अग्निपथ के संस्थापक की 108वीं जयंती पर शत्-शत् नमन

shivpratap shingh (dainik agnipath)

दैनिक अग्निपथ के संस्थापक, मूर्धन्य पत्रकार, चंदेल परिवार की थाती और प्रात: स्मरणीय पूज्य पिताजी की 108वीं जयंती पर शत्-शत् नमन। वैसे तो सभी के पिता उनके लिये दुनिया के सर्वश्रेष्ठ इंसान और रियल लाइफ के हीरो होते हैं परंतु मेरे लिये मेरे पिता एक ऐसे इंसान थे जिन्होंने मृत्युपर्यन्त पत्रकारिता धर्म को निभाने और उसके मूल्यों को अक्षुण्ण रखने के लिये एक तपस्वी का जीवन व्यतीत किया। मेरे लिये वह उस प्रकाश पुंज की तरह थे जो समुद्र रूपी जीवन में जहाज को मंजिल दिखाता है।

पिताजी का जन्म सन् 1914 में उसी उत्तरप्रदेश की धरती पर हुआ था जो प्रदेश सूर्यवंशी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और चंद्रवंशी श्री कृष्ण की कर्म-भूमि और लीला भूमि रही है। गंगा-यमुना और भूमि लुप्ता सरस्वती के जल से अभिसिंचित इस भूमि खण्ड की धरती ने अन्न-फलों से मनुष्य समाज को सदा सुखी संपन्न बनाये रखने में किंचित भी कमी बाकी नहीं रखी है।

इसी उत्तरप्रदेश में भक्त-शिरोमणि सूरदास एवं संत तुलसीदास जैसी दिव्य विभूतियां हुयी है, जिनकी वाणी के हिमाद्री से ज्ञान, भक्ति और वैराग्य की त्रिवेणी ने समग्र भारत को अजरत्व और अमरत्व प्रदान किया।

उ.प्र. ने देश को सबसे अधिक संख्या में प्रधानमंत्री-भारत माता की सेवार्थ प्रदान किये। प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू, श्री लालबहादुर शास्त्री, श्रीमती इंदिरा गांधी, श्री चौधरी चरण सिंह, श्री राजीव गाँधी, श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह एवं श्री चंद्रशेखर उत्तरप्रदेश के ही सपूत हैं। उत्तरप्रदेश पत्रकारों की भी तीर्थ भूमि है। भारतेंदु बाबू हरिशचंद्र से लेकर गणेश शंकर विद्यार्थी, विष्णु पराडक़र, लक्ष्मण गर्दे, बालकृष्ण शर्मा नवीन, बाबू सम्पूर्णानंद और बनारसीदास चतुर्वेदी जैसे प्रख्यात पत्रकारों की एक लंबी श्रृंखला है जिसने अँग्रेज शाही की दासता के घोर तमिस्त्र काल में लोक-चेतना की मशाल को सदैव प्रज्जवलित रखा, उसे जरा भी मंद नहीं होने दिया।

इसी श्रृंखला में पूज्य पिताजी ठाकुर शिवप्रताप सिंह जी का नाम भी एक ऐसे प्रभापुंज नक्षत्र के रूप में उभरा था जिसकी अपनी एक अलग ही बानगी थी, तेवर थे, एक विद्युतधर्मी गति थी, रूद्रभंगिमा थी। मूर्धन्य पत्रकार ठाकुर शिवप्रताप सिंह जी का जन्म उत्तरप्रदेश के जिला रायबरेली के एक छोटे से गाँव चंदेलनगर में स्वर्गीय बिंदासिंह जी जो कि एक मध्य वित्त किसान परिवार के मुखिया थे के परिवार में हुआ था।

