बारिश के बीच 356 हेक्टेयर पहाड़ी पर 2.25 लाख बीजों का रोपण

(2.25 लाख बीजों का रोपण)

मां कवंलका की पहाड़ी पर चला अभियान

रुनिजा (बड़नगर), अग्निपथ। कहते हैं अगर हौसला मजबूत और संकल्प दृढ हो, तो कोई भी बाधा टिक नहीं सकती। रुनिजा में रविवार को कुछ ऐसा ही अद्भुत नज़ारा देखने को मिला, जहाँ महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों ने भारी बारिश के बीच भी पहाड़ पर बीज रोपण का कार्य पूरा कर दिखाया। मात्र 5 घंटे में 356 हेक्टेयर में फैली पहाड़ी पर सवा दो लाख (2.25 लाख बीजों का रोपण) बीजों का रोपण कर पर्यावरण संरक्षण का एक बड़ा संदेश दिया गया।

रुनिजा से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित प्राचीन सातरुंडा कवलका माता मंदिर की पहाड़ी पर यह भगीरथ प्रयास कानवन की कंड वन सेवा संस्था द्वारा किया गया। संस्था पिछले सात वर्षों से पर्यावरण प्रेमियों और माता भक्तों के सहयोग से यहाँ पौधारोपण और बीज रोपण का कार्य कर रही है।

रतलाम कलेक्टर भी हुए शामिल

रविवार को आयोजित इस महा-अभियान में 400 से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया और विभिन्न प्रजातियों के बीज लगाए। खास बात यह रही कि रतलाम कलेक्टर राजेश बाथम भी अपनी पत्नी के साथ कवलका माता के दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए पहुँचे। उन्होंने स्वयं पौधारोपण कर पर्यावरण प्रेमियों का उत्साह बढ़ाया।

60 साल से अधिक उम्र की महिलाओं ने भी दिया योगदान

5 घंटे तक चले इस बीज रोपण अभियान में 20 से अधिक गाँवों के बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। इनमें कई महिलाएँ ऐसी थीं जिनकी उम्र 60 वर्ष से अधिक थी। इन महिलाओं ने एक-दूसरे का हाथ थामकर पहाड़ी पर चढ़ाई की और बीज रोपण में अपना अमूल्य सहयोग दिया। विशेष रूप से 62 वर्षीय लीलाबाई पति सत्यनारायण विश्वकर्मा पिछले कई वर्षों से कण वन सेवा संस्था के साथ पौधारोपण, बीज रोपण और नदियों की सफाई के साथ-साथ नदियों की परिक्रमा भी कर रही हैं।

‘जल, जंगल और ज़मीन बचाना ही हमारा उद्देश्य’

कंड वन सेवा संस्था के अध्यक्ष विजय डिंडोर ने बताया, “कंड वन सेवा संस्था का मुख्य उद्देश्य जल, जंगल और ज़मीन को बचाना है। हमारी संस्था के माध्यम से कई नदियों को पुनर्जीवित किया गया है। बंजर और खाली पड़ी पहाड़ियों पर पौधारोपण और बीज रोपण करके जंगल और ज़मीन को बचाने का कार्य किया जा रहा है। इस नेक उद्देश्य के लिए हमें लोगों का पूरा सहयोग मिल रहा है, जो आगे भी इसी प्रकार जारी रहेगा।”

यह आयोजन न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह जनभागीदारी और सामूहिक संकल्प की शक्ति का भी प्रतीक है।

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