एनजीटी में शिकायत के बाद जागे अधिकारी, जाँच के लिए पहुँची संयुक्त टीम
नागदा, अग्निपथ। शहर से लगभग 5 किलोमीटर दूर स्थित गाँव गिदगढ़ में पीली मिट्टी के लगातार अवैध उत्खनन के कारण गाँव अब टापू बन चुका है। ग्रामीणों द्वारा लगातार स्थानीय स्तर पर शिकायतें किए जाने के बावजूद तहसीलदार और एस.डी.एम. ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की, जिसके बाद ग्रामीणों ने यह मामला कलेक्टर की जनसुनवाई में उठाया। दूसरी बार शिकायत करने के बाद कलेक्टर के निर्देश पर प्रदूषण विभाग, खनिज विभाग और राजस्व विभाग की संयुक्त टीम मंगलवार दोपहर गाँव गिदगढ़ पहुँची।
हालांकि, ग्रामीणों की शिकायत के बाद भी स्थानीय अधिकारी मूकदर्शक बने रहे। टीम के आनन-फानन में जाँच करने पहुँचने का मुख्य कारण यह है कि अवैध खनन का यह मामला अब एन.जी.टी. (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) में पहुँच चुका है और जल्द ही वहाँ से जाँच के आदेश आने वाले हैं। ऐसे में स्थानीय अधिकारी अपनी साख बचाने के लिए पहले ही जाँच शुरू कर रहे हैं, ताकि एन.जी.टी. की जाँच की आँच उन तक न पहुँचे।
चार घंटे तक चली जाँच, बुधवार को फिर पहुँचेगी टीम: मंगलवार दोपहर 2:30 बजे राजस्व विभाग से नायब तहसीलदार सुभाष सुनहरे, खनिज विभाग से इंस्पेक्टर रमेश सोलंकी, प्रदूषण विभाग से एस.एस. शर्मा और निकिता बर्डे सहित अन्य कर्मचारी गाँव पहुँचे। टीम ने ग्रामीणों से चर्चा करने के बाद खनन स्थल का सीमांकन किया और खनन वाले गड्ढों की लंबाई-चौड़ाई नापी।
टीम ने लगभग 7-8 सर्वे क्रमांकों पर जाँच की, जिसमें कुछ निजी तो कुछ सरकारी ज़मीन शामिल है। टीम ने निजी सहित सरकारी ज़मीन पर खनन करने वालों के नामों की सूची भी तैयार की है। लगभग 4 घंटे तक चली यह जाँच अभी पूरी नहीं हुई है, इसलिए टीम बुधवार को दोबारा गाँव गिदगढ़ पहुँचेगी, जहाँ और भी सर्वे क्रमांकों की जाँच की जाएगी।
एन.जी.टी. में शिकायत और जनप्रतिनिधियों का संरक्षण: गिदगढ़ समेत शहरी सीमा और ग्रामीण क्षेत्रों में यह अवैध उत्खनन का खेल सालों से चल रहा है, जिससे समतल ज़मीनें तालाब बन चुकी हैं। इस मामले को लेकर रवि रघुवंशी और संगीता चौहान ने एन.जी.टी. में याचिका लगाई थी, जिसकी पहली सुनवाई 1 दिसंबर को हो चुकी है। अभिभाषक अभिषेक चौरसिया मामले की पैरवी कर रहे हैं।
खुलासा हुआ है कि खनन का यह खेल जनप्रतिनिधियों के संरक्षण में चल रहा है। कुछ जनप्रतिनिधियों के माफियाओं से शुभ-लाभ के संबंध हैं, तो कुछ वोट बैंक के चक्कर में समर्थन कर रहे हैं। स्थानीय अधिकारी पहले जनप्रतिनिधियों की चाटुकारिता में आँखें बंद किए हुए थे, लेकिन अब जब मामला एन.जी.टी. की चौखट पर पहुँचा है, तो उनकी नींद उड़ गई है।
