हर वर्ष असम के गुवाहाटी स्थित कामाख्या मंदिर में मनाया जाने वाला अंबूबाची पर्व (अंबूबाची मेला) एक धार्मिक आयोजन से कहीं अधिक है — यह भारत की तांत्रिक परंपरा, शक्ति की आराधना और प्राचीन मान्यताओं का जीवंत प्रमाण है। यह मेला नहीं, बल्कि एक दिव्य अनुभूति है, जहाँ देवी की शक्ति स्वयं प्रवाहित होती है।
अंबूबाची क्या है?
अंबूबाची शब्द संस्कृत से आया है, जिसमें “अंबू” का अर्थ होता है “जल” और “बाची” का मतलब “बहना”। अंबूबाची मेला, यह पर्व उस समय को चिह्नित करता है जब देवी कामाख्या को रजस्वला माना जाता है — अर्थात उनके योनि पीठ से रक्त या प्रवाह होता है। यह तीन दिनों तक मनाया जाता है जब मंदिर के द्वार बंद रहते हैं और पूजा-पाठ वर्जित होती है। इसे देवी की विश्राम अवधि माना जाता है।
कामाख्या शक्तिपीठ और तंत्र का संबंध
कामाख्या मंदिर को महाशक्ति पीठों में से एक माना जाता है, जहाँ देवी सती की योनि गिरी थी। यही कारण है कि यहाँ तांत्रिक साधना का अत्यंत महत्व है। अंबूबाची पर्व के दौरान भारतभर से तांत्रिक, साधक, योगी और श्रद्धालु यहाँ साधना करने पहुँचते हैं।
नरकासुर की कथा और अधूरी सीढ़ियाँ
पौराणिक कथा के अनुसार, नरकासुर जो कि विष्णु और भू देवी का पुत्र था, उसने देवी कामाख्या को प्रसन्न करने के लिए मंदिर तक सीढ़ियाँ बनानी शुरू की। लेकिन देवी ने उसकी परीक्षा लेने के लिए एक मुर्गा प्रकट किया, जिसने असमय बाँग दी। नरकासुर को लगा कि सुबह हो गई और उसने काम अधूरा छोड़ दिया। आज भी कामाख्या मंदिर की सीढ़ियाँ अधूरी हैं।
यही कारण है कि कामाख्या में मुर्गे की बलि वर्जित है, जबकि अन्य पशुओं की बलि दी जाती है जैसे बकरा या भैंसा।
अंबूबाची मेला में बलि और तंत्र साधना की परंपरा
अंबूबाची के दौरान कुछ तांत्रिक परंपराओं में बलि की विशेष भूमिका होती है, विशेषकर क्षत्रियों के लिए। मान्यता है कि युद्ध में उन्हें रक्त से भय न लगे, इसलिए उन्हें बचपन से ही बलि दृश्य दिखाए जाते थे। कई तांत्रिक साधनाओं में कच्चा मांस और रक्त भी उपयोग होता है, जिसे योगनियां भोजन स्वरूप ग्रहण करती हैं।
अंबूबाची पर्व की प्रक्रिया
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पर्व से पहले देवी राजला अवस्था में मानी जाती हैं।
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चार दिनों तक मंदिर बंद रहता है, सफेद वस्त्र से देवी की योनि को ढँका जाता है।
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पाँचवें दिन मंदिर के पट खुलते हैं और “नवचेतना” का आरंभ होता है।
वृंदावन और कामाख्या का संबंध
वीडियो में उल्लेखित एक और रोचक तथ्य यह है कि कामाख्या और वृंदावन के बीच भी एक तांत्रिक संबंध है। मान्यता है कि राधा रानी की कुलदेवी काली माता थीं, और वह कृष्ण से मिलने के लिए देवी की पूजा का बहाना करती थीं। यह स्थान केश पीठ कहलाता है, जो कामाख्या से जुड़ा हुआ है।
निष्कर्ष
अंबूबाची कोई सामान्य मेला नहीं, बल्कि एक गहन तांत्रिक साधना और शक्ति की आराधना का पर्व है। यह नारी शक्ति, प्रकृति के चक्र और तंत्र की रहस्यमयी परंपराओं का अद्भुत संगम है। कामाख्या देवी की यह लीला हमें याद दिलाती है कि शक्ति की आराधना में रहस्य, भक्ति और गहराई – तीनों का समावेश होता है।
🕉️ जय माता दी। जय श्री महाकाल।