बिंदासिंह जी राष्ट्रीयता के प्रबल पोषक होने के साथ ही आर्य समाज एवं उसके संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती के क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित उनकी ऊर्जा से संपन्न, स्वभाव से अक्खड़, तेजस्वी, स्पष्टवादी, रूढि़भंजक, आडम्बर और पाखण्डों के कट्टर विरोधी थे, यह सभी गुण पिताजी ठाकुर शिवप्रताप सिंह जी को विरासत में प्राप्त हुए। आगे चलकर इन सबका गुणनफल उनमें तेजी से विकसित और वद्र्धित होता रहा जिनकी बुनियाद पर उनका व्यक्तित्व निर्माण हुआ जिसके फलस्वरूप वह जीवन संग्राम में अपराजेय योद्धा, सिद्धांत निष्ठ प्रचण्ड जीजिविषा के स्वामी, सादा जीवन उच्च विचार के ध्वजवाहक संवेदनशील और मित्रवत्सल संसिद्ध हुए।

सन् 1931 के आसपास का समय जबकि देश के राजनीतिक क्षितिज पर गाँधी जी के नेतृत्व का मध्यान्हकालीन सूर्य चमक रहा था, नेहरू और सुभाष की जोड़ी भारतीय युवकों में आजादी के लिये अभूतपूर्व तड़प पैदा कर रही थी। दूसरी ओर भगतसिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे भारत माता के लाड़ले सपूत सर पर कफन बाँधे, देश में सशस्त्र क्रांति के लिये मैदान साफ करने में रात-दिन एक कर रहे थे, ऐसे ही संक्रमण काल में शायरे आजम अकबर इलाहाबादी के इंकलाबी बोल हवा में तैर रहे थे

‘खींचों न कमानों को ना तलवार निकालो।
गर तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।’

बस फिर क्या था पिताजी ने अपना मार्ग अंतिम रूप से चुन लिया। यह मार्ग था पत्रकारिता का। इसमें न अच्छा वेतन है, न सुख-सुविधा, न भविष्य की सुरक्षा। इसमें कष्ट ही कष्ट है, अभाव ही अभाव है। इसके बावजूद देश सेवा, समाज सेवा का यह एक पवित्र मिशन है। जब पिताजी ने अपने कर्मक्षेत्र के सारे गुण-धर्म और कत्र्तव्य पथ पर आने वाले सभी संकटों/कष्टों और बाधाओं का गणित अच्छी प्रकार से समझ लिया था, इसके बाद ही 20 वर्ष की उम्र में ही वह पत्रकारिता के प्रति सर्वात्मना समर्पित हुए।

पत्रकारिता की शुरुआत कलकत्ता में प्रकाशित दैनिक विश्वमित्र से की फिर वहाँ से दिल्ली, मुम्बई (हिंदुस्तान) में रहे इसी बीच ‘हिंदुस्तान’ में काँग्रेस पर तीखे प्रहारों के कारण उ.प्र. के प्रमुख तात्कालीन नेता उमाशंकर दीक्षित ने नेहरू जी के लखनऊ से प्रकाशित होने वाले ‘नेशनल हेराल्ड’ में एसोसियेटेड एडिटर के पद का ‘हिंदुस्तान’ से चार गुना अधिक वेतन के साथ प्रस्ताव दिया जिसे पिताजी ने ठुकरा दिया।

काँग्रेस की कुटिल चालों से उन्हें ‘हिंदुस्तान’ छोडऩा पड़ा फिर अजमेर (नवज्योति), इंदौर (नवप्रभात) फिर उज्जैन से ‘संग्राम’ सन् 1963 से दैनिक भास्कर (उज्जैन संस्करण) के प्रधान संपादक पद को सुशोभित किया। सन् 1977 से 1989 तक अग्निबाण और फिर 1 दिसंबर 1989 से स्वयं के समाचार पत्र दैनिक अग्निपथ की नींव रखी जो अपने 31 वर्ष पूर्ण कर चुका है और जिसने पूज्य पिताजी के सिद्धांतों का अनुसरण करके शोषितों-पीडि़तों की आवाज बनकर आतताइयों, भ्रष्ट्राचारियों से लोहा लेने का संकल्प लिया है जिसके कारण समाचार पत्रों की भीड़ में अग्निपथ का अलग मुकाम है वटवृक्ष रूपी अग्निपथ की लोकप्रियता और विस्तार में अग्निपथ परिवार के सभी साथियों का खून-पसीना शामिल है।

हमारे संस्थापक की 108वीं जयंती पर अग्निपथ एवं चंदेल परिवार अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता है।

– अर्जुनसिंह चंदेल

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