इसके बाद मुस्लिमों को भी इससे दोगुना पास ही 5 एकड़ में जमीन दे दी गई। पूर्व में कुछ गलतियां हुई हैं। दूसरे समाज को इसे स्वीकार करना चाहिये।

मंदिर के बारे में मेरे द्वारा खुलेआज वक्तव्य देने के कारण मुझे मुख्य सचिव ने बुलाकर सस्पेंड करने को भी कहा। लेकिन मैंने उनसे कहा कि जो सच है, वह मैंने बता दिया है। इसके बाद उन्होंने सस्पेंड की बात को निरस्त कर दिया।

मथुरा और काशी और दे दें, बाकी छोड़ दें

पुरातत्वविद् केके सुलेमान ने कहा कि हिन्दुओं को मंदिर को तोडक़र बनाये गये मस्जिदों के पीछे नहीं पडऩा चाहिये। इसका स्थाई साल्यूशन ढूंढना ही होगा। राम मंदिर के बाद हिन्दू मथुरा और काशी और ले लें। इसके बाद हिन्दुओं को अन्य मंदिरों की मांग नहीं की जाना चाहिये। ऐसा नहीं हुआ तो एक दिन हमारे यहां अफगानिस्तान और सीरिया जैसी स्थिति बन जायेगी। मुस्लिमों को भी इसे स्वीकारना होगा। ज्यादा मंदिरों के चक्कर में पड़ेंगे तो सिविल वॉर छिड़ जायेगा। राम मंदिर के चक्कर में मुझे केरल में परेशानी हुई।

पीएफआई के सक्रिय होने के कारण मेरे परिवार को पुलिस प्रोटेक्शन में रहना पड़ा। मैं मानता हूं कि हिन्दू मंदिरों में बहुत तोडफ़ोड़ हुई है। लेकिन हमको इसको फायनल साल्यूशन ढंूढना होगा।

ताजमहल कुतुबमीनार हिन्दू मंदिर नहीं

केके सुलेमान ने बताया कि ताजमहल हिन्दू मंदिर नहीं है। 1536 में सल्तनत पीरियड रहा। कोई भी एतिहासिक इमारत बनाये जाने को लेकर इसके उपर सिंगल डोम बनाये जाते थे। हिन्दुओं के समय डोम बनाने की कारीगरी नहीं थी।

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