महाकाल वन प्रोजेक्ट: कोर्ट में सुनवाई से पहले भ्रष्टाचार के सबूत मिटाने की कोशिश, गारंटी पूरी होने से पहले ही ढाई करोड़ का निर्माण तोडऩे की तैयारी

उज्जैन, (हेमंत सेन) अग्निपथ। जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीकरण मिशन के तहत महाकाल क्षेत्र में हुआ 20 दुकानों और रेस्टोरेंट और हॉल का निर्माण महज 4 साल में ही तोडऩे की तैयारी कर ली गई है। तुड़ाई का टेंडर भी हो चुका है और ठेकेदार ने यहां काम भी शुरू कर दिया है। खास बात यह है कि इसे बनाने वाले ठेकेदार का अब तक नगर निगम से फाइनल बिल भुगतान ही नहीं हुआ है। फाइनल बिलिंग के बाद भी 5 साल तक निर्माण गारंटी की अवधि में है, इससे पहले ही इसे तोडऩा शुरू कर दिया गया है, दुकानों वाले हिस्से को फिलहाल नहीं छेड़ा गया है।

महाकाल वन प्रोजेक्ट का निर्माण संबंधी विवाद हाईकोर्ट में विचाराधीन है, बावजूद इसके दुकानें तोडऩे का काम शुरू हो गया है। तकरीबन ढाई करोड़ रुपए की लागत से हुए इस निर्माण में भ्रष्टाचार छिपाने की अलग ही कहानी सामने आई है। चार साल पहले बनी दुकानों, कैंटीन और हॉल को तोड़ दिए जाने के बाद ठेकेदार को भुगतान करने में आसानी हो जाएगी। जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीकरण मिशन के अंतर्गत महाकाल क्षेत्र के विकास के लिए 23 करोड़ 74 लाख रुपए की लागत से पांच प्रमुख काम हुए थे।

इस रकम से महाकाल मंदिर के पिछले हिस्से में लैंड स्कैपिंग, कोरिडोर निर्माण, 20 दुकानें और कैंटीन, हॉल का निर्माण, इंटरप्रिटिशन सेंटर और 2 टाइलेट बनाए गए थे। दुकानों और कैंटिन का निर्माण तो 2016 में ही पूरा हुआ है। इंदौर की सीएमएम कंपनी के संजय धर्मदास तीरथदास को इस निर्माण का ठेका दिया गया था। महज चार साल में ही दुकानों और कैंटिन के निर्माण वाली जगह को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में शामिल कर निर्माण हटाने की शुरुआत कर दी गई। जोन क्रमांक 6 से बकायदा दुकानों और कैंटीन को तोडऩे के लिए टेंडर जारी हुआ और चार दिन पहले ठेकेदार ने तुड़ाई का काम भी शुरू कर दिया।

पौने दो करोड़ का खेल

  • 2009 से 2011 के बीच केंद्र, राज्य सरकार और एमआईसी में जेएनएनयूआरएम के तहत महाकाल वन प्रोजेक्ट को स्वीकृति मिली थी। 23 करोड़ 74 लाख रूपए के इस प्रोजेक्ट को इंदौर की सीएमएम कंपनी को सौंपा गया।
  •  2016 में प्रोजेक्ट के पांचो काम पूरे हुए और मार्च-अप्रैल 2018 में फाइनल बिल प्रस्तुत हुआ। निर्माण में कई सारी कमियां होने पर फाइनल बिल में से 1 करोड़ 79 लाख रूपए नगर निगम द्वारा काट दिए गए थे।
  • दूसरी बार फिर से ठेकेदार कंपनी ने बिल प्रस्तुत किया, इस बार इसे पास कराने के लिए पूर्व नगर निगम आयुक्त महेशचंद्र चौधरी और कार्यपालन यंत्री अरूण जैन के फर्जी हस्ताक्षर का सहारा लिया गया। बिल के साथ पूर्व आयुक्त महेशचंद्र चौधरी की 2011 की एक नोटशीट का सहारा लिया गया। यह नोटिशीट संदेहास्पद थे
  • महाकाल वन प्रोजेक्ट में स्थानीय अधिकारियों ने अपने हिसाब से बदलाव कर डाले थे। जहां पत्थर की सडक़ बनना थी वहां कांक्रीट लगवा दिया। अपने हिसाब से इसके रेट तय कर डाले। ठेकेदार कंपनी के फाइनल बिल में से इसी तरह के कामों की रकम कम कर दी गई थी।
  •  पिछली महापौर परिषद की आखिरी बैठक में भी इस विवादित बिल का मुद्दा आया था लेकिन एमआईसी सदस्यों ने अपने कार्यकाल पर दाग लगने से बचाने के लिए इसमें हाथ ही नहीं डाला।
  • मामला पौने दो करोड़ का है लिहाजा इसे निकलवाने के लिए महाकाल मंदिर शंख द्वार के सामने बने शापिंग कांप्लेक्स और फूड कोर्ट को तोडऩे के लिए नवंबर 2020 में नया संकल्प पारित करा दिया गया। संभागायुक्त और प्रशासक रहे आनंद शर्मा को भी इस मामले में अंधेरे में रखा गया।
  • महाकाल वन प्रोजेक्ट के बिल भुगतान का मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है। कोर्ट खुलने के बाद मामले पर सुनवाई होगी। इससे पहले ही फूड कोर्ट और दुकानों को तोडक़र सबूत ही मिटाने की कोशिश की जा रही है।

18 दुकानदारों ने दी विस्थापन की सहमति

शंख द्वार के सामने वाले हिस्से में बनी कैंटीन और हॉल से तुड़ाई का काम शुरू हो चुका है। यहां दुकानें लेने वाले 20 में से 18 दुकानदारों ने दुकानों के बदले नए स्थानों पर दुकानें लेने की सहमति दे दी है। नगर निगम के राजस्व एवं अन्यकर प्रभारी जयसिंह राजपूत के मुताबिक 2 दुकानदारों ने रुपए वापस मांगे है। दुकानें खाली कराने का प्रस्ताव राज्यशासन को भेजा गया है। जैसे ही इसे मंजूरी मिल जाएगी, दुकानों पर कब्जा लेने की कार्रवाई कर दी जाएगी। दुकानों के आसपास का भाग तोडऩा शुरू कर दिया गया है।

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