श्राद्ध शुरू होते ही उज्जैन के घाटों पर पिंडदान के लिए भीड़, ऑनलाइन तर्पण की व्यवस्था भी

हजारों लोग उमड़े, पहले दिन ही यूपी के श्रद्धालुओं ने पंडितों से कराई ऑनलाइन पूजा, दक्षिणा भी ऑनलाइन भेजी

उज्जैन, अग्निपथ। श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही रविवार से उज्जैन के शिप्रा किनारे स्थित प्रमुख रामघाट, भैरवगढ़ में सिद्धवट और अंकपात के पास गयाकोठा तीर्थ पर पितरों की आत्मशांति के लिए पिंडदान करने के लिए देशभर से श्रद्धालु उमडऩा शुरू हो गए। वहीं कुछ पंडों ने ऑनलाइन श्राद्ध की पूजा कराने की व्यवस्था भी की है।

उज्जैन भारत की प्राचीन सप्तपुरियों में से एक है। यहां शिप्रा के तट पर पितरों के मोक्ष के लिए पिंडदान-तर्पण की परंपरा होने से हर साल श्राद्ध पक्ष के दौरान देश व दुनियाभर के श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। उज्जैन के तीर्थ पुरोहित पंडित राजेश त्रिवेदी आम वाला पंडा ने बताया कि कई कारणों से श्रद्धालु उज्जैन नहीं आ सकते हैं। उनके लिए श्राद्ध पक्ष के दौरान यहीं घाट से ऑनलाइन तर्पण पूजा कराने की भी सुविधा की गई है।

श्रद्धालुओं ने रविवार को पूर्णिमा के श्राद्ध के साथ ही इस सुविधा का लाभ लेना शुरू कर दिया। पहले दिन यूपी के बुलंदशहर के सुरेंद्र शर्मा और गाजियाबाद के अमर उपाध्याय ने ऑनलाइन तर्पण-पूजन संपन्न कराया। पूजन के बाद उन्होंने दक्षिणा भी ऑनलाइन ही भेजी।

21 सितंबर तक श्राद्ध पक्ष, इस बार तिथि घटने से 15 दिन

इस बार श्राद्ध पक्ष 21 सितंबर तक चलेंगे। इस दौरान प्रतिदिन ही रामघाट, सिद्धवट और गया कोठा तीर्थ पर हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं का तांता लगेगा। इस बार श्राद्ध पक्ष में एक तिथि क्षय होने के कारण यह 15 दिन का होगा।

भगवान राम ने भी पिता दशरथ के लिए उज्जैन में किए थे पिंडदान

पुराणों में बताया गया है कि त्रेतायुग में स्वयं भगवान श्री राम ने भाई लक्ष्मण और माता सीता के साथ 14 वर्ष वनवास काल के दौरान अपने पिता व अयोध्या के राजा दशरथ के निधन के बाद उनके मोक्ष के लिए उज्जैन में शिप्रा के तट पर आकर पिंडदान व तर्पण किया था। तभी से उक्त घाट का नाम रामघाट पड़ा। भैरवगढ़ में शिप्रा के किनारे सिद्धवट घाट पर तर्पण पूजन का महत्व है। कहते हैं माता पार्वती ने स्वयं इस वट को लगाया था। इस वट पर दूध चढ़ाने की परंपरा है।

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