सारे जहाँ से अच्छा
हिंदोस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इसके
वह गुलिश्तां हमारा
कवि अलामा इकबाल की उक्त पंक्तियां कोरोना के इस कठिन दौर में साकार हो रही है। दुनिया के 213 देशों के लोग विशाल 138 करोड़ की आबादी के अलग-अलग धर्म, मजहब, जातिवाद, वर्ग, भाषा वाद, प्रांतवाद और भी अन्य मसलों में विभाजित सारे हिंदुस्तानी देश पर आये संकट के समय सीमित संसाधनों, ऑक्सीजन की कमी, वैक्सीन की कमी, अस्पतालों में पलंगों की कमी, इंजेक्शनों और दवाइयों की कमियों के बीच सब भेदों को भूलकर एकजुट होकर कोरोना से मुकाबला करने के लिये डटकर खड़े हैं। एक ऐसी प्रतिकूल परिस्थिति में जबकि देशवासियों का देश के राजनेताओं एवं प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर से विश्वास डगमगा गया है और मनुष्य का जीवन सिर्फ भगवान के सहारे ही है इनके बीच मानवता और इंसानियत को गौरवान्वित करने वाले समाचार मन को सुकून दे रहे हैं।
अपनी कौम के माध्यम से देश की सरहदों की रक्षा में अपना सर्वाधिक योगदान देनी वाली सिख कौम ने गुरुद्वारों के माध्यम से सेवा का जो कार्य किया है वह काबिले तारीफ है जहाँ जरूरत पड़ी वहाँ के गुरुद्वारों को अस्पताल में तब्दील कर दिया गया। संभवत: देश के सभी गुरुद्वारों से जरूरतमंदों को भोजन तो दिया ही जा रहा है। उत्तरप्रदेश में नि:शुल्क ऑक्सीजन देकर सिखों ने कई मरीजों की जान बचायी है। सिखों के संकटकाल में किया गया उपकार रूपी ऋण देशवासियों को कभी नहीं भूलना चाहिये। हिंदुओं ने भी अनेक संस्थाओं के माध्यम से संकट के इस दौर में धर्म, मजहब की दीवारें तोडक़र पीडि़तों की हर संभव मदद की है। संस्कार भारती जैसी संस्थाओं ने तो उम्मीद से कहीं अधिक सेवाएं दी हैं।
और हाँ कोरोना की पहली लहर के समय जिस तबलीगी जमात पर तथाकथित तौर से कोरोना संक्रमण फैलाने का आरोप लगाया गया था उसके द्वारा इस त्रासदी के समय दिये जा रहे पुनीत कार्य का जिक्र किये बिना बात अधूरी रह जायेगी। चर्चा में आये थे तीन शब्द ‘मरकज’, ‘तबलीगी’, ‘जमात’ ‘तबलीगी’ का अर्थ होता है अल्लाह की कही बातों का प्रचार करने वाला। ‘जमात’ का अर्थ होता है समूह। और ‘मरकज’ का अर्थ होता है वह स्थान जहाँ बैठक या मीटिंग की जाती है।
दुनिया भर के 213 देशों में तबलीगी जमात के 15 करोड़ सदस्य हैं। तबलीगी जमात की स्थापना 1926 में मौलाना मुहम्मद इलियास ने की थी और इसका अंतरर्राष्ट्रीय मुख्यालय भी निजामुद्दीन में ही है। तबलीगी जमात विश्व की सतह पर सुन्नी इस्लामी धर्म प्रचार आंदोलन है जो मूल इस्लामी पद्धतियों का प्रचार करता है। इसके अनुयायी 3, 5, 10 या 40 दिन और 4 माह के लिये 8-10 लोगों की टोली के रूप में निकलते हैं जिनमें दो सेवादार होते हैं यह जमात शहरों, गाँवों में जाकर इस्लाम का प्रचार करती है और मुस्लिमों को नमाज पढऩे के लिये प्रेरित करती है और इस्लामी शिक्षा देती है।
जमात के ऊपर भारत का पहला सुपर स्प्रेडर का आरोप लगाने वाले कोरोना की दूसरी लहर को लौकर मौन है।
इसी तबलीगी जमात के लोग तिरुपति में मानवता की मिसाल पेश कर रहे हैं। तिरुपति यूनाइटेड मुस्लिम एसोसिएशन के बेनर वाली संस्था में 60 सदस्य हैं। एसोसिएशन ने अगस्त में कोविड-19 ज्वाइंट एक्शन कमेटी बनाकर सभी धर्मों के शवों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं। कमेटी ने चंदे से दो एम्बुलेंस खरीदी है। कमेटी में मैकेनिक, ऑटो ड्रायवर, होटल में काम करने वाले, दिहाड़ी मजदूर, टेलर या ठेले वाले हैं।
एसोसिएशन के सदस्य ग्रॉस के अनुसार उनकी टीम अभी तक 526 शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी है जिसमें 134 पहली कोरोना लहर में एवं शेष इस दूसरी लहर में किये गये हैं। यदि मृतक हिंदु होता है तो उसके लिये कपड़े और फूल माला, मृतक ईसाई है तो शव के लिये कॉफिन की व्यवस्था और चर्च से बात करके प्रार्थना आयोजित की जाती है, मुस्लिमों के शव दफनाने के बाद जनाजे की नमाज रखते हैं।
इसी तरह देश के अनेक हिस्सों से हिंदू भाइयों के शवों का अंतिम संस्कार मुस्लिम भाइयों द्वारा और कई मुस्लिम भाइयों के शवों का अंतिम संस्कार हिंदुओं द्वारा किये जाने की भी खबरें है। कोरोना जैसी घातक बीमारी जाति-पाती या वर्ग देखकर नहीं आ रही है, वह तो सभी को अपना शिकार बना रही है चाहे हिंदू हो या मुसलमान या सिख, ईसाई।
भारतीयों ने दुनिया को बता दिया है कि भले ही हम अलग-अलग तरह के फूल हैं पर एक गुलदस्ते में बंधे हुए हैं और सारी दुनिया को यह भी संदेश दिया है कि मानवता ही सबसे बड़ी सेवा है, ‘मानव सेवा ही प्रभु सेवा है।’
इस संसार में भी इंसानियत से बढक़र कोई दूसरा धर्म नहीं है। कोरोना आज है कल नहीं रहेगा परंतु संकट के इस काल में जो लोग भी सेवा कर रहे हैं वही समाज के असली हीरो हैं, जो मरीजों और मौत के बीच ढाल बनकर खड़े हैं।
– अर्जुन सिंह चंदेल