21 वर्ष पूर्व 8 नवंबर 2000 को जनता दल युनाइटेड से नाता तोडक़र 9 बार के लोकसभा और एक बार के राज्यसभा सांसद रामविलास पासवान द्वारा स्थापित लोक जनशति पार्टी में दो फाड़ हो गयी है।
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान जी की मृत्यु को अभी मात्र 8 महीने ही व्यतीत हुए हैं और पार्टी को तोडऩे या बचाने में स्वर्गीय रामविलास जी पासवान के भाई पशुपति कुमार पारसी का ही हाथ है।
राजनीति में करोड़ों में कोई अकेला ही रामविलास पासवान जी जैसा भाग्यशाली रहता है, अद्भुत संगठक शति के धनी पासवान जी ने 1977 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा था और विजयी होकर सांसद बने, उसके बाद 1980, 1989, 1991, 1996, 1998, 1999, 2004, 2014 में वह लोकसभा पहुँचे। केन्द्र में सरकार चाहे काँग्रेस की हो या भाजपा की, यूपीए की हो या एन.डी.ए. की रामविलास जी हर सरकार में मंत्री रहे।
2000 में लोक जनशति पार्टी के गठन पश्चात उन्होंने बिहार में दलित वर्ग का धुव्रीकरण करने में सफलता अर्जित की और अजा वर्ग के मतदाताओं में ‘लोजपा’ की मजबूत पकड़ बना ली। 2014 में लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 सीटों में से 7 पर पार्टी ने एन.डी.ए. का हिस्सा बनकर चुनाव लड़ा और 7 में से 6 सीटों पर विजय प्राप्त की। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी लोकजनशति पार्टी को 6 सीटों पर विजय मिली। रामविलास जी और उनके पुत्र चिराग पासवान भी विजयी हुए।
रामविलास जी के भाई पशुपति कुमार पारसी को लोकसभा में लोजपा का नेता बनाया गया। रामविलास जी ने नवंबर 2019 में पार्टी की कमान अभिनेता से नेता बने पुत्र चिराग पासवान के हाथों में सौंप दी। एलजेपी राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में दलित सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष और हाजीपुर के सांसद पशुपति कुमार पारस ने अपने भतीजे चिराग पासवान को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा, जिसे पूर्ण समर्थन से पारित कर दिया गया।
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर चिराग पासवान की एन.डी.ए. से खटपट हो गयी, उन्होंने लोक जन शति पार्टी के स्वतंत्र रूप से चुनाव लडऩे का एलान कर दिया और बिहार विधानसभा की 143 सीटों पर लोजपा के उमीदवार खड़े कर दिया, नवयुवक चिराग का यह कदम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) और उनकी खुद की पार्टी के लिये भी आत्मघाती साबित हुआ। लोक जनशति पार्टी का एक भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका और लोजपा के मैदान में आने से एन.डी.ए. को भी लगभग 34 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा।
विधानसभा चुनाव दौरान चिराग दो तरह की बातें करते रहे एक ओर मोदी जी की तारीफ में कसीदे गढ़ते थे वहीं नीतिश की आलोचना करते थे बिहार के मतदाताओं ने इस दोहरी नीति को नकार दिया। चुनाव परिणाम बाद से ही लोजपा में बगावत के बीच अंकुरित होने लगे थे चिराग से पार्टी के वरिष्ठ नेता नाराज हो गये जिसकी परिणिति कल हुयी जब चाचा ने भतीजे को नायक से खलनायक साबित करके स्वयं को लोजपा का अध्यक्ष घोषित कर दिया, चाचा पशुपति कुमार को उनकी पार्टी के चार अन्य सांसदों का भी समर्थन प्राप्त है।
पाँचों सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर इस बारे में सूचित कर दिया है। चिराग पासवान पूरी तरह से हाशिए पर चले गये हैं अब देखना है आने वाले दिनों में चिराग समर्थक या गुल खिलाते हैं।