36 वर्षों की साधना को मिला विराम
सुसनेर, अग्निपथ। जैन धर्म के महान संत समाधिस्थ मुनि भूतबलि सागर जी के शिष्य मुनि मौन सागर जी ने शनिवार की तडक़े त्रिमूर्ति मंदिर में अपनी संत साधना का अंतिम पड़ाव पूर्ण करते हुए सल्लेखना पूर्वक समता मरण प्राप्त किया। इसके साथ ही, महाराज श्री की 36 वर्षों की कठिन साधना को विराम मिल गया।
संत की सल्लेखना की यह महान साधना शुक्रवार-शनिवार की मध्यरात्रि 2 बजकर 1 मिनट पर पूर्ण हुई, जब उन्होंने मुनि श्री मुनि सागर जी व मुनि श्री विवर्धन सागर जी के ससंघ की उपस्थिति में देह त्याग कर समाधि मरण धारण किया।
हजारों श्रद्धालुओं ने दी अंतिम विदाई
शनिवार सुबह साढ़े 9 बजे महाराज श्री की डोल यात्रा नगर भ्रमण के लिए निकली और फिर त्रिमूर्ति मंदिर प्रांगण में पहुँची। डोल यात्रा में नगर सहित विभिन्न प्रांतों और शहरों के हजारों श्रद्धालुजन शामिल हुए, जिन्होंने जैन मुनि के त्याग का जयघोष करते हुए उन्हें नमन किया। थाना प्रभारी केसर राजपूत ने पुलिस बल के साथ यातायात और कार्यक्रम की व्यवस्था संभाली। यह जानकारी त्रिमूर्ति ट्रस्ट के मीडिया प्रभारी दीपक जैन ने दी।
गृहस्थ परिजनों ने किया अग्नि संस्कार
त्रिमूर्ति मंदिर परिसर में संघस्थ ब्रह्मचारी मंजूला दीदी, पंडित शांति लाल जैन, अशोक जैन मामा और मुकेश शास्त्री के मार्गदर्शन में पूजन-पाठ व मंत्रोच्चार के साथ मुनि श्री के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया। मुनि श्री के गृहस्थ जीवन के परिजनों ने अग्नि संस्कार किया। समाजजनों ने श्रीफल अर्पित कर और परिक्रमा देकर समाधिस्थ संत को नमन किया। इस दौरान श्रीमती मधु गोधा (पुत्र दिपेश गोधा, इंदौर) ने अग्नि संस्कार में सहयोग किया और रत्न वाटिका परिवार ने समिधा प्रदान की।
शोक में बंद रहे प्रतिष्ठान
मुनि श्री के समाधि मरण की खबर से केवल जैन समाज ही नहीं, बल्कि पूरे नगर में शोक की लहर छा गई। समाजजनों और नगरवासियों ने अपने-अपने प्रतिष्ठान बंद कर समाधिस्थ संत के अंतिम दर्शन के लिए त्रिमूर्ति मंदिर पहुँचे। मंदिर परिसर में आयोजित विनयांजलि सभा में मुनि संघ व समाजजनों ने विनयांजलि अर्पित की।
यम संलेखना की 16 दिवसीय महासाधना
मुनि श्री मौन सागर जी महाराज ने शारीरिक अक्षमता के चलते 24 अक्टूबर को ही अपने सभी दायित्व अपने अनुज मुनि श्री मुनि सागर जी को सौंप दिए थे। उन्होंने अन्न-जल का त्याग कर निर्यापक संत के रूप में उपवास की महासाधना शुरू कर दी थी। 16वें दिन शनिवार की तडक़े 2 बजकर 1 मिनट पर उन्होंने उत्कृष्ट परिणामों के साथ सल्लेखना पूर्वक समाधि मरण प्राप्त किया।
