संयोग से आज क्षिप्रा तट स्थित मोक्ष धाम चक्रतीर्थ जाने का अवसर प्राप्त हुआ। किसी मित्र की माताजी के अंतिम संस्कार हेतु विद्युत शवदाह जाने पर वहाँ कोने में रखे 20-25 अस्थि कलशों को देखकर मेरा पत्रकार मन बैचेन हो उठा। उन अस्थि कलशों के बारे में जानने का कौतुहल जाग उठा।
वहाँ पदस्थ निगम कर्मचारी ने बताया जिनकी अस्थियां इन डिब्बों में रखी है उनके परिजन लेने ही नहीं आ रहे हैं। कई के परिजनों को तो हम मोबाइल भी लगा चुके हैं परंतु फिर भी कोई लेने नहीं आ रहा है। यदि पाँच-सात दिन तक और इनके परिजन लेने नहीं आये तो हम ही इन अस्थियों को विसर्जित कर देंगे। पहले भी सर्वपितृ अमावस्या पर 65 ऐसे ही अस्थि कलशों में रखी अस्थियों को हम विधि-विधान से मोक्षदायिनी क्षिप्रा में विसर्जित कर चुके हैं।
उसकी बात सुनते ही मैं स्तब्ध और अवाक रह गया। हिंदू धर्मावलंबियों की मान्यता है और हमारे वेद पुराण भी यह बताते हैं कि मृतक की अस्थियों को मृत्यु के तीसरे दिन संचय किया जाता है और उसमें से कुछ अस्थियां (फूल) रखकर बाकी को नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। चुने हुए फूल (अस्थियों) का मृत्यु के दसवें दिन विधि-विधान से पिंड बनाकर विसर्जन किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि शास्त्रोक्त विधि से किये गये अस्थि विसर्जन से ही व्यक्ति को मोक्ष मिलता है और ऐसा ना करने पर वह आत्मा सदा-सदा के लिये भटकती ही रहती है और विधान से अस्थि विसर्जन ना होने पर परिजनों पर विपत्तियां आती रहती है।
मैं सोचने लगा यह 90 आत्माएँ भटक कर किसी का अशुभ करेगी यह जानकर भी परिजन अस्थियां लेने नहीं आये। कहाँ गये वह लोग? इस कोरोना ने हमारी मानवीय संवेदनाओं को पूरी तरह से अपने पैरों तले कुचल कर रख दिया है। क्या हमारे सामाजिक ताने-बाने को लकवा हो गया है। मौत के भय ने बाप-बेटे, माँ-बेटे, भाई-बहन, भाई-भाई सब रिश्तों को खत्म कर बता दिया कि –
कसमे-वादे, प्यार, वफा सब बाते हैं , बातों का क्या…
कोई किसी का नहीं ये झूठे नातों है नातों का क्या…
सच में जब निगम कर्मचारी ने अपने अनुभव बताये तो आँखों से आश्रुओं की धारा निकलने को बैचेन हो गई। उसने बताया कि परिजन जब कोरोना ग्रसित व्यक्ति का अंतिम संस्कार करने आते थे तो विद्युत शवदाह गृह से 25-30 फुट दूर खड़े होकर कर्मचारियों से ही कहते थे कि आप ही कर दो सब कुछ। पीपीई किट पहनकर भी लाश को अंतिम प्रणाम तो दूर नजदीक भी नहीं आना चाहते थे।
इस कत्र्तव्यनिष्ठा के लिये मैं वाल्मीकि के वंशजों का घुटनों के बल बैठकर इस्तकबाल करता हूँ कि उन्होंने जाने-अनजाने, कोई रिश्ता नाता ना होते हुए भी सैकड़ों ज्ञात-अज्ञात शवों का बिना कोई सुरक्षा किट पहने अंतिम संस्कार करने का जोखिम उठाया।
निश्चित तौर पर उन मरने वालों का इन वाल्मीकि के वंशजों से पूर्व जन्मों का संबंध रहा होगा तभी तो मरने वालों के अपने सगे-संबंधी भी शव को हाथ नहीं लगा पाये और इन्होंने ना सिर्फ अंतिम संस्कार किये इससे भी आगे बढक़र जो लोग अपने सगे परिजन की अस्थि-कलश नहीं ले गये उनकी अस्थियों का भी विधि-विधान से विसर्जन किया।
सचमुच यह लोग हमारे समाज के असली हीरो हैं। इस कलयुग में दरकते संबंधों के घोर अंधकार में ऐसे लोग आशा की किरण के रूप में दिखाई देते हैं। पुन: मोक्षधाम पर तैनात वाल्मीकि वंशजों का मैं अभिनंदन करता हूँ। समीप ही के शहर इंदौर में भी कुछ नवयुवकों ने अनुकरणीय कार्य किया था। वह भी कोरोना ग्रसित मृतकों का अंतिम संस्कार करते थे और उसका लाइव वीडियो परिजनों को दिखाते थे। मैं उन ज्ञात-अज्ञात अस्थि कलशों में विराजित आत्माओं को भी अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए उनसे अनुरोध करूँगा कि वह अपने परिजनों को क्षमा करें, जिन्हें नहीं मालूम कि उन्होंने क्या अपराध किया है।
ओम शांति…!
-अर्जुनसिंह चन्देल