खेल…
दशहरा मैदान पर एक बैठक हुई, 4 दिन पहले। इस बैठक को करवाने में स्वास्थ्य से जुड़ी संस्था का योगदान रहा। अपने उम्मीद जी भी जनहित का काम समझकर आ गये। उन्होंने मौजूद स्वास्थ्य रक्षकों को सलाह भी दे डाली। कैसे और क्या करना है। अपने उम्मीद जी को पता नहीं था कि आखिर पर्दे के पीछे का खेल क्या है। जिसके चलते संस्था के पदाधिकारियों की मुराद पूरी हो गई। अब जाकर अंदर से निकलकर खबरें आ रही हंै। अधिकतर स्वास्थ्य रक्षक तो कई निजी नर्सिंग होम के लिए एजेंट का काम करते हंै। अब यही एजेंट, ग्रामीण क्षेत्र से मरीजों को निजी होम में भेजकर वसूली का काम करेंगे। ऐसा बैठक में शामिल रक्षक ही बोल रहे हंै। अब देखना यह है कि निजी होम चलाने वालो का धंधा आगामी दिनों में कैसे चौगुना होता है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हंै।
जश्न…
दशहरा मैदान पर हुई बैठक के बाद जश्न तो मनाना जरूरी था। हक भी बनता था। आखिरकार दिन दुनी-रात चौगुनी कमाई का आगे मौका जो आने वाला है। इसलिए बैठक खत्म होते ही जश्न शुरू हो गया। एक चौपहिया वाहन के अंदर। जिसमें वही पदाधिकारी मौजूद थे। जिन्होंने इस बैठक को करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बैठक की सफलता और आने वाले दिनों के सुनहरे सपनों को देखते हुए, पदाधिकारी देवास रोड स्थित एक कालोनी में पहुंच गये। यह कालोनी अकसर सुनसान रहती है। अंधेरा होने के बाद तो कोई भी नहीं पूछता है। होमगार्ड कार्यालय के सामने यह कालोनी है। जहां पर गाडी के अंदर बैठकर पदाधिकारियों ने जाम टकराये। जश्न मनाया गया। जिसमें हम क्या कर सकते हैं। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते हैं।
उंगली…
कोरोना फैलने का सबसे बड़ा कारण क्या है। अगर नहीं पता हो तो हम बता देते हैं। नाक में बार-बार उंगली करने से कोरोना फैलता है। यह बात हम नहीं कह रहे हंै। बल्कि अपने जिले के स्वास्थ्य मुखिया कहते हैं। कई बैठकों में बोल चुके हंै। प्रेसनोट भी जारी कर चुके हंै। जिन्हें हम नीली फिल्मों के शौकीन नाम से जानते हैं। मगर आश्चर्य की बात यह है कि दूसरों को यह सलाह देने वाले अकसर खुद ही बैठकों में अपनी नाक में उंगली करते देखे जाते हैं। इतना ही नहीं आज के दौर में गले लगकर मिलने से हर कोई बचता है। लेकिन अपने नीली फिल्मों के शौकीन, अपने परम मित्र से हर जगह खुलकर गले मिलते हैं। जिसको खुद अपने उम्मीद जी भी अपनी आंखों से देख चुके हंै। अब इसमें हम आखिर कर क्या सकते हैं। बस…हम तो डॉ. बशीर बद्र का अशआर याद करके चुप हो जाते हंै कि…कोई बात भी नहीं करेगा, जो गले मिलोगे तपाक से/यह नये मिजाज का शहर है, जरा फासले से मिला करो।
धंधा बंद-आवक चालू…
क्या यह संभव है? अगर कोई दुकान बंद हो, मगर उसकी आवक चालू हो। बंद दुकान से आखिर ग्राहक क्या खरीद सकता है। मगर इन दिनों ऐसा ही हो रहा है। अगर भरोसा नहीं हो तो सोमरस की दुकानों की आवक देख लीजिए। भले ही जिले में सोमरस की दुकाने बंद हैं। मगर फिर भी आवक चालू है। अंदरखाने की खबर है कि संबंधित बैंकों में प्रतिदिन सोमरस के खातों में हर रोज राशि जमा हो रही है। वह भी पेटियों में। जबकि धंधा पूरी तरह से बंद है। अब सवाल यह है कि अगर सोमरस की दुकाने बंद हंै तो आवक कहां से हो रही है। अगर कोई पाठक या अधिकारी इस धंधा बंद-आवक चालू को समझ जाये तो हमको भी बताये। वरना हमको तो आदत के अनुसार चुप ही रहना हैं।
गलती…
