चौकीदार…
हाथ जोडक़र अनुरोध है। शीर्षक पढक़र गलत अर्थ नहीं निकालें। हम देश के चौकीदार की बात नहीं कर रहे हैं। हम तो उस चौकीदार की बात कर रहे हैं। जिसको अपने उम्मीद जी ने नियुक्त किया है। अस्पतालों की लूट-खसोट से बचाने के लिए। जिनको हम नीली फिल्मों के शौकीन के नाम से जानते हैं। बस इसी चौकीदार की नियुक्ति ने स्वास्थ्य विभाग में हडक़ंप पैदा कर दिया है। बोला जा रहा है कि…चोर के हाथ में संदूक की कुंजी थमा दी है। उदाहरण भी दिया जा रहा है। आयुष्मान कांड को लेकर। जिसकी जांच स्टाइलिश मैडम ने की थी। उस जांच रिपोर्ट के बाद आयुष्मान कांड में कुछ नहीं हुआ। फाइलों में दब गई। आखिर अपने नीली फिल्मों के शौकीन का वरदहस्त था। अब कोरोना काल में अपने उम्मीद जी ने फिर उन्हीं को चौकीदार बना दिया है। जिसकी चर्चा चरक के गलियारों में खूब सुनाई दे रही है। जिसमें हम क्या कर सकते हैं। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप रहेंगे।
पुत्रमोह…
महाभारत के युद्ध के पीछे मुख्य कारण क्या था? यह सवाल इन दिनों दाल-बिस्किट वाली तहसील में खूब सुनाई दे रहा है। इसका जवाब भी मिल रहा है। पुत्रमोह के चलते धृतराष्ट्र को कुछ और ज्यादा अंधत्व हो गया था। इसी के चलते महाभारत हुआ था। अब कमलप्रेमी बोल रहे हंै कि…अपने पंजाप्रेमी पहलवान भी पुत्रमोह में ग्रसित थे। पिछले 14 महीनों से। इसीलिए उनको पता ही नहीं था कि हर शनि-इतवार को साहबजादे कहां गायब हो जाते। अब जाकर खुलासा हुआ है। इतना ही नहीं दाल-बिस्किट की तहसील में अन्य संबंधों को लेकर भी दबी जुबान से किस्से सुनाये जा रहे हैं। इन किस्सों से हमारा क्या लेना-देना। हमारा तो काम है। बस चुप रहना।
पीछे कौन…
पुत्रमोह में ग्रसित अपने पंजाप्रेमी पहलवान के कैरियर पर इतना बड़ा धब्बा लगाने के पीछे किसका हाथ है? यह सवाल भी तहसील में खूब सुनाई दे रहा है। साहबजादे ने ऐसे वादे कइयों से कर रखे हैं। ऐसा पंजाप्रेमी और कमलप्रेमी बोल रहे हैं। मगर सवाल यह है कि आखिर कानून के शिकंजे में मामला कैसे पहुंचा? इसके पीछे कौन पंजाप्रेमी नेता था? जिसने इस घटना को अंजाम दिया। अगर चर्चाओं पर यकीन किया जाये। तो अभी-अभी कमलप्रेमी से वापस पंजाप्रेमी बने नेताजी का नाम सुनाई दे रहा है। सीधी भाषा में इंदौरी नेता की भूमिका रही है। तभी तो इंदौरी नेता के साहबजादे एफआईआर होने तक मौजूद रहे। अब सच-झूठ का फैसला तहसील के पाठक खुद कर लें। क्योंकि हमें तो आदत के अनुसार चुप रहना है।
श्रेय…
आपदा प्रबंधन की बैठक में टैक्स का मामला उठना ही था। विकास पुरुष और पहलवान, इसके लिए प्रशासन को दोषी मान रहे थे। दोनों ने सवाल भी उठाये। मगर शिवाजी भवन के पंडित जी ने ए से लेकर जेड तक की कहानी सुनाई। तब जाकर अहसास हुआ। मामला तो शासन स्तर का है। इसलिए बातचीत की। फिर आया श्रेय लेने का मामला। विकास पुरुष और पहलवान, दोनों ने प्रेसनोट जारी किये। दोनों ने इसे अपनी-अपनी उपलब्धि बताया। जिसको लेकर हम क्या कर सकते हैं। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हंै।
