कृषि उपज मंडी के रास्ते से राजनीति में विधायक से लेकर मंत्री बनने वाले पहलवान इन दिनों हाशिये पर चल रहे हैं। एक समय था मंडी प्रांगण में पहलवान की मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं हिलता था। मंडी में किस अधिकारी-कर्मचारी को बैठाना है इसका फैसला भोपाल से बाद में, पहलवान के घर से पहले होता था।
कई अवसरों पर कार्यक्रमों की तारीख भी पहलवान के घर से तय की गई। यदि पहलवान उज्जैन में नहीं हैं तो उस दिन मंडी में आयोजित होने वाला कार्यक्रम टाल दिया जाता था। उसकी तारीख पहलवान ही तय करते थे।
किंतु समय ने ऐसी पलटी खाई कि अब मंडी में ही पहलवान को नहीं पूछा जा रहा है। पहलवान के राजनीतिक पाये मंडी से हिलते हुए नजर आ रहे हैं। मंडी में आयोजित कार्यक्रम में पहलवान की अनुपस्थिति इस बात का पुख्ता प्रमाण है। जबकि जिस दिन यह कार्यक्रम आयोजित किया गया, उस दिन वह शहर में ही थे।
मंडी में आयोजित कार्यक्रम में मंत्री से लेकर सांसद, पूर्व नगर अध्यक्ष से लेकर वर्तमान जिला अध्यक्ष सभी मौजूद थे। अघोषित रूप से ऐसा लग रहा है कि मंडी की राजनीति से अब पहलवान की विदाई हो चुकी है। हालांकि राजनीति के जानकार यह भी कहते हैं कि पहलवान ठंडा करके खाने वालों में से हैं। इसका असर आने वाले समय में देखने को मिल सकता है।