शायद दुनिया के इतिहास में मानव जाति के लिये जानलेवा कोरोना जैसी घातक बीमारी का जिक्र नहीं मिलता है। अति सूक्ष्म नजर न आने वाले इस विषाणु से पूरी पृथ्वी कम्पित है। मेरा देश भारत की इस महामारी से जूझ रहा है। समाचार पत्रों और मीडिया में आ रहे समाचारों से दिल दहल रहा है। केन्द्र हो राज्य सरकार, शासन प्रशासन सब के सब पूरी क्षमता से कम करने के बाद भी भविष्य की भयावह तस्वीर सोच कर ही रोंगटें खड़े हो रहे हैं।
शासकीय एवं निजी अस्पतालों में पलंगों की कमी, ऑक्सीजन सिलैण्डरों की कमी, संक्रमण से मुकाबला करने वाले रेमडेसिविर इंजेक्शन की कमी, देश के कई राज्यों में वैक्सीन का अभाव, चिकित्सालय एवं चिकित्सों के यहाँ मरीजों की लंबी-लंबी लाईनें, दवाओं के लिये दवा बाजारों में भारी भीड़ यह नजारा दिल को डराने वाला है।
जिस देश को अपनी 138 करोड़ की आबादी होने पर गर्व या वर्तमान हालातों ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि यह विशालकाय आबादी गर्व की बजाए अभिशाप तो नहीं। सरकारें भी क्या करें उनकी क्षमताएं भी सिमित है जो अब जवाब देने की स्थिति में आ रही है। रेमडेसिविर का इंजेक्शन बनाने वाले सिप्ला कंपनी सरकार से 300 करोड़ की राशि मांग रही है ताकि उसकी उत्पादन क्षमता का विस्तार हो सके और देश की माँग अनुसार उत्पादन किया जा सके इस तरह की अंदरूनी सौदेबाजी और भी लोग इस संकटकाल में सरकार से कर रहे होंगे।
आर्थिक संकट से जूझ रही सरकार इन हालातों से कैसी निपट रही होगी यह तो वही बता सकती है परंतु इतना जरूर है कि यह आपदा फार्मास्युटिकल कंपनियों, निजी चिकित्सालयों, मेडिकल स्टोर्स, पेथालॉजी, चिकित्सकों के लिये अवसर बनकर आयी है। कुछ फार्मास्युटिकल कंपनियों ने जितना 50 वर्षों में नहीं कमाया होगा बीते एक वर्ष के कोरोना काल में कमा लिया।
खैर यह उनके भाग्य की बात है। अब बातें सरकार से जो राजनैतिक दल देश में एक विधान-एक निशान की बात करता था संयोग से संकट के इस समय में दिल्ली के तख्त पर उसका ही राज है।
कश्मीर के मामले में उसने इसे साबित भी कर दिखाया फिर क्या कारण है कि कोरोना के इस आपातकालीन समय में भारतीयों को एक ही देश में कोरोना के लिये दो मापदंड दिखायी दे रहे हैं। गत वर्ष तो बड़े सुनियोजित तरीके से तब्लीगी जमात पर कोरोना फैलाने का आरोप मढ़ दिया गया था और पूरे देश को लगा था कि तब्लीगी जमात ने ही हिंदुस्तान में कोरोना फैलाया है पर अब क्या हुआ अब कौन फैला रहा है कोरोना?
हरिद्वार में निर्भीक होकर लाखों की संख्या में गंगा जी में डुबकी लगाकर 850 वर्षों पूर्व आदि शंकराचार्य द्वारा शुरू की गयी परंपरा का निर्वहन शान से कर रहे हैं। ना सामाजिक दूरी, ना मास्क इस भीड़ में कौन कोरोना संक्रमित है और कितनों को संक्रमण फैला रहा है कोई नहीं जानता। हमारे साधु-संत जिन्होंने सदैव अनादिकाल से राजा को सही दिशा में चलने की सीख दी है ऐसा हमारे वेद पुराण बताते हैं वह भी इस मुद्दे पर मौन है? मेरा करबद्ध निवेदन है कि प्राणों से अधिक मूल्यवान परंपराएं नहीं हो सकती है प्राण बचेंगे तो फिर परंपराओं का निर्वहन किया जा सकता है।
उत्तरप्रदेश में भी प्रतिदिन 6 हजार से अधिक कोरोना संक्रमित निकल रहे हैं ऐसी स्थिति में उत्तराखंड कुंभ का आयोजन कहां तक उचित है? उत्तराखंड में भी बुधवार को 1100 संक्रमित और 8 की मौत हो चुकी है। इसी तरह जहाँ चुनाव हो रहे हैं वहाँ के लिये अलग मापदंड, सारे भारतीय टी.वी. पर राजनैतिक रैलियों में हजारों-लाखों की भीड़ देख रहे हैं ना मास्क, ना सामाजिक दूरी और ना ही कोई एहतियात वह रैली में चलने व शामिल होने वाले लोग क्या कोरोना प्रूफ है या फिर अमृत पीकर आये हैं यह जानने का अधिकार शायद हर भारतीय को होना चाहिये? या फिर राजनैतिक दल अपने निहित और क्षुद स्वार्थों के लिये नागरिकों की जिंदगी दाँव पर लगा रहे हैं यदि यह सच है तो वास्तव में बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है प्रजातंत्र और मेरे भारत देश के लिये।
जय हिंद