उत्तर के पहलवान जमीन खिसकने के बाद अब संभलने लगे हैं। पहलवान ने अपनी राजनीतिक जमीन संााग की सबसे बड़ी कृषि उपज मंडी से तैयार की थी। यहां से वे व्यापार करते-करते ही राजनीति में उतरे और प्रदेश के मंत्री पद तक को सुशोभित किया। लेकिन पिछले कुछ दिनों से उनकी जमीन ही खिसक रही थी।
जिस मंडी में उनकी सहमति के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था, वहां पिछले कुछ दिनों से उनकी पूछपरख कम हो गई थी। उनके बिना ही बड़े-बड़े कार्यक्रम आयोजित हो रहे थे। मंडी के कार्यक्रमों में उनकी अनुपस्थिति की मीडिया में भी तरह-तरह के चर्च होने लगी थी। लेकिन पहलवान अब संभल गए हैं।
मंडी के कार्यक्रम में उनकी अनुपस्थिति के बाद जब चर्चाओं का बाजार सुर्खियां बना तो उन्होंने अपनी खिसकती जमीन संभालने की जुगत लगाना शुरू कर दी है। खास खाकसारों का आंकलन है कि पहलवान अब रोज मंडी जा रहे हैं और नीलामी में भी भाग ले रहे हैं।
इसके कई फायदे हैं। वे किसानों के भी सीधे संपर्क में आ रहे हैं और व्यापारी मित्रों की नाराजगी भी दूर कर रहे हैं। उनकी इस बदली दिनचर्या को भाजपाई दूसरे नजरिए से देख रहे हैं। भाजपाइयों का कहना है कि हर बार आखिरी चुनाव का दावा कर टिकट लाने वाले पहलवान इस बार फिर मैदान में आखिरी बार उतरने की तैयारी कर रहे हैं।