6 दिन बाद भी आरोपी फरार, विभाग के ‘मैनेजमेंट’ पर सवाल
धार, अग्निपथ। धार जिले में लकड़ी माफियाओं के हौसले इस कदर बुलंद हैं कि अब वे फिल्मी स्टाइल में ‘पुष्पा राज’ की तर्ज पर जंगलों को लूट रहे हैं। अवैध कटाई रोकने गए वन विभाग के अमले पर जानलेवा हमला हुए 6 दिन बीत चुके हैं, लेकिन परिणाम सिफर है। एक तरफ आरोपी खुलेआम नेताओं के पीछे दौड़ लगाकर समझौते का दबाव बना रहे हैं, तो दूसरी तरफ वन विभाग के आला अधिकारी (सीसीएफ) इस गंभीर घटना पर भी मूकदर्शक बने हुए हैं। हालांकि, डीएफओ ने मामले में खुद संज्ञान लेकर सख्त कार्रवाई के संकेत दिए हैं।
फिल्मी स्टाइल में आए और हमला कर दिया
घटना बीते बुधवार ग्राम खैरोद की है। वन विभाग की टीम को सूचना मिली थी कि एक निजी स्कूल के पास अवैध बबूल की लकड़ी से भरा एक बिना नंबर का लाल मिनी ट्रक खड़ा है। टीम मौके पर पहुंची, तो वहां मौजूद मजदूर दस्तावेज मांगने पर भाग खड़े हुए। तभी फिल्मी अंदाज में एक सफेद कार से शाहरुख, इमरान और फिरोज वहां पहुंचे और जबरन ट्रक ले जाने की कोशिश करने लगे। वन कर्मियों ने जब उन्हें रोका, तो कुछ ही देर में एक जीप में सवार होकर साहिल, शेरदिल और एक अन्य युवक वहां आ धमके। इन लोगों ने लाठियों से वन अमले पर अचानक हमला बोल दिया। इस हमले में वन कर्मी भूपेंद्र लछेटा को गंभीर चोटें आईं, जबकि चालक हीरालाल बामनिया और श्रमिक सियाराम भी घायल हो गए।
कोर्ट से झटका: अग्रिम जमानत खारिज
हमला करने के बाद आरोपी मौके से लकड़ी भरा वाहन लूट ले गए थे। गिरफ्तारी से बचने के लिए आरोपियों ने कोर्ट में अग्रिम जमानत की अर्जी लगाई थी, जिसे न्यायालय ने सिरे से खारिज कर दिया है। फरियादी वनरक्षक लक्ष्मण भवेल की शिकायत पर पुलिस ने शाहरुख, इमरान, फिरोज, साहिल, शेरदिल और दो अज्ञात आरोपियों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया है।
खाकी पर भारी ‘खादी’ का दबाव
कोर्ट से राहत न मिलने पर अब लकड़ी माफियाओं ने ‘खादी’ की शरण ले ली है। सूत्र बताते हैं कि मामले को ठंडा करने और रफा-दफा करवाने के लिए आरोपी राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे वन अधिकारियों पर दबाव बनाकर ‘समझौता’ करने की फिराक में नेताओं के चक्कर काट रहे हैं।
विभाग के ‘विभीषण’ ही कर रहे मदद?
इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाला पहलू वन विभाग की आंतरिक भूमिका है। सूत्रों का दावा है कि हमलावर माफिया गिरोह वन विभाग के ही एक अधिकारी की “मैनेजमेंट टीम” का हिस्सा हैं। यही कारण है कि अपने ही कर्मचारियों के खून बहने के बावजूद गिरफ्तारी की कार्रवाई कछुआ चाल चल रही है। इंदौर वृत्त में हाल ही में वनरक्षक पर हुए हमले के बाद यह दूसरी बड़ी घटना है, जिसने विभागीय राजनीति और साठगांठ की कलई खोलकर रख दी है।
बंदूके मालखाने में, जान जोखिम में
इस घटना ने एक बार फिर वन कर्मियों की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। करोड़ों की वन संपदा की रक्षा करने वाले कर्मचारी निहत्थे लाठियां खा रहे हैं, जबकि विभाग की बंदूकें बंद कमरों और मालखानों की शोभा बढ़ा रही हैं। सवाल यह है कि क्या इस बार विभाग अपने पीड़ित कर्मचारियों के साथ खड़ा होगा या फिर ‘मैनेजमेंट’ के खेल में यह मामला भी ठंडे बस्ते में चला जाएगा?
इंदौर की मंडियों तक फैला नेटवर्क
जांच में सामने आया है कि जिस गांव के यह आरोपी हैं, वहां घर-घर में अवैध लकड़ी का कारोबार होता है। राजस्व और वन क्षेत्र से लकड़ी काटकर इंदौर की मंडियों में पहुंचाई जाती है, जहां से मोटा मुनाफा कमाया जाता है। इस खेल में मंडी के कुछ व्यापारियों की भी मिलीभगत बताई जा रही है।
