धार, अग्निपथ। धार जिले में किसानों और ग्रामीणों को इन दिनों भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जिसकी वजह है नई ‘वेब जीआईएस 2.0’ प्रणाली में आई तकनीकी खराबी। इस नई व्यवस्था के कारण जमीन की रजिस्ट्री हो जाने के बाद भी नामांतरण (जमीन का मालिक बदलने की प्रक्रिया) तुरंत नहीं हो पा रहा है। इस डिजिटल सिस्टम की गड़बड़ी के चलते, जमीन के असली मालिक का नाम राजस्व रिकॉर्ड में नहीं चढ़ पा रहा है, जिससे हजारों लोग परेशान हैं और अपनी ही संपत्ति पर उनका भरोसा डगमगा रहा है।
कैसे शुरू हुई समस्या?
1 अप्रैल से राज्य में ‘संपदा 2.0’ सॉफ्टवेयर से प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री शुरू की गई थी। इस नई व्यवस्था का उद्देश्य यह था कि रजिस्ट्री होते ही, अगले 10 दिनों के भीतर नामांतरण की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। इसके लिए रजिस्ट्री के समय ही राजस्व केस मॉनिटरिंग सिस्टम के जरिए नामांतरण फॉर्म सीधे साइबर तहसील को भेजा जाने लगा।
लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही निकली। ‘संपदा 2.0’ से हुई रजिस्ट्री के बाद भी, साइबर तहसील में पहुंचे आवेदनों का निपटारा महीनों तक नहीं हो पा रहा है। इससे लोग फिर से तहसील और पटवारी के कार्यालयों के चक्कर काटने को मजबूर हो गए हैं।
क्यों अटक रहे हैं नामांतरण?
राजस्व कार्यों को पारदर्शी बनाने के लिए सरकार ने ‘संपदा 2.0’, ‘सारा एप’ और ‘वेब जीआईएस 2.0’ जैसी व्यवस्थाएं लागू की हैं, लेकिन नई वेबसाइट और सॉफ्टवेयर ने समस्याओं को और बढ़ा दिया है। इस नई प्रणाली में कई खामियां सामने आई हैं, जैसे-
- मोबाइल नंबर और ओटीपी की अनिवार्यता: नामांतरण, जमीन सुधार और बंटवारे जैसे कार्यों के लिए अब सभी खाताधारकों के मोबाइल नंबर दर्ज कर ओटीपी डालना जरूरी है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां एक ही जमीन पर कई लोग साझेदार होते हैं, वहाँ सभी के नंबर लेना और उनसे ओटीपी प्राप्त करना बहुत मुश्किल हो रहा है। इसके अलावा, धोखाधड़ी के डर से लोग अपना ओटीपी साझा करने से कतरा रहे हैं।
- पटवारियों की आईडी पर जानकारी नहीं दिखना: ‘संपदा 2.0’ से रजिस्ट्री होने के बाद भी, कई मामलों में यह जानकारी पटवारी की आईडी पर दिखाई ही नहीं दे रही है। इस वजह से पटवारी उन मामलों को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं, जिससे नामांतरण प्रक्रिया रुक गई है।
- अन्य तकनीकी खामियां: नई व्यवस्था में एक खातेदार के केवाईसी सत्यापन से पहले सभी खाताधारकों की केवाईसी अनिवार्य कर दी गई है, जिसे लागू करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। बंटवारे से संबंधित मामलों में भी ‘वेब जीआईएस 2.0’ वेबसाइट ठीक से काम नहीं कर रही है।
पटवारियों और किसानों की दोहरी परेशानी
नामांतरण में हो रही देरी से जमीन खरीदने वालों को बैंक लोन, बिजली कनेक्शन और संपत्ति कर भुगतान जैसे जरूरी कामों में दिक्कत आ रही है। वहीं, पटवारी भी परेशान हैं। नामांतरण न होने से लोग लगातार 181 हेल्पलाइन पर शिकायतें कर रहे हैं, जिसका बोझ भी पटवारियों पर ही आ रहा है। वे लोगों के ताने और शिकायतों से तंग आ चुके हैं, इसलिए अब वे इस व्यवस्था में सुधार के लिए प्रशासन से मांग कर रहे हैं और सुधार न होने पर हड़ताल पर जाने की चेतावनी भी दे चुके हैं।
एक किसान ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्होंने खेती की जमीन खरीदी थी और उसकी रजिस्ट्री भी करवा ली, लेकिन अभी तक उनका नाम राजस्व रिकॉर्ड में नहीं चढ़ा है। जब उन्होंने पटवारी से संपर्क किया तो कभी छुट्टी का बहाना तो कभी पोर्टल में खराबी का हवाला दिया जा रहा है। इस स्थिति ने आम आदमी का मजाक बना दिया है, क्योंकि बिना नामांतरण के उन्हें बैंक से फसल के लिए कर्जा नहीं मिल पा रहा है।
धार जिले में लगभग 3.29 लाख किसान खेती करते हैं और रोजाना सैकड़ों स्लॉट रजिस्ट्री के लिए बुक होते हैं, लेकिन नामांतरण की प्रक्रिया में महीनों की देरी से यह व्यवस्था आम जनता के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं है।