गलतियां इंसान से ही होती है, भगवान से नहीं। यह किसी अंग्रेजी कविता का हिन्दी अनुवाद है। फिर अपुन तो गलतियों के चलते-फिरते इश्तहार है। लिखने में ऊपर-नीचे-दाएं-बाएं हो ही जाता है। जैसे पिछले सप्ताह हो गया। अपने मंद-मुस्कान जी लपेटे में आ गये। गायब शीर्षक से। जिसमें उनके शिवाजी भवन से गायब रहने की चर्चा थी। वह बात पूरी तरह सही थी। लेकिन सवाल यह था कि गायब कहां थे। तो अपने मंद-मुस्कान जी उन दिनों वाकई जनहित के काम में लगे थे। रात-रात जागकर। उनको ऑक्सीजन कमी की मुसीबत से जूझना पड रहा था। इसी जिम्मेदारी को निभाते हुए वह शिवाजी भवन से दूर थे। जिसके लिए मंद-मुस्कान जी को साधुवाद। मगर अब उनसे यह जिम्मेदारी अपने उम्मीद जी ने छीन ली है। अब ऐसा क्यों हुआ, इसको लेकर हमको कुछ पता नहीं है। तो फिर हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
शादी…
पिछले दिनों आपदा प्रबंधन की बैठक हुई थी। इस बैठक में अपने लेटरबाज जी भी मौजूद थे। जो कि बैठक में एक ही बात को लेकर अड़े हुए थे। उनकी एक मात्र मांग थी। शादी करने की छूट दी जाये। अब यह बात अलग है कि उनकी इस डिमांड पर कोई ध्यान नहीं दे रहा था। इसके बाद भी अपने लेटरबाज जी का सुर शादी पर ही अटका हुआ था। लेटरबाज की इतनी जिद देखकर आखिरकार अपने उम्मीद जी को बोलना ही पड़ गया। उन्होंने पूछ लिया…क्या बात है…क्या आपके घर में शादी है। अपने उम्मीद जी का यह सवाल काम कर गया। इसके बाद अपने लेटरबाज जी चुप हो गये। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
अपील…
मास्क लगाये-2 गज की दूरी बनायें। वरना, प्रतिदिन 20 हजारी खर्चा उठाना पड़ सकता है। इसीलिए हम यह अपील कर रहे हंै। अभी भी वक्त है। संभलकर निकलें-बहुत जरूरी हो-तभी निकलें। क्योंकि अंदरखाने की खबर यही है कि निजी अस्पताल वाले 300 रुपये प्रतिघंटे ऑक्सीजन का वसूल रहे हंै। मतलब प्रतिदिन 7 हजारी का खर्चा है। इसके अलावा बेड की कीमत प्रतिदिन 13 हजारी है। यानि कि…प्रतिदिन 20 हजार का खर्चा है। दवा और इंजेक्शन का अलग। अब अगर आप प्रतिदिन 20 हजारी खर्च करने में सक्षम है। तो जरूर निकलिये…मगर इतना जरूर ध्यान रखे। इतना खर्च करने के बाद भी जीवन की कोई ग्यारंटी नहीं है। अब फैसला आपका है, क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
पहल…
देर आये पर दुरुस्त आये। आखिरकार अपने उम्मीद जी ने वह कदम उठा लिया। जिसका सभी को इंतजार था। उन्होंने आज उस पहल की शुरुआत कर दी। अब घर-घर जाकर सर्वे होगा। जिस घर में कोई भी संदिग्ध मरीज पाया गया। उसको तत्काल ही अगले दिन तक ना केवल डॉक्टरी सलाह मिलेगी, बल्कि दवा भी उपलब्ध होगी। अपने उम्मीद जी की इस पहल का सबको इंतजार था। जिसकी शुरुआत आज से होने वाली है। इस पहल से निश्चय ही कोरोना के बढ़ते प्रकोप पर कुछ हद तक अकुंश लगेगा। जिसके लिए अपने उम्मीद जी को साधूवाद देते हुए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
सहायता…
अपने लेटरबाज जी ने कोरोना हेल्प सेंटर बनाया है। जिसमें 4 कमलप्रेमियों की नियुक्ति की गई है। इनका काम है कि प्रशासन से समन्वय कर आमजन की सहायता करेंगे। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि चारो पदाधिकारियों को यह पता नहीं है कि आखिर उनको करना क्या है, कैसे करना है, प्रशासन में उनको किससे बात करनी है, उनकी बात को आखिर कौन सुनेगा। मगर फिर भी लेटरबाज जी ने हेल्प सेंटर बनाकर अपना दायित्व पूरा कर लिया है। अब कोई पदाधिकारियों की बात सुने या नहीं,उससे उनको कोई लेना-देना नहीं है। बेचारे पदाधिकारी आश्चर्यचकित है। मगर, पार्टी का मामला है, तो चुप है। फिर हम कौन होते है, बीच में बोलने वाले। हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।