अर्जुन के बाण : हे महाकाल! ऐसा यार सभी को देना

दिलीप चौहान

अर्जुन सिंह चंदेल

प्रिय अनुज दिलीप चौहान, आज पूरा एक वर्ष हो गया है तुमको इस दुनिया से रूखसत हुए। बीते वर्ष 31 मार्च 2024 की वह मनहूस और काली रात दिलो-दिमाग से निकल ही नहीं पा रही है। गुजर चुके 365 दिनों में से शायद एक भी दिन ऐसा ना रहा होगा जब साथियों और मैंने तुम्हें याद नहीं किया।

जीवन के महत्वपूर्ण 24 साल तुमने मेरे साथ गुजारे थे, मेरे-तुम्हारे रिश्ते का कोई नाम तो नहीं था, ना ही खून का रिश्ता पर यह जरूर तय है कि पिछले जन्मों का बिछड़ा साथ ही रह गया जो तुमने इस जन्म में मेरे साथ पूरा किया। एक प्यारा सच्चा दोस्त, एक दिल से प्यार करने वाला लक्ष्मण की तरह छोटा भाई, एक ‘साया’ जो हरदम मेरे साथ रहता था, प्रभु श्री राम की सेवा करने वाले हनुमान की तरह मेरे सेवक, क्या-क्या उपमा दूँ तुम्हारे चरित्र को, समझ ही नहीं आ रहा है।

मेरी तकलीफों में साथ थे

जिंदगी के बीते 25 वर्षों में जब-जब मुझ पर मुसीबतों के पहाड़ टूट कर गिरे तुम चट्टान की भांति मेरी तकलीफों में साथ थे। खून के रिश्तों से भी बढक़र तुमने निभाया दोस्ती का फर्ज। शायद इस जीवन में माता-पिता, दो पत्नियों के खोने वाले दर्द के बाद तुम्हारे जाने का दर्द कभी नहीं भूल पाऊँगा।

व्यस्तता भरा वो आखिरी दिन

उस दिन 31 मार्च 2024 को तुम कितने खुश थे। इंदौर में ही दिन भर बिटिया के ससुराल में आयोजित सामाजिक कार्यक्रमों में सहभागिता की, समाज के बंधुओं द्वारा तुम्हें सम्मानित भी किया गया। इतनी व्यस्तताओं के बावजूद मेरे आदेश पर ही तुम मित्रों की पार्टी में शामिल होने आये, तुम्हें देखकर लगा ही नहीं कि कुछ घंटों बाद ही तुम हम सबको छोडक़र सदा-सदा के लिये चले जाओगे।

मित्रों के साथ डाँस के अलावा भरपूर आनंद लिया, खाया-पीया, मौज-मस्ती की और तो और हम सबके सारथी बनकर इंदौर से उज्जैन सुरक्षित लेकर आये। जब पार्टी के बाद हम सब मित्र गाड़ी में झपकी ले रहे थे तब भी तुम हनुमान जी की तरह देवदूत बनकर हम सबको सुरक्षित उज्जैन घर तक लेकर आये।

अगले जन्म में भी मिलना

धन्य हो अनुज जाते-जाते भी तुम कत्र्तव्य निभा कर गये। परमपिता परमेश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ कि मेरे अगले जन्म में भी तुम मुझे जरूर मिलना चाहे वह रिश्ता कोई भी हो। माँ सरस्वती द्वारा मुझे विरासत में दी गयी ‘कलम’ भी अब कुछ लिखने की स्थिति में नहीं है। तुम्हारे जैसा यार, दोस्त हर किसी को मिले यही महाकाल से विनती है।

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