प्रस्ताव…
आज तक कभी भी ऐसा ना देखा और ना ही सुना। कोठी के इतिहास में भी ऐसी घटना सुनने को नहीं मिली। जब जिले का मुखिया कोई प्रस्ताव भेजे। तो उस पर 7 जिलों के मुखिया एक्शन नहीं लें। मगर अभी हाल ही में इतिहास बन गया है। परिवहन से जुड़ा मामला है। अपने उम्मीद जी ने निलंबन का प्रस्ताव भेजा था। यह प्रस्ताव फाइलों में दब गया। ऐसा क्यों-किसलिए हुआ। इसको लेकर कोठी के गलियारों में चर्चा है। जिस पर अगर यकीन किया जाये तो मामला 20 पेटी से जुड़ा है। 12 और 8 के हिसाब से हिस्सा बांटी हुई। भूमिका 1 खबरची की रही। जिन्होंने शुरुआत में तीखा आलेख लिखा था। उन्हीं ने मामले को सुलटाया। अब सच-झूठ का फैसला कोठी वाले खुद कर लें। क्योंकि हमको तो चुप ही रहना है।
भारी…
एक वक्त था। जब अपने पहलवान सभी पर भारी थे। उनके निर्णय को कोई टाल नहीं सकता था। मगर अब वक्त बदल गया। अब वक्त की डोर अपने विकास पुरुष के हाथों में है। मगर फिर भी पहलवान की समझ में नहीं आ रहा है। तभी तो शीतला सप्तमी को लेकर वीडियो जारी कर दिया। सलाह दी कि…मास्क लगाकर, घर के समीप, मंदिर में पूजन करने जा सकती हैं। लेकिन दोपहर बाद अपने उम्मीद जी का फरमान निकला। शीतला सप्तमी के पूजन पर रोक के निर्देश थे। नतीजा कमलप्रेमी महिला नेत्री सवाल कर रही है। आखिर भारी कौन? अपने पहलवान या उम्मीद जी। इसका फैसला खुद महिला नेत्री ही कर ले। क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप रहना है।
चेतावनी…
प्रशासन को खुलेआम चुनौती देने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता है। खासकर लॉकडाउन वाले दिन। वह भी सोशल मीडिया पर। मगर फिर भी चेतावनी दी गई। खुलकर दी गई। शीतला माता के पूजन को लेकर। यह तक लिख दिया कि…अगर माताओं-बहनों को रोका गया तो हम भी उज्जैन रोक देंगे। इस खुलेआम चेतावनी के बाद भी प्रशासन चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
कार्रवाई…
कानून सबके लिए बराबर होता है। ऐसा बोला तो जाता है। मगर इसका पालन सबके लिए हो? यह जरूरी नहीं है? बस यहीं से गड़बड़ी हो जाती है। इन दिनों मास्क लगाओ-वरना जुर्माना भरो-खुली जेल जाओ…का पालन पूरी तरह किया जा रहा है। इस काम को करने वाले सभी को हमारा सेल्यूट। होटलों पर भी अकुंश है। पार्सल दे सकते हैं। बैठाकर खिलाना मना है। 2 होटलों को सील भी कर दिया। अच्छा किया…कानून का पालन किया। मगर यह सारे नियम क्या बहुसंख्यक वर्ग पर ही लागू होते हैं। अल्पसंख्यक इलाकों में ऐसी ठोस कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है। इन इलाकों में दुकानदार ही मास्क नहीं पहनता है। तो ग्राहक से क्या उम्मीद करना। अल्पसंख्यक इलाकों में कार्रवाई करने से प्रशासन क्यों बच रहा है। यह सवाल कमलप्रेमी उठा रहे हंै। लेकिन कार्रवाई करने वालो ने आंखो पर पट्टी बांध ली है। उनको कुछ नजर नहीं आ रहा है। जिसमें हम क्या कर सकते हैं। हम तो बस आदत के अनुसार चुप रहेंगे।
