देश के 5 राज्यों की विधानसभा चुनावों के परिणाम भारतीय जनता पार्टी के लिये निराशाजनक ही कहा जाना उचित होगा। बंगाल में वह ममता बेनर्जी के अंगद की तरह जमें पैरों को हिला भी नहीं पायी, केरल में वह अपना खाता भी नहीं खोल पायी और तो और वहाँ की पलक्कड सीट से भाजपा प्रत्याशी मेट्रो मैन श्रीधरम भी चुनाव हार गये। केरल में वामपंथियों का जादू बरकरार रहा।
तमिलनाडु में काँग्रेस के सहयोग से द्रमुक की धमाकेदार वापसी हुयी है। तमिलनाडु में ऐसा लग रहा है ए.आई.डी.एम.के. राजनैतिक भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया है।
असम में जरूर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी में कामयाब हुयी है, असम गण संग्राम परिषद के सहयोग से। 30 विधानसभा सीटों वाली पांड्डुचेरी में भी सहयोगियों के साथ उसकी सरकार बनती दिख रही है।
इन पाँच राज्यों में सबसे महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव पश्चिम बंगाल के माने जा रहे थे। 292 सीटों पर हुए चुनाव परिणामों ने सारे राजनैतिक पंडितों एवं चेनलों के एग्जिट पोल के दावों की हवा निकाल दी। मीडिया वहाँ काँटे की टक्कर बता रहा था और कुछ चेनल तो पश्चिम बंगाल में भाजपा को राजसिंहासन पर बैठाने की घोषणा कर रहे थे परंतु चुनाव परिणामों ने पूरे देश को चौंका दिया है। ममता बेनर्जी ने ना सिर्फ सत्ता में धमाकेदार वापसी की अपितु पिछले विधानसभा से भी 4 सीटें ज्यादा लाने में सफलता प्राप्त की।
पिछले 5 वर्षों से भारतीय जनता पार्टी वहाँ सत्ता की जमीन तलाशने के सारे यत्न, प्रयत्न कर रही थी। धनबल, बाहुबल, केन्द्रबल और ना जाने क्या-क्या उपाय किये ममता बेनर्जी को हराने के लिये, अपनी पार्टी के एक से एक यौद्धा, महारथियों को चुनावी समर में उतारा, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी और गृहमंत्री अमित शाह ने जितना पसीना बंगाल विधानसभा के चुनावों के लिये बहाया शायद अभी तक इतना किसी राज्य के चुनावों के लिये नहीं बहाया होगा। अमित शाह जी ने नारा दिया था अबकी बार 200 पार।
चुनावों को अपनी मूँछ के बालों की तरह प्रतिष्ठा का प्रश्न बना चुकी केन्द्र में आरुढ़ भाजपा ने मीडिया की मदद से एक ऐसा छदम् वातावरण बना दिया था कि जिसे देखकर लगता था कि पश्चिम बंगाल से ममता की रवानगी तय है। साम-दाम-दंड-भेद का सहारा लेकर भारतीय जनता पार्टी ने तृणमूल काँग्रेस को तितर-बितर कर दिया था। तृणमूल काँग्रेस के अनेक वरिष्ठ नेता, सांसद, विधायक पार्टी छोडक़र भारतीय जनता पार्टी में जा मिले थे। ममता बेनर्जी ने अकेले ही भाजपा के दिग्गज महारथियों से किला लड़ाया।
वास्तव में बंगाल के चुनाव को ममता ने रडचंडी की भूमिका में ही लड़ा और इतनी विषम और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भी तृणमूल काँग्रेस ने पिछले दोनों चुनावों 2011 में 184 और 2016 में 211 सीटों से भी श्रेष्ठ प्रदर्शन कर 215 सीटों पर अपनी पार्टी की विजय पताका फहरा दी।
1951 से लेकर 1977 तक 5 बार सत्ता में रहने वाली काँग्रेस पार्टी और 1977 से 2006 तक के चुनावों में विजय पाने वाले वाम दल को ममता और भाजपा ने मिलकर जमीन में दफन कर दिया है। वैसे तो भाजपा के लिये भी उपलब्धि वाला दिन इसलिये कहा जा सकता है कि वह बंगाल में अपनी जड़ों को जमाने में सफल हुयी है और बंगाल की विधानसभा में उसके विधायकों की संख्या 3 से बढक़र 74 हो गयी है जो अप्रत्याशित कही जा सकती है।
परंतु दो वर्ष पूर्व लोकसभा में भाजपा का जो प्रदर्शन था वह फीका पड़ा है। यदि हम 2019 में लोकसभा चुनावों में भाजपा को मिले वोटों से तुलना करें तो भाजपा को 43 सीटें कम मिली है अर्थात लोकसभा चुनावों को मापदंड रखे तो उसे 120 सीटें मिलनी थी। तृणमूल काँग्रेस को 48 सीटें अधिक मिली है लोकसभा मेें प्राप्त मतों की तुलना में।
ममता ने इन चुनावों में 49 प्रतिशत मतों पर कब्जा किया है जबकि भारतीय जनता पार्टी को पड़े मतों के 38 प्रतिशत और वाम दलों को मात्र 9 प्रतिशत वोट ही मिले हैं।
लोकसभा 2019 के चुनावों में मिले वोटों के प्रतिशत की विधानसभा चुनावों में मिले वोटों से तुलना करे तृणमूल काँग्रेस को 5 प्रतिशत अधिक, भारतीय जनता पार्टी को -3 प्रतिशत कम और वाम दलों को -4 प्रतिशत कम वोट मिले हैं।
पश्चिम बंगाल में ममता को मिली प्रचण्ड सीटों के पीछे पहला कारण बंगाल की महिलाओं की आत्मीयता है, जो उन्हें दीदी के रूप में ही मानती है और उनकी सोच है कि बंगाल में ममता है तो हम महिलाएँ कहीं ज्यादा सुरक्षित हैं, साथ ही उन्हें यह भी विश्वास है कि वह अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के लिये भी कभी भी अपनी मुख्यमंत्री से मिल सकती है।
दूसरा बड़ा कारण भारतीय जनता पार्टी को आशा के अनुरुप सफलता ना मिलने का पार्टी का नकारात्मक प्रचार रहा। ममता बेनर्जी को व्यक्तिगत तौर पर केन्द्र बनाकर हमला बोला गया जिसे बंगाल के मतदाताओं ने पंसद नहीं किया। मोदी जी द्वारा भी देश के प्रधानमंत्री पद की गरिमा के प्रतिकूल दीदी ओ दीदी, दीदी तो गयी जैसे बोले गये जुमलों को पसंद नहीं किया गया।
बंगाल के चुनाव परिणाम निश्चित तौर पर ऐतिहासिक रहे जिसमें भाजपा ने अपने चुनावी तरकश के सारे तीर चला दिये चाहे वह हिंदु-मुस्लिम हो या फिर राम-नाम की बात हो सब ममता के आगे विफल हो गये। मैं व्यक्तिगत तौर पर बंगाल के मुस्लिम मतदाता भाइयों को भी सेल्यूट करता हूँ जिन्होंने कट्टरपंथी असुद्दीन ओवेसी की पार्टी के सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त करवाकर यह संदेश दिया कि हम सब पहले भारतीय हैं। देश में जाति-वर्ग के नाम से मतों का धुव्रीकरण नहीं होगा। फिलहाल तो यही कहना पड़ेगा कि भाजपा के दिल के अरमां ऑसुओं में बह गये।