भगवान वीरभद्र की पूजन के बाद मंदिर परिसर से प्रारंभ हुआ चल समारोह
उज्जैन, अग्निपथ। रंगपंचमी की शाम श्री महाकालेश्वर ध्वज चल समारोह शहर में धूमधाम से निकाला गया। पुणे से आया महिला ढोल चल समारोह का विशेष आकर्षण था।
श्री महाकालेश्वर ध्वज चल समारोह के लिए एक सप्ताह से तैयारियां की जा रही थी। बुधवार शाम को महाकालेश्वर मंदिर परिसर स्थित सभामंडप में महाकालेश्वर व भगवान वीरभद्रजी का पूजन किया गया।
इसके बाद ध्वज के साथ कोटितीर्थ कुंड की परिक्रमा लगवाई गई। 31 पताओं के साथ पुजारी, पुरोहित, परिजन और बड़ी संख्या में भक्त चल समारोह के साक्षी बने धार्मिक शकि, अखाड़े, ढोल, तारो और भजन मंडलियां मार्ग के रंगपंचमी पर बुधवार को ध्वज चल समारोह में भक्तों को महाकाल के चांदी के ध्वज के दर्शन हुए।
परंपरानुसार वर्ष में एक बार पुजारी, पुरोहित परिवार की ओर से भक्तों के सहयोग से यह चल समारोह निकाला जाता है। इसमें नासिक की महिलाओं का कतार में ढोल-ताशे बजाते हुए चलना और महाकालेश्वर के सेहरा दर्शन मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा।
महाकालेश्वर ध्वज चल समारोह में यह रहा क्रम
- ध्वज चल समारोह में सबसे आगे बैतूल का बैंड
- रजत ध्वज रथ
- आरके बैंड
- वीरभद्रजी का रथ
- डीजे
- छिंदवाड़ा को शशंकी, राजकमल बैंड
- सेहरे का रथ
- महिला अखाड़ा
- हरसिद्धि माता की झांकी
- भक्त प्रहलाद की झांकी
- हसीन की चलित झांकी
- गणेश बैंड
- श्रीगंगा-यमुना संगम अवतरण की झांकी
- हाथी पर महादेव के अभिषेक की झांकी
- नासिक की ढोल-तरा पार्टी
- आदियोगी की झांकी
- नासिक काबैंड
- बदनावर की महिषासुर मर्दिनी माता की झांकी
- भैरवनाथ की झांकी
- गंगा अवतरण की झांकी
- नाग लोक की झांकी
- श्री स्वाम बैंड
- 31 धर्म ध्वजाएं और आखिर में गजराज
महाकाल को चढ़ा केसरिया रंग, फिर गेर में झूमे लोग
बुधवार को रंगपंचमी धूमधाम से मनाने की शुरुआत महाकाल मंदिर से हुई। तडक़े हुई भस्म आरती में बाबा महाकाल को एक लोटा केसर युक्त रंग अर्पित किया गया, जिसके बाद पंडे-पुजारियों ने भगवान के साथ रंगपंचमी खेली। फिर शहर में रंगपंचमी पर्व का उत्सव शुरू हुआ। नगर निगम द्वारा निकाली जाने वाली नगर गेर महाकाल मंदिर चौराहे से सुबह 9 बजे शुरू हुई। गेर में 20 क्विंटल गुलाल, 30 किलो कलर, सेंट, 4 डीजे, 3 फायर फाइटर, ताशा पार्टी, 2 वाटर लॉरी, 1 ध्वज वाहन, 1 ओपन जीप, 1 स्प्रिंकल वाहन, 1 पिकअप वाहन, 1 बैंड, गुलाल उड़ाने हेतु ब्लोअर, नागरिकों के लिए जलपान (भजिए एवं ठंडाई), पेयजल व्यवस्था, गोपाल मंदिर पर फव्वारे की व्यवस्था की गई थी।