बेईज्जत…
बड़े बेआबरू होकर…अपने घर से हम निकले। चक्रम के गलियारों में इन दिनों यह स्लोगन खूब सुनाई दे रहा है। जिसका इशारा अपने चरणलाल जी तरफ है। जब प्रभावशाली थे, तब उन्होंने चक्रम के मकान को हड़पा था। हड़पा, इसलिए क्योंकि तेवरवाली मैडम ने भी इसी मकान को पसंद किया था। लेकिन तब प्रभावशाली चरणलाल जी थे। इसलिए तेवरवाली मैडम ने कदम पीछे ले लिये थे। मगर अब वक्त बदला। अब सत्ता कमलप्रेमियों की है। नतीजा चक्रम के एक संघ ने इस मकान पर अपना ताला ठोक दिया। जिसके बाद चक्रम के गलियारों में बड़े बेआबरू होकर…अपने घर से हम निकले, की गूंज सुनाई दे रही है। अब देखना यह है कि अपने चरणलाल जी क्या कदम उठाते हंै। तक तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
भविष्यवाणी …
कभी-कभी इंसान की जुबान पर सरस्वती विराजमान हो जाती है। उस वक्त वह जो बोलता है। वह आगे जाकर सच हो जाता है। जैसे दाल-बिस्किट वाली तहसील में हुआ। सन् 2020 की घटना है। भोजन वितरण को लेकर अपने पहलवान के साहबजादे नाराज थे। वजह भोजन वितरण पर रोक लगा दी थी। उन्होंने तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी को फोन किया। नाराजगी दिखाई और अपने ही एक परिजन पर एफआईआर की डिमांड कर डाली। तब अधिकारी ने जवाब दिया। किसी दिन- किसी ने तुम पर एफआईआर करवा दी तो क्या होगा? तब सत्ता के नशे में जवाब मिला था। पहलवान का बेटा हूं… किसकी इतनी हिम्मत। मगर उस वक्त की भविष्यवाणी अब सच हो गई है। लेकिन हमको तो चुप ही रहना है, अपनी आदत के अनुसार।
आडियो…
आखिरकार 5 आडियो वायरल हो गये है। अपने पंजाप्रेमी पहलवान के साहबजादे के। इन आडियो में कभी मोहब्बत से समझाते हुए, साहबजादे की आवाज सुनाई दे रही है। तो कभी आक्रोश में आकर साहबजादे अपशब्दों का प्रयोग कर रहे है। पांचों आडियो खूब वायरल हो रहे है। जिसमें हमारा कोई दोष नहीं है और ना ही हम इस पर कोई अंकुश लगा सकते है। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
नींद …
प्रशासन की एक अनोखी आदत है। वह यूं तो कुंभकर्णी नींद सोता है। मगर घटना होने पर, जागकर ऐसा दिखाता है। जैसे अब भविष्य में ऐसी कोई घटना नहीं होगी। कुछ दिन तक अलर्ट रहता है। फिर वापस अपनी कुंभकर्णी मुद्रा में आ जाता है। आज आगजनी की घटना हुई। जिसके बाद वह जागा। आदेश/ निर्देश निकाल दिये। अपने मंदमुस्कान जी ने। इसके पहले भी कोचिंग क्लास के लिए फायर सेफ्टी के निर्देश निकले थे। कुछ दिनों बाद सब शांत हो गया। अब अस्पताल को लेकर निर्देश निकले है। देखना यह है कि इन पर कब तक सख्ती से पालन होता है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।